Saturday, April 30, 2011

"श्रमवीरों को सादर नमन"

समस्त आदरणीय स्नेही मित्रों को सादर नमस्कार.... १ मई, अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस पर दुनिया के तमाम श्रमवीरों को सलाम... नमन ओर अभिनन्दन सहित सादर कुछ क्षणिकाएं समर्पित है....
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उसके काँधें पर
रखा सूरज
सारा दिन
उसके पसीने में
भीगता रहा,
और आखिरकार
बुझ गया....
*
जा छिपा
क्षितिज की ओट में
फिर से
अपनी आग जलाने.... !!
*

अपने पैरों की रगड़ से
पत्थरों के जिस्म में
उभर आये
छालों को,
उसने पसीने से तर
अपने हाथों से सहलाया...
चमक्तार हो गया...
एक सुन्दर सा आशियाना
तैयार हो गया...
*
आशियाना....
जो उसका अपना नहीं था...!!
*

उसके हाथों में
रंगों की बाल्टियां
ओर मुलायम कूचियाँ
दे कर कहा गया-
दरो- दीवार से
अपने पसीने के निशान मिटा दे !!
वह अपने काम में लग गया
मुस्कुराता हुआ ...
*
मुस्कुराता हुआ....!!
क्योंकि वह जानता है,
बुनियाद पर से
उसके पसीने के निशान
दुनिया के तमाम रंग
मिलकर भी नहीं मिटा सकते... ।
*

वह...
जिसने पर्वतों को
धकेल कर रास्ता बनाया है,
पत्थरों को पिघलाया है,
दरिया बहाया है,
जिसके दम से-
समय का पहिया घूमता है,
ज़मीन उठ कर
आसमान को चूमता है...
*
उसके टूटे दरवाज़े पर
कभी सुबह की दस्तक नहीं होती,
उसके घर से रात-
कभी रुखसत नहीं होती,
उसकी आँखों का समंदर सूखा है...
उसकी झोपडी का चुल्हा
अज़ल से भूखा है... !!
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"श्रमवीरों को सादर नमन"

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3 comments:

  1. चारों जनवादी रचनाएँ बेजोड़ .....

    कलम यहीं आकर धन्य होती है .......बधाई स्वीकारें

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  2. जी संजय भाई, बहुत ही सुंदर चित्रण !
    जी हाँ ...मै श्रमिक हूँ
    एक खानदानी श्रमिक !
    श्रम करता जाता हूँ ...
    अन्न-वस्त्र, मकान देता जाता हूँ
    मेरा क्या है...
    मेरी तो य़ू ही गुजर जाती है
    लेकिन मेरे बाद क्या होगा..?
    चिंता ना करे,
    आ रहा है.. मेरा बेटा !!

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  3. चारों अनमोल रचनाएँ हैं ... और दूसरी वाली तो सबसे लाजवाब लगी ... सच है मजदूर के जिस्म पर नही पत्थर ले जिस्म पर छाले पड़ते हैं ....

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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