सभी सम्माननीय स्नेही स्वजनों को सादर नमन. आदरणीय मित्रों आप सब की सहृदय संवेदनाओं ने कठिन समय में बड़ा संबल प्रदान किया. आप सभी को मैं ह्रदय से नमन करता हूँ. १३ मई "मदर्स डे" पर कुछ पंक्तियाँ रची थी, पर पता नहीं कुछ तकनीक की समस्या थी या कुछ और मैं रचना पोस्ट (पब्लिश) करने में सफल नहीं हो पा रहा था... आज मेरे मित्र और नेटवर्क मेनेजर द्वारा किये गए सुधार कार्य के पश्चात "माँ" को स्मरण और नमन करते वही रचना सुधि जनों की सभा में सादर प्रस्तुत करता हूँ....
माँ दहकती धूप में तुम छांव हो तुम शाम हो।
स्वेद से जब मन भरा हो, सांस हो, आराम हो।
दीप आशा हो तुम्हीं, तुम आरती हो श्लोक भी,
जब जुबां खोली, निकलता, एक पावन नाम हो।
सत्य की ज्योति सदा अँधियार से लड़ती हुई,
मुश्किलों को थाम ले जो, वह लहर उद्दाम हो।
तुम यशोदा, देवकी तुम, कृष्ण भी तुम राधिका,
छंद तुलसी का मधुर, तुम जानकी तुम राम हो।
बाग हो, अक्षय खजाना खुशबुओं की भीनी सी,
देव सब बसते जहां, तुम वो ही अमृत धाम हो।
तज धरा को जा चुकीं पर सर्वदा मुझको लगे,
पेड़, छैया, नद, पवन बन संग तुम अविराम हो।
साथ संजय को रखो माँ थाम अंगुली उम्र भर,
आस तुम, विश्वास तुम, विश्रांति में विश्राम हो।
स्वेद से जब मन भरा हो, सांस हो, आराम हो।
दीप आशा हो तुम्हीं, तुम आरती हो श्लोक भी,
जब जुबां खोली, निकलता, एक पावन नाम हो।
सत्य की ज्योति सदा अँधियार से लड़ती हुई,
मुश्किलों को थाम ले जो, वह लहर उद्दाम हो।
तुम यशोदा, देवकी तुम, कृष्ण भी तुम राधिका,
छंद तुलसी का मधुर, तुम जानकी तुम राम हो।
बाग हो, अक्षय खजाना खुशबुओं की भीनी सी,
देव सब बसते जहां, तुम वो ही अमृत धाम हो।
तज धरा को जा चुकीं पर सर्वदा मुझको लगे,
पेड़, छैया, नद, पवन बन संग तुम अविराम हो।
साथ संजय को रखो माँ थाम अंगुली उम्र भर,
आस तुम, विश्वास तुम, विश्रांति में विश्राम हो।
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दुनिया के समस्त माओं हेतु दीर्घ और स्वस्थ्य जीवन की प्रार्थना सहित सादर नमन
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दीप आशा हो तुम्हीं, तुम आरती हो श्लोक भी,
ReplyDeleteजब जुबां खोली, निकलता, एक पावन नाम हो।
बहुत गहन मर्मस्पर्शी भाव ....
माँ को नमन ....!!
औलाद के दुःख-दर्द, बाँटने के वास्ते
ReplyDeleteमाँ हर-दम हर-घड़ी, तैयार है, होती
एहसास करो, ज़रा उनके दुखों का
जिन बदनसीबों की, माँ नही होती
माँ को नमन .......
बहुत सुंदर संजय जी.................
ReplyDeleteदिल भर आया इसको पढ़ कर...
बार बार पढ़ने को जी चाहता है.
तज धरा को जा चुकीं पर सर्वदा मुझको लगे,
पेड़, छैया, नद, पवन बन संग तुम अविराम हो।
वही एक साया है जो अन्धकार में भी साथ नहीं छोड़ता.....
