Saturday, May 28, 2011

द्रौपदी


गूगल से साभार
समस्त स्नेही जनों को सादर नमस्कार... चिरकन्या का वरदान प्राप्त महाभारत की  अमर पात्र द्रौपदी के सन्दर्भ में   आदरणीया बड़ी बहन संगीता स्वरुप जी की रचना (http://geet7553.blogspot.com/2011/05/blog-post_27.html) और आदरणीया बड़ी बहन रश्मि प्रभा जी की अभिव्यक्ति (http://lifeteacheseverything.blogspot.com/) को पढ़कर स्मृत हो आई अपनी संदार्भानुकुल रचना आदरणीया बड़ी बहन रश्मि प्रभा जी के आशीर्वाद उपरान्त प्रस्तुत है.....

द्रौपदी

द्रौपदी....
तुम व्यर्थ का अपराधबोध
ना पालो अपने मन में...
कि कुरुक्षेत्र की धरा तुम्हारे कारण लाल हुई....

कुरुक्षेत्र की नीव थी
धृतराष्ट्र की नयनहीन पंख लिए,
निराधार प्रतिशोध के आकाश में
उड़ने वाली उसकी महत्वाकांक्षा,
जो बरसना और सींचना जानती थी बादल बनकर
केवल दुर्योधन की कलुषित विचारधारा को....

कुरुक्षेत्र की नींव थे
काल को जीत लेने वाले
भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य के आँखों की पट्टियां,
पट्टियां... जो उन्होंने स्वयं बाँध रखे थे
अपने त्रिकाल दर्शी नेत्रों पर... गांधारी की तरह...
....सिंहासन के सुरक्षा की
....सिंहासन से वफादारी की
....शाही नमक के क़र्ज़ की, मानो सिंहासन बड़ा हो
निरपराध अपने प्राण गंवाने वाले
लक्ष लक्ष सैनिकों के जीवन से.....

कुरुक्षेत्र की नीव था
विनाशकाले विपरीत बुद्धि की उक्ति को चरितार्थ करता
धर्मराज युधिष्ठर का द्युतव्यसन,
जिसने धन दौलत, राज्य, सम्मान
सब कुछ लुटा कर
तुम्हें दाँव पर लगाया...
मानों तुम
जीती-जागती, संवेदनशील स्वतंत्र अस्तित्व न होकर,
आत्मसम्मान विहीन निर्जीव वस्तु थीं....

कुरुक्षेत्र की नीवं थी
वीरता और महानता का छद्म बाना ओढ़े
सदा से स्थापित वह कापुरुष मानसिकता,
जो सदियों सदियों बाद भी
प्रस्फुटित होती है,  
कभी ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी को
ताडना का अधिकारी बताते बेशर्म तुकबंदी की तरह,
कभी आरूषी, कभी जेसिका का रूप धरकर
तो कभी तथाकथित सभ्य समाज के क्रूर पंजों द्वारा
महकने से पहले ही मसल दिए जाने वाले  
गर्भस्थ फूलों की शक्ल लेकर....

इसलिए... द्रौपदी !!!
तुम स्वयम को मुक्त करो इस अपराधबोध से...
क्योंकि जब तक
इस कापुरुष मानसिकता का विनाश नहीं होता
कुरुक्षेत्र बनते रहे है, और बनते भी रहेंगे....


********************

11 comments:

  1. "क्योंकि जब तक

    इस कापुरुष मानसिकता का विनाश नहीं होता

    कुरुक्षेत्र बनते रहे हैं , और बनते रहेंगे "

    ...........................द्रौपदी के बारे में एक सकारात्मक चिंतन , नारी की स्थिति की गहन मीमांसा

    ..........स्वार्थ में डूबे समाज को आईना दिखाती यथार्थ भावभूमि की बेबाक रचना

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  2. bat ateet se shuru hui aur mahatvpoorn kshetron ko chhooti hui vartman men khatm hui ,,
    waah !!!!
    bahut sarthak rachna !!!
    jab tak draupadi khud ko ghalat manti rahegi tab tak har samay aur sthan par use hi ghalat siddh kiya jata rahega ,,,apni sthiti ko use hi sudrudh banana hoga .
    umda rachna ke liye badhai.

