सुगत की कंदराओं में तब, कुछ प्यारे से जुगनू चमकते हैं॥
.... और सदियों के सरकते पांवों ने आपके इस नादान हबीब को भी कुछ पीछे सरका दिया.... शैशव की ओर.... जहां प्यारे प्यारे जुगनुओं की झिलमिलाती रोशनी में नज़र आती है मेरी बहुत खुबसूरत, प्यारी सी दादी... जो मेरे साथ खेलती, खिलती, खिलखिलाती है... छोटी छोटी रोचक शिक्षा से जीवन का आधार बनाती है.... वे बहुधा अपनी गोद में लेकर मुझे मीरा, कबीर, सूर, रहीम और बुल्हे के पद सुनाया करती थीं... ज्ञात नहीं कि यह ऐसी ही किसी गीत की पंक्ति है या उनका अपना फलसफा, पर एक पंक्ति वे तकियाक़लाम की तरह उपयोग में लाती थीं - "ये दुनिया अजायबखाना है..." ...आज इसी पंक्ति की बुनियाद लेकर गीत बनाने की इच्छा हुई तो पाया... गीत में उनका दर्शन घुलता चला आया...... महफिले दानां में सादर यह गीत प्रस्तुत है... "ये ज़हां अजायबखाना है"
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क्षण भर का मीत ज़माना है, ये ज़हां अजायबखाना है।
है मस्त यहाँ वो ही प्यारे, जिसने इस सच को जाना है॥
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सुख-दुःख तो बादल हैं जैसे, ये बरसे ना, ये हो कैसे ?
अंतरतम तो भीग चले, ये बरसें तो बरसें ऐसे,
पर ठहरे कब ये दो भी पल, हैं आज यहाँ, कहीं और हैं कल
जीवन के अम्बर में इनको, बस आना हैऔर जाना है।
है मस्त यहाँ वो ही प्यारे, जिसने इस सच को जाना है॥
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खिलते हैं पुष्प बिखर जाते, बिखरे तो फिर जीवन पाते,
जीवन मृत्यु के खेले में, हम आते हैं और हैं जाते,
साँसों का चन्द ये रेला है, बस चार दिनों का मेला है,
किसको कितनी साँसें लिखनी, है इसका कौन ठिकाना है?
है मस्त यहाँ वो ही प्यारे, जिसने इस सच को जाना है॥
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जो हैं तेरे वो कब तेरे, सब हैं केवल भ्रम के घेरे,
यह परम सत्य जो पहचाने, वो भूल चले तेरे मेरे,
बस एक निमित्त है जीवन का, बोयें हम बीज अपनेपन का,
इक लक्ष्य बड़ा पावन सा है, जिसको हम सब को पाना है।
है मस्त यहाँ वो ही प्यारे, जिसने इस सच को जाना है॥
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क्षण भर का मीत ज़माना है, ये ज़हां अजायबखाना है ॥
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bahut badhiyaa
ReplyDeletebhut hi khubsurat...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत ..सच ही ये जहाँ अजायबखाना है ..
ReplyDeleteक्षण भर का मीत ज़माना है, ये ज़हां अजायबखाना है ॥
ReplyDeleteवाह...बेहतरीन...
बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें |
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 19 - 04 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
badhiya hai.
ReplyDeleteआपके इस अजयाबखाने में खो जाने को दिल करता है
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
'क्षण भर का मीत ज़माना है ; ये जहां अजायबखाना है '
ReplyDeleteयथार्थ का भावमयी ,प्रवाहपूर्ण चित्रण ...........
अच्छी अभिव्यक्ति ......
ReplyDeletebahut manbhawan abhivyakti.
ReplyDeleteअंतर्मन तो भीग चले ...
ReplyDeleteये बरसे तो ऐसे बरसे ...
है मस्त वही जिसने ये जाना ...
सुबह की ओस में भीगी सी रचना !
bahut hi sacchi rachna behtreen
ReplyDeleteहबीब भाई साहब ब्लॉग पर आना अच्छा लगा |आभार
ReplyDeleteकिसको कितनी साँसें लिखनी, है इसका कौन ठिकाना है?
ReplyDeleteहै मस्त यहाँ वो ही प्यारे, जिसने इस सच को जाना है॥
kittni adbhut abhivakti hai bro......
bahot sundar lekhni....appke shabdo ko...naman hai...