सादर.
त्वरित टिप्पणी से सजा, मित्रों चर्चा-मंच |
ReplyDeleteछल-छंदी रविकर करे, फिर से नया प्रपंच ||
बुधवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.in
दीप आशा हो तुम्हीं, तुम आरती हो श्लोक भी,
ReplyDeleteजब जुबां खोली, निकलता, एक पावन नाम हो।
....बहुत पावन भाव...माँ को नमन
फिर एक और मार्मिक कविता के लिए बधाई...
ReplyDeleteमाँ को नमन ..
ReplyDeleteमाँ दहकती धूप में तुम छांव हो तुम शाम हो।
ReplyDeleteस्वेद से जब मन भरा हो, सांस हो, आराम हो।
दीप आशा हो तुम्हीं, तुम आरती हो श्लोक भी,
जब जुबां खोली, निकलता, एक पावन नाम हो.... पावनता के साथ माँ को याद किया है
संजय जी बेहद खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteहै सभी कुछ पास बस,तुम एक संग मेरे नहीं
ReplyDeleteहूं ढूंढता ये जानता, लौटा नहीं कोई कभी!
माँ को समर्पित यह रचना बहुत सुंदर है ...
ReplyDeleteबाग हो, अक्षय खजाना खुशबुओं की भीनी सी,
ReplyDeleteदेव सब बसते जहां, तुम वो ही अमृत धाम हो।
माँ को सादर नमन.
तज धरा को जा चुकीं पर सर्वदा मुझको लगे,
ReplyDeleteपेड़, छैया, नद, पवन बन संग तुम अविराम हो।
माँ की याद में बहुत सुन्दर इस अप्रतिम रचना के लिए बधाई
मां पर जब भी पढ़ा है मन भावुक हो गया ... बहुत ही अच्छा लिखा है आभार ।
ReplyDeleteदीप आशा हो तुम्हीं, तुम आरती हो श्लोक भी,
ReplyDeleteजब जुबां खोली, निकलता, एक पावन नाम हो। ...
मन में सीधे उतर गए ये अलफ़ाज़ ... बहुत ही कोमल एहसास और माँ के प्रेम की पूरी पूरी झलक देती रचना .... लाजवाब ...
तज धरा को जा चुकीं पर सर्वदा मुझको लगे,
ReplyDeleteपेड़, छैया, नद, पवन बन संग तुम अविराम हो।
माँ को सादर नमन... माँ भी हमेशा आसपास रहेगी दूर कैसे जा सकती है अपने कलेजे के टुकड़े से
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसाथ संजय को रखो माँ थाम अंगुली उम्र भर,
ReplyDeleteआस तुम, विश्वास तुम, विश्रांति में विश्राम हो।
बहुत सुंदर मन को भावुक करती रचना,..अच्छी प्रस्तुति.....
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
आपके प्रार्थना में हम भी सहभागी हैं...
ReplyDeleteतज धरा को जा चुकीं पर सर्वदा मुझको लगे,
ReplyDeleteपेड़, छैया, नद, पवन बन संग तुम अविराम हो।
अति उत्कृष्ट रचना बधाई स्वीकार करें .माँ दिवस की .
मदर्स डे पर मेरे द्वारा पढ़ी गई अब तक सर्व श्रेष्ठ रचना भाव अर्थ और प्रतीक विधान सभी विषयानुकूल .,विषयानुरूप .
ReplyDeleteमाँ शब्दों में कहाँ समाये,
ReplyDeleteजितना बाँधू, बढ़ता जाये।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 17 -05-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....ज़िंदगी मासूम ही सही .
मां को समर्पित यह काव्य रचना हिन्दी साहित्य को अनुपम उपहार है। जिस भाव से यह कविता लिखी गई है वह मन ही नहीं दिल को भी स्पर्श करती है।
ReplyDeleteआस तुम, विश्वास तुम, विश्रांति में विश्राम हो!!
