Sunday, July 31, 2011

"राहें हैं बारूद भरी..."

सभी सुधीजनों को सादर नमस्कार... महफिले दानां में यह नादां हबीब एक नयी ग़ज़ल के साथ पेशे खिदमत है... मुताअला फरमाएं... "राहें हैं बारूद भरी..."


किसकी बात करूँ यारा.
कितनी बार मरुँ यारा.

राहें हैं बारूद भरी,
चलते हुए डरूँ यारा. 

सांप ही नहीं मरता है, 
कितना वार करूँ यारा.

कितने हैं ज़ख्मात हरे,
बन कर पीर झरूँ यारा.

जो कह दूं बिंदास कहूं,
छुप ना बात करूँ यारा.

सफ़र 'हबीब' अभी लंबा, 
कैसे मैं ठहरूँ यारा. 


***************

18 comments:

  1. bahtrin gzal hai bhaijaan badhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. कितने हैं ज़ख्मात हरे,
    बन कर पीर झरूँ यारा।

    छोटी बहर लेकिन बहुत गहरी बातें।
    बढ़िया ग़ज़ल....अच्छी लगी।

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  3. क्या बात कही है हबीब भाई लेकिन कुछ कम हो गयी मियां पढ़ने वालो की भी देखो कुछ लाईने और तो फ़ेको मजा आते आते वो जाने का कह उठीं हम मनाते ही रह गये पर मनुहार न बैठी :)

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  4. बहुत खूबसूरती से कम शब्दों में अपनी बात कही है आपने...

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  5. bahut khub...
    bahut kuch bahut kam shabdo mei bayaan kar gaye aap...aabhar

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  6. कितने हैं ज़ख्मात हरे,
    बन कर पीर झरूँ यारा.

    छोटी बहर की ख़ूबसूरत और मुकम्मल ग़ज़ल.......

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  7. बेहद खुबसूरत ग़ज़ल...

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  8. ख़ूबसूरत ग़ज़ल.......

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  9. बहुत खूबसूरती से कम शब्दों में अपनी बात कही है आपने...

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  10. वाह ...बहुत खूब कहा है आपने .आभार ।

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  11. छोटी बहर में खूबसूरती से कही गयी ग़ज़ल अच्छी लगी.

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  12. बहुत भाव पूर्ण खूबसूरत गजल.आभार.

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  13. जो कह दूं बिंदास कहूं,
    छुप ना बात करूँ यारा.

    सफ़र 'हबीब' अभी लंबा,
    कैसे मैं ठहरूँ यारा.
    waah ...

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  14. बहुत अच्छी गजल |
    आशा

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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