सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार। मित्रों भ्रष्टाचार को लेकर आज मुल्क में हरसू बड़ी गहमागहमी है। भ्रष्टाचार विरोधियों ओर समर्थकों के बीच जबरदस्त रस्साकस्सी जारी है। मुझे तो महसूस होता है कि भ्रष्टाचार आज लोकतंत्र के जिस्म में 'पेसमेकर' कि तरह अटेच हो गया है या शायद कर लिया गया है, तभी तो इसे हटाये जाने या ख़त्म किये जाने की चर्चा छिड़ते ही बवाल मच जाता है। इसे बचाने के तमाम प्रयास होने लगते हैं जो अंततः सफल भी हो जाते हैं... । इतिहास के पन्नों में इसके अनेक उदाहरण दर्ज हैं ओर जो फिर से दुहराया जा रहा है.... वक्ते आगाज़ के साथ ही भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम फिर से एक सुनियोजित चक्रव्यूह में फसता नज़र आ राहा है.... ऐसे में प्रश्न उठता है आखिर - "करे तो करे क्या आवाम यारों"
*गिद्ध बने बैठे हैं निजाम यारों।
असाफिर को दो यह पैगाम यारों।
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सजाये थे जो ख्वाब सारे क़त्ल हो गए,
तसव्वुर में था ना ये अंजाम यारों।
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मिक्ताल दस्त कातिल बंगलों में जा घुसे,
लिए लौटे नौ सौब-ओ-नाम यारों।
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फिर हुआ है सौदा शायद ईमान का,
टकरा रहे हैं बाहम वो जाम यारों।
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ज़श्न में डूबे हैं सियासत के मुहाफ़िज़,
रिआया को अँधेरे सुबह-ओ-शाम यारों।
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रहबर उन्हें चुना था, हमीं ने तो बाखुशी,
किस मुह दें औरों को इलज़ाम यारों।
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'हबीब' ने हैं कान ढँक के होंठ सी लिए,
कहना सुनना है कुछ हराम यारों।
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शब्दार्थ:असाफिर = नन्हें परिंदों का झुण्ड, मिक्ताल = वह हथियार जिससे क़त्ल किया गया हो,
नौ सौब-ओ-नाम = नए कपडे ओर नाम, बाहम = आपस में, मुहाफ़िज़ = रक्षक,
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bhiiya ji ...bahot bahot accha likhte hai appp.....
ReplyDeletebahot accha laga.....
बहुत सार्थक भावाभियक्ति ....आपका चिंतन सार्थक है ...आपका आभार
ReplyDeleteWah-Wah, khoob kahi hai Habib Ji
ReplyDeleteअवाम का तो वही होगा जो होता आया है।
ReplyDeleteअवाम की चिंता किसे है यारों।
सुंदर गजल है हबीब भाई।
राम राम
रहबर उन्हें चुना था, हमीं ने तो बाखुशी
ReplyDeleteकिस मुंह दें औरों को इलज़ाम यारों...
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सच को कहने वाली पंक्ति
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बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.........आभार !!
बहुत ही सुंदर रचना!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
'रहबर उन्हें चुना था , हमीने बाखुशी
ReplyDeleteकिस मुंह दें औरों को इलज़ाम यारों '
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वाह...बढ़िया शेर ........बस बात यहीं आकर अटक जाती है
"हम में अधिकतर लोग तब प्रार्थना करते हैं, जबकि हम किसी भयानक मुसीबत या समस्या में फंस जाते हैं| या जब हम या हमारा कोई किसी भयंकर बीमारी या मुसीबत या दुर्घटना से जूझ रहा होता है तो हमारे अन्तर्मन से स्वत: ही प्रार्थना निकलती हैं| क्या इसका मतलब यह है कि हमें प्रार्थना करने के लिये किसी मुसीबत या अनहोनी के घटित होने का इन्तजार करना चाहिए!"
ReplyDelete"स्वस्थ, समृद्ध, सफल, शान्त और आनन्दमय जीवन हर किसी का नैसर्गिक (प्राकृतिक) एवं जन्मजात अधिकार है| आप इससे क्यों वंचित हैं?"
एक सही ‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ का चयन और उसका अनुसरण आपके सम्पूर्ण जीवन को बदलने में सक्षम है| जरूरत है तो बस इतनी सी कि आप एक सही और पहला कदम, सही दिशा में बढाने का साहस करें|
"सफल और परिणाम दायी अर्थात ‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ का नाम ही- "कारगर प्रार्थना" है! जिसका किसी धर्म या सम्प्रदाय से कोई सम्बन्ध नहीं है| यह प्रार्थना तो जीवन की भलाई और जीवन के उत्थान के लिये है| किसी भी धर्म में इसकी मनाही नहीं है|"
utam-***
ReplyDeleteNamskar,
hum ne ek hindi patrika arambhi ki hai,yadi aap bhi likhege to humara utsha badega va khushi hogi.
aditya@surabhisaloni.com /atikku@gmail.com
http://surabhisaloni.com/ (2may tak full updated ho jayega)
रहबर उन्हें चुना था, हमीं ने तो बाखुशी
ReplyDeleteकिस मुंह दें औरों को इलज़ाम यारों...
गज़ब ....!!
इन पेसमेकरों की अच्छी खबर ली है हबीब जी .....