आज (३१ मई) ही के दिन पिछले वर्ष की बात है. मेरे एक अज़ीज़ मित्र ‘क’ के बड़े भाई ने फोन पर मुझे शाम की चाय पर बुलाया. मैं बड़ा हतप्रभ... ऐसा पहले तो नहीं हुआ... बात क्या है? खैर, आफिस से छूटने के बाद शाम उनके चकित करने वाले दावत के बारे में सोचता, मैं उनके घर पहुंचा वहाँ मेरा आश्चर्य और बढ़ गया जब देखा कि हमारे ग्रुप के पाँचों मित्र भी वहाँ बुलाये गये है. ‘क’ सहित हम सभी चकित थे... मामला क्या है? तभी ‘क’ की पत्नी किचन से चाय और पकौड़े की ट्रे लेकर आई. मैंने इशारे से जानने की कोशिश की तो वह शरारती मुस्कराहट लिए चाय और पकौड़े टेबल में रख कर वापस चली गयी. इसी समय ‘क’ के बड़े भाई अपने कमरे से बाहर निकले और सबके अभिवादन का जवाब देते हुए अपने लिए चाय का प्याला उठाकर हमें चाय-पकौड़े लेने का इशारा करते हुए सामने बैठ गये.
हम सभी मित्रों ने रहस्य की थाह लेने की कोशिश करते हुए चाय समाप्त की. बड़े भाई की गंभीर मुद्रा देखकर लग रहा था कि जरूर कोई गंभीर बात होगी. तभी वे उठे और एक धमाका सा कर दिया. उन्होंने पेन्ट की जेब से सिगरेट का डिब्बा निकालकर मेरी ओर बढ़ाया और लेने का इशारा किया. मैं हकला सा गया... य.. य.. ये क्या भईया...? मैं सिगरेट नहीं पिता. बारी बारी उन्होंने सभी दोस्तों को सिगरेट आफर किया सब की हालत खराब... जवाब वही ‘मेरा’ वाला....आखिर में वे ‘क’ के पास गये और संजीदगी से बोले- “मैं भी नहीं पीता सिगरेट, घर में भी कोई नहीं पीता, तुम्हारे कोई दोस्त नहीं पीते... तुमने कैसे इससे दोस्ती कर ली?” उस वक्त ‘क’ का चेहरा याद कर अभी तो मुझे जोर से ठाहाका लगाने की इच्छा हो रही है....(और जैसा कि भाई के चले जाने के बाद लगाया भी था जोरदार ठहाका हम सभी ने...) लेकिन उस वक्त.... उफ़! ‘क’ को काटो तो खून नहीं... वह कुछ बोलता उससे पहले ही बड़े भाई साहब फिर बोल पड़े – “लो.. लो... हिचक कैसी? कल तो थियेटर में बड़े छल्ले बनाए जा रहे थे....
हे भगवान... इन्होने कहाँ देख लिया... मुझे कल संडे शाम की याद आई जब हम सभी दोस्त फिल्म देखने चले गये थे... यह सच है कि मेरे सहित कोई भी मित्र सिगरेट नहीं पीता... ‘क’ भी नहीं... पर जाने क्या शौक चढ़ा था कल उसे इंटरवेल में अचानक सिगरेट लेकर सुलगा ली और फिल्म के हीरो की तरह धुएं के छल्ले बनाने की कोशिश करने लगा..... मैंने कहा भी ‘ये क्या बचपना है...? अभी उम्र रह गयी है तेरी ऐसी हरकत करने की...? लेकिन बचपना तो बचपना है... उसे भला उम्र से क्या लेना देना... वह तो कभी भी किसी भी रूप में आ सकता है, फिर चाहे वह ३८ साल की उम्र में धुएं का छल्ला बनाने जैसी शरारत के रूप में क्यूँ ना हो....
इसे ही कहते हैं “सर मुडाते ओले पड़ना” जिंदगी में पहली बार सिगरेट को होंठों से लगाया और वह भी देख लिया गया.... दोस्त को भांति भांति के कसम खिला कर बड़े भईया ने कहा- ‘आज तम्बाखू निषेध दिवस है, जो हुआ, हो गया आज के बाद फिर कभी इस खतरनाक चीज को हाथ नहीं लगाना, और वे घर से बाहर चले गये... ‘क’ के पत्नी की शरारती मुस्कराहट खिलखिलाहट में बदल गयी थी जिसमें हम सब के ठहाके भी शामिल थे... और ‘क’....? उसकी खिसियानी सूरत के तो क्या कहने थे... (हम सभी जानते थे कि वह सिगरेट को दोबारा कभी हाथ नहीं लगायेगा)
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मित्रों, आज वही दिन है ... ३१ मई... “तम्बाखू निषेध दिवस” तम्बाखू से होने वाली घातक बीमारियों का प्रतिशत निरंतर बढ़ता जा रहा है... निश्चित रूप से आज इस दिवस की सार्थकता को स्थापित करने की आवश्यकता है.... हो सके तो अपने जीवन को “धूम्र रहित” बनाने का संकल्प लें. सादर नमस्कार.
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hahaha ... haan bhai ab mat aisi galti kerna
ReplyDeleteअच्छा सबक मिला।
ReplyDeleteमारे गए गुलफ़ाम्॥
तम्बाखू निषेध दिवस याद दिलाने के लिये धन्यवाद-
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत अच्छी पोस्ट ... सबक सिखाने का तरीका भी नायाब
ReplyDeleteआज के दिन अगर कोई सिगरेट छोड़ सके तो ये दिन सार्थक है ... बहुत अच्छा लिखा है आपने ..
ReplyDeletebhiiya ji , bahot acccha likha hai.....!!! Ye ajj ke youth ka bahot badda problem apppne dhikhaya .., kash ye log samaz paye ...!
ReplyDeleteBahot sarri badayyiya apppko...!
Goood work bro..!
सबक देने का अच्छा तरीका ,
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