Friday, April 15, 2011

"ये ज़हां अजायबखाना है"

"जब स्मृतियों के पुष्प महकते हैं, सदियों के पाँव सरकते है।

सुगत की कंदराओं में तब, कुछ प्यारे से जुगनू चमकते हैं॥


.... और सदियों के सरकते पांवों ने आपके इस नादान हबीब को भी कुछ पीछे सरका दिया.... शैशव की ओर.... जहां प्यारे प्यारे जुगनुओं की झिलमिलाती रोशनी में नज़र आती है मेरी बहुत खुबसूरत, प्यारी सी दादी... जो मेरे साथ खेलती, खिलती, खिलखिलाती है... छोटी छोटी रोचक शिक्षा से जीवन का आधार बनाती है.... वे बहुधा अपनी गोद में लेकर मुझे मीरा, कबीर, सूर, रहीम और बुल्हे के पद सुनाया करती थीं... ज्ञात नहीं कि यह ऐसी ही किसी गीत की पंक्ति है या उनका अपना फलसफा, पर एक पंक्ति वे तकियाक़लाम की तरह उपयोग में लाती थीं - "ये दुनिया अजायबखाना है..." ...आज इसी पंक्ति की बुनियाद लेकर गीत बनाने की इच्छा हुई तो पाया... गीत में उनका दर्शन घुलता चला आया...... महफिले दानां में सादर यह गीत प्रस्तुत है... "ये ज़हां अजायबखाना है"


*


क्षण भर का मीत ज़माना है, ये ज़हां अजायबखाना है।


है मस्त यहाँ वो ही प्यारे, जिसने इस सच को जाना है॥


*


सुख-दुःख तो बादल हैं जैसे, ये बरसे ना, ये हो कैसे ?


अंतरतम तो भीग चले, ये बरसें तो बरसें ऐसे,


पर ठहरे कब ये दो भी पल, हैं आज यहाँ, कहीं और हैं कल


जीवन के अम्बर में इनको, बस आना हैऔर जाना है।


है मस्त यहाँ वो ही प्यारे, जिसने इस सच को जाना है॥


*


खिलते हैं पुष्प बिखर जाते, बिखरे तो फिर जीवन पाते,


जीवन मृत्यु के खेले में, हम आते हैं और हैं जाते,


साँसों का चन्द ये रेला है, बस चार दिनों का मेला है,


किसको कितनी साँसें लिखनी, है इसका कौन ठिकाना है?


है मस्त यहाँ वो ही प्यारे, जिसने इस सच को जाना है॥


*


जो हैं तेरे वो कब तेरे, सब हैं केवल भ्रम के घेरे,


यह परम सत्य जो पहचाने, वो भूल चले तेरे मेरे,


बस एक निमित्त है जीवन का, बोयें हम बीज अपनेपन का,


इक लक्ष्य बड़ा पावन सा है, जिसको हम सब को पाना है।


है मस्त यहाँ वो ही प्यारे, जिसने इस सच को जाना है॥


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क्षण भर का मीत ज़माना है, ये ज़हां अजायबखाना है


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14 comments:

  1. बहुत सुन्दर गीत ..सच ही ये जहाँ अजायबखाना है ..

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  2. क्षण भर का मीत ज़माना है, ये ज़हां अजायबखाना है ॥
    वाह...बेहतरीन...
    बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें |

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  3. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 19 - 04 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  4. आपके इस अजयाबखाने में खो जाने को दिल करता है
    बेहतरीन प्रस्तुति

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  5. 'क्षण भर का मीत ज़माना है ; ये जहां अजायबखाना है '

    यथार्थ का भावमयी ,प्रवाहपूर्ण चित्रण ...........

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  6. अंतर्मन तो भीग चले ...
    ये बरसे तो ऐसे बरसे ...
    है मस्त वही जिसने ये जाना ...
    सुबह की ओस में भीगी सी रचना !

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  7. हबीब भाई साहब ब्लॉग पर आना अच्छा लगा |आभार

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  8. किसको कितनी साँसें लिखनी, है इसका कौन ठिकाना है?

    है मस्त यहाँ वो ही प्यारे, जिसने इस सच को जाना है॥

    kittni adbhut abhivakti hai bro......

    bahot sundar lekhni....appke shabdo ko...naman hai...

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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