सभी सुधीजनों को सादर नमस्कार... महफिले दानां में यह नादां हबीब एक नयी ग़ज़ल के साथ पेशे खिदमत है... मुताअला फरमाएं... "राहें हैं बारूद भरी..."
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किसकी बात करूँ यारा.
कितनी बार मरुँ यारा.
राहें हैं बारूद भरी,
चलते हुए डरूँ यारा. सांप ही नहीं मरता है,
कितना वार करूँ यारा.
कितने हैं ज़ख्मात हरे,
बन कर पीर झरूँ यारा.
जो कह दूं बिंदास कहूं,
छुप ना बात करूँ यारा.
सफ़र 'हबीब' अभी लंबा,
कैसे मैं ठहरूँ यारा.
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bahtrin gzal hai bhaijaan badhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteकितने हैं ज़ख्मात हरे,
ReplyDeleteबन कर पीर झरूँ यारा।
छोटी बहर लेकिन बहुत गहरी बातें।
बढ़िया ग़ज़ल....अच्छी लगी।
क्या बात कही है हबीब भाई लेकिन कुछ कम हो गयी मियां पढ़ने वालो की भी देखो कुछ लाईने और तो फ़ेको मजा आते आते वो जाने का कह उठीं हम मनाते ही रह गये पर मनुहार न बैठी :)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से कम शब्दों में अपनी बात कही है आपने...
ReplyDeletebahut khub...
ReplyDeletebahut kuch bahut kam shabdo mei bayaan kar gaye aap...aabhar
कितने हैं ज़ख्मात हरे,
ReplyDeleteबन कर पीर झरूँ यारा.
छोटी बहर की ख़ूबसूरत और मुकम्मल ग़ज़ल.......
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteआज 01- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
badhiya gazal.. bahut sundar
ReplyDeleteख़ूबसूरत ग़ज़ल.......
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से कम शब्दों में अपनी बात कही है आपने...
ReplyDeleteलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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bahut umda gazel.
ReplyDeleteसटीक और लाजवाब गज़ल
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब कहा है आपने .आभार ।
ReplyDeleteछोटी बहर में खूबसूरती से कही गयी ग़ज़ल अच्छी लगी.
ReplyDeleteबहुत भाव पूर्ण खूबसूरत गजल.आभार.
ReplyDeleteजो कह दूं बिंदास कहूं,
ReplyDeleteछुप ना बात करूँ यारा.
सफ़र 'हबीब' अभी लंबा,
कैसे मैं ठहरूँ यारा.
waah ...
बहुत अच्छी गजल |
ReplyDeleteआशा