ReplyDeleteमाँ का स्नेह अतुलनीय है.. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है, शब्द-शब्द जैसे नमन कर रहे हों माँ को!
सादर
मधुरेश
माँ बस माँ है ........
ReplyDeleteबहुत सुंदर, मां के प्रति श्रद्धा और प्रेम से भरपूर कविता..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
माँ दहकती धूप में तुम छांव हो तुम शाम हो।
ReplyDeleteस्वेद से जब मन भरा हो, सांस हो, आराम हो। .....
मां के प्रति श्रद्धा और प्रेम से भरपूर कविता..बहुत सुन्दर....
माँ तुझे सलाम!!!माँ को समर्पित...मर्मस्पर्शी,सुन्दर रचना
ReplyDeletevery touching...
ReplyDeleteतज धरा को जा चुकीं पर सर्वदा मुझको लगे,
ReplyDeleteपेड़, छैया, नद, पवन बन संग तुम अविराम हो।
साथ संजय को रखो माँ थाम अंगुली उम्र भर,
आस तुम, विश्वास तुम, विश्रांति में विश्राम हो।
bahut hi sundar prastuti Mishr ji badhai sweekaren
बहुत प्यारा सम्मोहन अनुराग माँ के प्रति ओ रोम रोम में बसने वाले राम ....
ReplyDeleteतुम यशोदा, देवकी तुम, कृष्ण भी तुम राधिका,
छंद तुलसी का मधुर, तुम जानकी तुम राम हो।
ram ram bhai
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें .
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शुक्रवार, 18 मई 2012
नुस्खे सेहत के /दिमाग के सीखने की क्षमता को कुंद कर सकता हैं शक्कर से लदी चीज़ों का अधिक सेवन
साथ संजय को रखो माँ थाम अंगुली उम्र भर,
ReplyDeleteआस तुम, विश्वास तुम, विश्रांति में विश्राम हो।
दीप आशा हो तुम्हीं, तुम आरती हो श्लोक भी,
जब जुबां खोली, निकलता, एक पावन नाम हो।
beautiful lines
बहुत ही खुबसूरत
ReplyDeleteऔर कोमल भावो की अभिवयक्ति......
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तज धरा को जा चुकीं पर सर्वदा मुझको लगे,
ReplyDeleteपेड़, छैया, नद, पवन बन संग तुम अविराम हो।
माँ तुझे सलाम...बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर शब्दों में ये पोस्ट लिखी है आपने।
ReplyDeleteस्वानुभूति से सहज निसृत ये रचना साधारणीकरण कराने में सर्वथा सक्षम है .लिखा आपने है अनुभूत हमने भी किया .शुक्रिया इतनी खूबसूरत रचना के लिए .माँ का व्यक्ति चित्र है आखिर .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
सोमवार, 21 मई 2012
यह बोम्बे मेरी जान (चौथा भाग )
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तेरी आँखों की रिचाओं को पढ़ा है -
उसने ,
यकीन कर ,न कर .
माँ बस माँ है .
ReplyDeleteदीप आशा हो तुम्हीं, तुम आरती हो श्लोक भी,
ReplyDeleteजब जुबां खोली, निकलता, एक पावन नाम हो।
मां की ममता और महानता का गुणगान करती बहुत सुंदर रचना।
मातृशक्ति को नमन !
बहुत ही प्रभावित करती पक्तियां । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसांध्य कालीन प्रार्थना ,वेद की रिचाओं सा सम्मोहन लिए है यह कविता .
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना। माँ जैसा कोई नहीं!
ReplyDeleteकोमल भाव से सजी बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना,,,,
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट रचना बंधुवर !
ReplyDeleteतज धरा को जा चुकीं पर सर्वदा मुझको लगे,
पेड़, छैया, नद, पवन बन संग तुम अविराम हो।