जाने क्या था
उन उंगलियों की
हरकत में...
कि जमीन का सीना फाड़कर
सैकड़ों बिजलियाँ
मानों एक साथ
आसमान की ओर लपकीं...
सिमटते धूप का जिस्म
जर्रे जर्रे होकर बिखर गया
दूर तक,
जगमगाने लगा
हर तरफ रक्तिम अंधियारा...
चीखों के बाजार सज गये...
मुर्दा अहसासों के उपर
जिन्दा चीखों के बाजार...
बाजार...!!
जिसका कोई पारावार नहीं...
बाजार...!!
जहां कोई खरीददार नहीं...
दूर क्षितिज के पास
बूढ़ा सूरज
समेट रहा है
क्षत-विक्षत घूप के
जख्मी टुकड़े...
कि कल फिर
पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...
कि जिन्दगी चलती रहे...
छुपी उंगलियों की वहशियाना हरकतों,
जगमगाते रक्तिम अंधियारों,
और चीखों की
जिन्दा बाजारों के बीच
सांसे पलती रहें...
कि जिन्दगी चलती रहे...!!
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आपने रौगटे खडे करने वाला सच कह दिया…………बेहतरीन
ReplyDeleteदर्द भरे शब्दों से सजी लेखनी
ReplyDeleteदूर क्षितिज के पास
ReplyDeleteबूढ़ा सूरज
समेट रहा है
क्षत-विक्षत घूप के
जख्मी टुकड़े...
कि कल फिर
पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...दर्द के खून से सराबोर श्रद्धांजली या सिसकियाँ
कि कल फिर
ReplyDeleteपैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...
कि जिन्दगी चलती रहे...
आह!
प्रासंगिक एवं ह्रदयविदारक प्रस्तुति।
ReplyDeleteमार्मिक भाव.... गहरी बात लिए रचना
ReplyDeleteदूर क्षितिज के पास
ReplyDeleteबूढ़ा सूरज
समेट रहा है
क्षत-विक्षत घूप के
जख्मी टुकड़े..
संजय भाई, बिल्कुल ही नये अंदाज में पीड़ा का चित्र खींचा है.
र क्षितिज के पास
ReplyDeleteबूढ़ा सूरज
समेट रहा है
क्षत-विक्षत घूप के
जख्मी टुकड़े...
अद्भुत बिम्ब योजना द्वारा आपने जीवन के कुछ जटिल प्रश्नों को सामने रखा है।
भावनाओं को व्यक्त करता सशक्त लेखन ।
ReplyDeleteमार्मिक पर सत्य से लबरेज
ReplyDeleteदूर क्षितिज के पास
ReplyDeleteबूढ़ा सूरज
समेट रहा है
क्षत-विक्षत घूप के
जख्मी टुकड़े...
कि कल फिर
पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...
सुभानाल्लाह........दिल जीत लेने वाली पोस्ट............बहुत पसंद आई|
भावपूर्ण रचना बहुत सुंदर बधाई....
ReplyDeleteनई पोस्ट में आपका स्वागत है..
रक्तिम अंधियारे का भयावह सच..
ReplyDeleteबेमिसाल शब्द और लाजवाब भाव...उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteनीरज
बहुत खूब,हबीब भाई.
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति.
meree pichhli tippni bhi aap ke gmail mein padee huee hogee.google baba ki jai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
ReplyDeleteगहन भाव समेटे रचना के लिए बधाई |
ReplyDeleteआशा
संजय जी ,
ReplyDeleteइस रचना पर क्या लिखूं ? ऐसा लग रहा है की दृश्य सामने उपस्थित हो गया हो ..नि:शब्द हूँ ..
.
ReplyDeleteप्रिय भाई संजय मिश्र 'हबीब'जी
सस्नेहाभिवादन !
मर्मस्पर्शी रचना -
दूर क्षितिज के पास
बूढ़ा सूरज
समेट रहा है
क्षत-विक्षत घूप के
जख्मी टुकड़े...
कि कल फिर
पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...
कि जिन्दगी चलती रहे...
भाव पक्ष का चरम छूती हुई इस रचना के लिए साधुवाद !
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
उँगलियाँ ही बटन दबाती हैं, उन्हें पता नहीं होता कि वे क्या करने जा रही हैं - बेहद भाव प्रवण प्रस्तुति
ReplyDeleteगहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteबहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर (हरिवंश राय बच्चन) आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteThat was so sweet. Excellent piece of writing.
ReplyDeleteFrom everything is canvas
बूढ़ा सूरज
ReplyDeleteसमेट रहा है
क्षत-विक्षत घूप के
जख्मी टुकड़े...
कि कल फिर
पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...
कि जिन्दगी चलती रहे...
नए बिंबों का प्रयोग कविता को नया आयाम दे रहा है।
सुंदर कविता के लिए बधाई।
एक सच बयान करती हुई ये बेहतरीन रचना रोंगटे खड़े कर देती है
ReplyDeleteमुर्दा अहसासों के उपर
ReplyDeleteजिन्दा चीखों के बाजार...
बाजार...!!
जिसका कोई पारावार नहीं...
बाजार...!!
जहां कोई खरीददार नहीं...
एक बहुत अच्छी रचना....
sanjay bhai bahut achhaa likh rahe ho sach batata hoon mja aa gya bhi ..........
ReplyDeleteबाकियों के लिए जीवन चलता ही रहता है। बस,जो नहीं हैं सो नहीं हैं। जो होते हैं,वे भी कसक लिए ही जी पाते हैं।
ReplyDeleteकल 30/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, थी - हूँ - रहूंगी ....
ReplyDeleteबड़ी हाहाकारी कविता है अंधियारों की चीख लिए
ReplyDeleteदूर क्षितिज के पास
ReplyDeleteबूढ़ा सूरज
समेट रहा है
क्षत-विक्षत घूप के
जख्मी टुकड़े...
कि कल फिर... जिंदगी चलती रहे
इंसान की हैवानगी
हमेशा ही इंसानियत का नुकसान कर जाती है
और इंसान
हर अच्छा इंसान..
अपने अपने तरीकों से
उसकी भरपाई करने में लगा रहता है
हमेशा ही ....
rom -rom me romanch bhar diya..
ReplyDeletebahut hi behtarin rachna...!
बेमिसाल भाव......
ReplyDeleteइस भावपूर्ण अभिव्यक्ति में हम आपके साथ हैं।
ReplyDeleteगहरे भाव और सुन्दर अभिव्यक्ति..बेमिशाल प्रस्तुति के लिए बधाई..
ReplyDeleteभाई संजय जी बहुत सुन्दर कविता बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeletebahut hi acchi or sundar rachana hai...
ReplyDeleteनिशब्द !स्तब्द !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ! खुश रहिए|
बेहतरीन सुन्दर भावो की अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबहुत संवेदना और क्षोभ है इस रचना में ... जो कुछ हद तक वर्तमान दशा की हाताषा भी दिखलाती है ...
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