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  3. कुरुक्षेत्र की नींव थे
    काल को जीत लेने वाले
    भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य के आँखों की पट्टियां,
    पट्टियां... जो उन्होंने स्वयं बाँध रखे थे
    अपने त्रिकाल दर्शी नेत्रों पर... गांधारी की तरह..
    द्रौपदी !!!
    तुम स्वयम को मुक्त करो इस अपराधबोध से...
    क्योंकि जब तक
    इस कापुरुष मानसिकता का विनाश नहीं होता
    कुरुक्षेत्र बनते रहे है, और बनते भी रहेंगे....
    ........ क्रमशः याज्ञसेनी, द्रौपदी उवाच और द्रौपदी की धार में बहते हुए मैंने जाना यह प्रश्न अनुत्तरित नहीं , व्याख्या और गुबार सब अवतरित हुए द्रौपदी के लिए . किसी भी व्यक्तित्व का निर्णायक कोई एक काल कोई एक व्यक्ति नहीं होता ..... अपना नजरिया होता है. कहीं बेबस प्रश्न होते हैं कहीं जयघोष कहीं आक्रोशित उत्तर ,

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  4. एक ही विषय पर यह विचार विमर्श मन को सुकून देता हुआ सा ...

    रश्मि जी ने सही कहा है ..किसी भी व्यक्तित्व का निर्णायक कोई एक काल कोई एक व्यक्ति नहीं होता ...

    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  5. गौरव का प्रणाम स्वीकार करें...

    कुरुक्षेत्र की नींव थे
    काल को जीत लेने वाले
    भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य के आँखों की पट्टियां,
    पट्टियां... जो उन्होंने स्वयं बाँध रखे थे
    अपने त्रिकाल दर्शी नेत्रों पर... गांधारी की तरह..
    द्रौपदी !!!
    तुम स्वयम को मुक्त करो इस अपराधबोध से...
    क्योंकि जब तक
    इस कापुरुष मानसिकता का विनाश नहीं होता
    कुरुक्षेत्र बनते रहे है, और बनते भी रहेंगे....

    वाकई इन पंक्तियों के बाद आपने कुछ भी कहने हेतु स्थान शेष नहीं छोड़ा है अतः इस बेहतरीन एवं सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें |
    आदरणीय संगीता स्वरूप जी एवं रश्मि प्रभा जी को भी सार्थक चिंतन हेतु सादर आभार...
    ****************

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  6. इसलिए... द्रौपदी !!!
    तुम स्वयम को मुक्त करो इस अपराधबोध से...
    क्योंकि जब तक
    इस कापुरुष मानसिकता का विनाश नहीं होता
    कुरुक्षेत्र बनते रहे है, और बनते भी रहेंगे....


    सशक्त कविता .....
    दो तो पढ़ चुकी हूँ ....
    तीसरी पढने जा रही हूँ ....
    द्रौपदी को याद करने की कोई ख़ास वजह ......?

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  7. गहन चिंतन ..
    अनुत्तरित प्रश्न....
    लेकिन आपकी मीमंसा ने सुकून पंहुचाया...

    हजारों कारणों में से द्रोपदी भी केवल एक कारण रही है...पूर्ण रूप से केवल वो ही कारण थी माहाभारत के युद्ध के लियें ऐसा माना नहीं जा सकता...

    आभार हबीब जी....

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  8. द्रौपदी के पात्र के माध्यम से समाज के कई प्रश्न उठाती हुई लाजवाब रचना ...

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  9. एक अलग आयाम प्रस्तुत करती कविता।

    सादर

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  10. Droupadi ko to waise bhi apraadhbodh nahi hona chahiye tha... Droupadi ne to tab bahut sahanshakti dikhai, bhala aaj ke waqt mei koi kisi naari ko itna daba leta???
    khair... droupadi ki sahanshakti laajawaab thi, aur use apraadhbodh karaya gaya tha...

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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