(१)
सुबह सुबह
कँवल की पांखुरी पर
थिरकती...
शबनम की वह बूँद
कितनी खुश...
कितनी प्यारी
लग रही है....
उसे कहाँ पता है..
अभी कुछ ही देर में
सूरज की किरने आयेंगी....!!!
Photo Taken from google & Edited |
(२)
दो परिचित से हांथों ने
आगे बढ़कर
खिल कर महकने को आतुर
रजनीगंधा के पौधे को,.
उखाड लिया जड़ से....
और डाल दिया
लेजाकर बाहर कूड़ेदान में...
बिलखती धरती का हाथ
हाथों में लिए सिसकता रहा
देर तक पूनम का चाँद.....!!!
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||लें बेटियों को बचाने का संकल्प; तभी होगा सृष्टि का कायाकल्प||
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खूबसूरत क्षणिकाये...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteचंद अलफ़ाज़ कितना कुछ कह गए...
सादर.
मर्मस्पर्शी ह्रदय के भाव ....!!
ReplyDeleteबहुत गहन रचना ....!!
संजय की दृष्टी सजग, जात्य-जगत जा जाग ।
ReplyDeleteजीवन में जागे नहीं, लगे पिता पर दाग ।
लगे पिता पर दाग, पालिए सकल भवानी।
भ्रूण-हत्या आघात, पाय न पातक पानी ।
निर्भय जीवन सौंप, बचाओ पावन सृष्टी ।
कहीं होय न लोप, दिखाती संजय दृष्टी ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
सूरज आने तक ही जी लेती है शबनम की बूँद..
ReplyDeletebahut hikhubsurat rachna habib ji बिलखती धरती का हाथ
ReplyDeleteहाथों में लिए सिसकता रहा
देर तक पूनम का चाँद.....!!!
nice..
सशक्त क्षणिकाये...
ReplyDeleteवाह !!!!!बहुत सुंदर सशक्त प्रस्तुति,..संजय जी,...बधाई
ReplyDeleteRESENT POST...फुहार...फागुन...
हृदयस्पर्शी रचना ....सार्थक सन्देश
ReplyDeleteलें बेटियों को बचाने का संकल्प; तभी होगा सृष्टि का कायाकल्प||... लिया संकल्प
ReplyDeleteअद्भुत बिम्ब ले कर क्षणिकएं रची हैं .... मर्मस्पर्शी ....
ReplyDeleteलें बेटियों को बचाने का संकल्प; तभी होगा सृष्टि का कायाकल्प||...
दृढ़ता से संकल्प लिया ॰
समाज को आइना दिखलाती भ्रूण ह्त्या के बिम्ब मुखरित करती बहतरीन विचार कणिकाएं .भाव सरिता .
ReplyDeleteकलंक है अपने समाज पे ... जहा पर और जब तक अपने देश में भ्रूण हत्याएं होती रहेंगी समाज उन्नति नहीं कर सकेगा ...देश वासियों को ये बात समझनी चाहिए ...
ReplyDeleteलें बेटियों को बचाने का संकल्प; तभी होगा सृष्टि का कायाकल्प||
ReplyDeleteयह संदेश जन जन तक पहुँचे...
सादर
प्रभावी और सशक्त प्रस्तुति ..
ReplyDeleteइन दोनों क्षणिकाओं की मारक क्षमता जबर्दस्त है। सीधे दिल पर प्रहार करती है। पर क्या हम इतने थेथर हो गए हैं, जो कुछ भी असर ही नहीं करता?
ReplyDeleteसुन्दर,,व कलात्मक,भावाव्यक्ति ...
ReplyDeleteकविता कुछ सोचने के लिए बाध्य करती है।
ReplyDeleteनए बिम्बों के प्रयोग से रचना ज्यादा प्रभावशाली बन गई है।
बिलखती धरती का हाथ
ReplyDeleteहाथों में लिए सिसकता रहा
देर तक पूनम का चाँद.....!!!
कलात्मक,भावाव्यक्ति ...
अद्भुत कविताएं हैं। कोई जी नहीं पाता,तो कोई जीते-जी मर जाता है!
ReplyDeletemarmik......
ReplyDeletebilkul lajbab kshanikayen ....
