Monday, October 25, 2010

परछाई

धवल,
साईरन बजाती हुई
कार के रुकने पर
जैसे ही वह
कार से बाहर निकला,
भीड़ में भगदड़ सी मच गयी...
एकत्र हजारों मासूम लोग
भागने लगे,
बदहवास, यत्र - तत्र
चीखते चिल्लाते, मदद को पुकारते...


उसे कुछ समझ नहीं आया,
कार के काले शीशे में
अपनी छवि देखी,
सन्न रह गया-
भयानक, डरावना चेहरा,
रक्त-रंजित हाथ,
लूंगी में खुंसी
लम्बी नंगी कटार... भरी पिस्तोल...

ड्राईवर को इशारा कर
झपट कर घुस गया वह
कार के भीतर,
जल्दबाजी में आज
डालना भूल गया था, वह-
अपने ऊपर लबादा - "सत्य का"।

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2 comments:

  1. डालना भूल गया था वह - अपने ऊपर लबादा सत्य का....
    वाह....क्या बात कही है आपने
    बधाई स्वीकार करें ....

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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