Friday, November 25, 2011

...जिन्दगी चलती रहे !

जाने क्या था
उन उंगलियों की
हरकत में...
कि जमीन का सीना फाड़कर
सैकड़ों बिजलियाँ
मानों एक साथ
आसमान की ओर लपकीं...
सिमटते धूप का जिस्म
जर्रे जर्रे होकर बिखर गया
दूर तक,
जगमगाने लगा
हर तरफ रक्तिम अंधियारा...
चीखों के बाजार सज गये...
मुर्दा अहसासों के उपर
जिन्दा चीखों के बाजार...
बाजार...!!
जिसका कोई पारावार नहीं...
बाजार...!!
जहां कोई खरीददार नहीं...

दूर क्षितिज के पास
बूढ़ा सूरज
समेट रहा है
क्षत-विक्षत घूप के
जख्मी टुकड़े...
कि कल फिर
पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...
कि जिन्दगी चलती रहे...
छुपी उंगलियों की वहशियाना हरकतों,
जगमगाते रक्तिम अंधियारों,
और चीखों की
जिन्दा बाजारों के बीच
सांसे पलती रहें...
कि जिन्दगी चलती रहे...!!

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41 comments:

  1. आपने रौगटे खडे करने वाला सच कह दिया…………बेहतरीन

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  2. दर्द भरे शब्दों से सजी लेखनी

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  3. दूर क्षितिज के पास
    बूढ़ा सूरज
    समेट रहा है
    क्षत-विक्षत घूप के
    जख्मी टुकड़े...
    कि कल फिर
    पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...दर्द के खून से सराबोर श्रद्धांजली या सिसकियाँ

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  4. कि कल फिर
    पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...
    कि जिन्दगी चलती रहे...
    आह!

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  5. प्रासंगिक एवं ह्रदयविदारक प्रस्तुति।

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  6. मार्मिक भाव.... गहरी बात लिए रचना

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  7. दूर क्षितिज के पास
    बूढ़ा सूरज
    समेट रहा है
    क्षत-विक्षत घूप के
    जख्मी टुकड़े..
    संजय भाई, बिल्कुल ही नये अंदाज में पीड़ा का चित्र खींचा है.

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  8. र क्षितिज के पास
    बूढ़ा सूरज
    समेट रहा है
    क्षत-विक्षत घूप के
    जख्मी टुकड़े...
    अद्भुत बिम्ब योजना द्वारा आपने जीवन के कुछ जटिल प्रश्नों को सामने रखा है।

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  9. भावनाओं को व्‍यक्‍त करता सशक्‍त लेखन ।

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  10. मार्मिक पर सत्य से लबरेज

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  11. दूर क्षितिज के पास
    बूढ़ा सूरज
    समेट रहा है
    क्षत-विक्षत घूप के
    जख्मी टुकड़े...
    कि कल फिर
    पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...

    सुभानाल्लाह........दिल जीत लेने वाली पोस्ट............बहुत पसंद आई|

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  12. भावपूर्ण रचना बहुत सुंदर बधाई....
    नई पोस्ट में आपका स्वागत है..

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  13. रक्तिम अंधियारे का भयावह सच..

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  14. बेमिसाल शब्द और लाजवाब भाव...उत्कृष्ट रचना

    नीरज

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  15. बहुत खूब,हबीब भाई.

    शानदार अभिव्यक्ति.

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  16. meree pichhli tippni bhi aap ke gmail mein padee huee hogee.google baba ki jai.

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  17. गहन भाव समेटे रचना के लिए बधाई |
    आशा

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  18. संजय जी ,
    इस रचना पर क्या लिखूं ? ऐसा लग रहा है की दृश्य सामने उपस्थित हो गया हो ..नि:शब्द हूँ ..

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  19. .


    प्रिय भाई संजय मिश्र 'हबीब'जी
    सस्नेहाभिवादन !

    मर्मस्पर्शी रचना -
    दूर क्षितिज के पास
    बूढ़ा सूरज
    समेट रहा है
    क्षत-विक्षत घूप के
    जख्मी टुकड़े...
    कि कल फिर
    पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...
    कि जिन्दगी चलती रहे...

    भाव पक्ष का चरम छूती हुई इस रचना के लिए साधुवाद !

    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  20. उँगलियाँ ही बटन दबाती हैं, उन्हें पता नहीं होता कि वे क्या करने जा रही हैं - बेहद भाव प्रवण प्रस्तुति

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  21. गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  22. बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर (हरिवंश राय बच्चन) आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  23. That was so sweet. Excellent piece of writing.

    From everything is canvas

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  24. बूढ़ा सूरज
    समेट रहा है
    क्षत-विक्षत घूप के
    जख्मी टुकड़े...
    कि कल फिर
    पैबन्दों से लबरेज उजाला ला सके...
    कि जिन्दगी चलती रहे...

    नए बिंबों का प्रयोग कविता को नया आयाम दे रहा है।

    सुंदर कविता के लिए बधाई।

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  25. एक सच बयान करती हुई ये बेहतरीन रचना रोंगटे खड़े कर देती है

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  26. मुर्दा अहसासों के उपर

    जिन्दा चीखों के बाजार...
    बाजार...!!
    जिसका कोई पारावार नहीं...
    बाजार...!!
    जहां कोई खरीददार नहीं...
    एक बहुत अच्छी रचना....

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  27. sanjay bhai bahut achhaa likh rahe ho sach batata hoon mja aa gya bhi ..........

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  28. बाकियों के लिए जीवन चलता ही रहता है। बस,जो नहीं हैं सो नहीं हैं। जो होते हैं,वे भी कसक लिए ही जी पाते हैं।

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  29. कल 30/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, थी - हूँ - रहूंगी ....

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  30. बड़ी हाहाकारी कविता है अंधियारों की चीख लिए

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  31. दूर क्षितिज के पास
    बूढ़ा सूरज
    समेट रहा है
    क्षत-विक्षत घूप के
    जख्मी टुकड़े...
    कि कल फिर... जिंदगी चलती रहे

    इंसान की हैवानगी
    हमेशा ही इंसानियत का नुकसान कर जाती है
    और इंसान
    हर अच्छा इंसान..
    अपने अपने तरीकों से
    उसकी भरपाई करने में लगा रहता है
    हमेशा ही ....

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  32. rom -rom me romanch bhar diya..
    bahut hi behtarin rachna...!

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  33. इस भावपूर्ण अभिव्‍यक्ति में हम आपके साथ हैं।

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  34. गहरे भाव और सुन्दर अभिव्यक्ति..बेमिशाल प्रस्तुति के लिए बधाई..

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  35. भाई संजय जी बहुत सुन्दर कविता बधाई और शुभकामनाएं |

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  36. निशब्द !स्तब्द !
    शुभकामनाएँ! खुश रहिए|

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  37. बेहतरीन सुन्दर भावो की अभिवयक्ति.....

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  38. बहुत संवेदना और क्षोभ है इस रचना में ... जो कुछ हद तक वर्तमान दशा की हाताषा भी दिखलाती है ...

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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