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत मर्मस्पर्शी क्षणिकाएं!
ReplyDeleteबहुत सुंदर लाजबाब रचना, बेहतरीन प्रस्तुति.......
ReplyDeleteMY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
बहुत सुन्दर अलफ़ाज़ कितना कुछ कह गए...बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteजिन के बेटियाँ नहीं है वही जान सकते हैं बेटियों का महत्त्व |बहुत अच्छी प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
मैं भी एक बेटी का बाप हूँ.. जितनी संवेदनशीलता से आपने बयाँ किया है उतनी ही गहराई से पैठ गए हैं भाव मेरे ह्रदय में!! बहुत सुन्दर!!
ReplyDeletekavita bolti kam hai ishaare jyada karti hai..behtarin prateekon se itne najakat bhare andaaj me sochne ko bibash karti rachna...bhrun hatya ko bhee bahut hee khoobsurti se shabdon kee jaadugari se dikhaya hai,,,shabdon kee is jaadugari ko naman aaur amantran ke sath
ReplyDeleteकोमल अहसास ,सहज कर रखने के वास्ते !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
गहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeletebahut hi sundar aur shandar post.
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पे आये बहुत ही अच्छा लगा आपका बहुत बहुत हार्दिक अभिनन्दन है मेरे ब्लॉग पे बस आप असे ही मेरा उत्साह बढ़ाते रहिये
ReplyDeleteजिसे मुझे उर्जा मिलती है
आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है बस असे ही लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये
होली की हार्दिक सुभकामनाये
१.बेटी है गर्भ में गिराए क्या ??????
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/02/blog-post_07.हटमल
2दो जन्म
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: जब इस्लाम मूर्ति पूजा के विरुद्ध है तो मुसलमान काब..
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/02/blog-post_27.html
मन को छू गयी आपकी क्षणिका ...खास तौर पर दूसरी वाली ..बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteसुबह सुबह
ReplyDeleteकँवल की पांखुरी पर
थिरकती...
शबनम की वह बूँद
कितनी खुश...
कितनी प्यारी
लग रही है....
...................बेहतरीन प्रस्तुति.
प्रभावी और सशक्त प्रस्तुति। सुन्दर,
ReplyDeleteकलात्मक,भावाव्यक्ति।
धन्यवाद।
आनन्द विश्वास
सार्थक सन्देश... दूर तक पहुंचे ये आवाज....
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार,
" सवाई सिंह "
कितनी प्यारी लग रही वह शबनम की बूँद
ReplyDeleteकुछ पल में खो जायेगी यूँ ही आँखें मूँद
यूँ ही आँखें मूँद , मिटाने को हैं आतुर
उसके अपने हुये आज असुरों से निष्ठुर
रजनीगंधा की कलियों की उफ् लाचारी
माली ही तेजाब डाल कर सींचे क्यारी.
संजय जी, सार्थक संदेश देती क्षणिकाओं के लिये बधाई स्वीएकार करें.
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सशक्त सटीक रचना,......
ReplyDeleteMY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
बिम्बों के माध्यम से बोलती रचना। अनुभूतियों की ऐसी तीव्रता मैंने कम जगह ही देखी है। तारीफ के लिए अल्फाज़ कम पड़ जाएँ शायद। खूब जमेगी दोस्त! इसी तरह लिखते रहिए।
ReplyDeleteबिलखती धरती का हाथ
ReplyDeleteहाथों में लिए सिसकता रहा
देर तक पूनम का चाँद.....!!!
मत बनने दो -माँ की कोख को बच्ची का कब्रिस्तान .
MOTHER'S WOMB CHILD'S TOMB.
bahut khoob
ReplyDeleteसुंदर कोमल भावपूर्ण कविता
ReplyDeletesundar bimb ke sath sarthak chintanpurn rachna prastuti hetu aabhar!
ReplyDeletebahut hi sundar mishr ji .....sadar badhai
ReplyDeletemarmik abhiwaykti.
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDeleteइस अद्भुत रचना के लिए बधाई स्वीकारें. .
नीरज
मार्मिक क्षणिकाएं।
ReplyDelete.
ReplyDeleteसब क्षणिकाएं सराहनीय हैं …
साधुवाद!