सभी सम्माननीय मितरां नू बैसाखी दी लख लख बधाईयाँ... बैसाखी कहते ही उत्साह और उमंग का रंग बिरंगी, खुशियों से लबरेज़ उन्मुक्त वातावरण नज़रों में आ जाता है, पर साथ ही बिम्बित हो उठता है इतिहास की एक अत्यंत लोमहर्षक घटना जिसकी कल्पना मात्र ही आज भी रोंगटे खड़े कर देती हैं... मुट्ठियाँ भींच जाती हैं... पलकों का बाँध अक्षम साबित होने लगता है....
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"वह अप्रेल की चौदह तारीख थी। भयभीत सा दिन निकला, सिहरते सूर्य की कांपती किरने वहाँ झाँकने लगीं। देखा, सारा मैदान घायलों और मृतकों से भरा हुआ था। घायलों का रूदन माहौल को अत्यंत कारुणिक बना रहा था। आसपास खड़े थे आतंक से सिकुड़ते, ज़र्द चेहरा लिए छोटे- बड़े वृक्ष... खामोश.... आखिर वे कल शाम हुए भारतीय इतिहास के सबसे खौफनाक कत्लेआम की साक्षी जो थे...."
इतिहास सुना रहा था मुझे १३ अप्रेल १९१९ को हुए उस भयानक हत्याकांड का विवरण, जिसे देखने और बर्दाश्त करने के लिए वह मजबूर था- "कल शाम की ही तो बात है। अमृतसर का वक्षस्थल जलियांवाला बाग़ २५ हजार हिन्दुस्तानियों की उत्साह पूर्ण उपस्थिति से मानो झूम रहा था। वो हुकूमते बर्तानिया ने रोलेट बिल लागू कर दिया था ना, उसी का विरोध करने के लिए एक सभा आयोजित थी वहाँ। तब ऐसे भीषण परिणाम की कल्पना भी किसी ने नहीं की रही होगी। हंसराज नामक स्वंतंत्रता सेनानी सभा को संबोधित कर रहा था कि उसी वक़्त भारी भरकम बूटों की टापों से वातावरण दहल उठा। मैंने देखा- बाग़ के संकरे द्वार से होकर अंग्रेज सिपाही अर्धवृत्त में फ़ैल गए; और कोई कुछ समझ पाता इससे पहले ही अंग्रेज जनरल क्रूरता पूर्वक दहाड़ उठा- फायर.....!!!"
हे इश्वर!! बर्दाश्त नहीं हुआ मुझसे। अपनी तर्जनी रख दी मैंने इतिहास के सर्द होंठों पर। इतिहास को चुप तो करा दिया परन्तु अपने विचारों को कैसे बांधता? कल्पना में देखने लगा जान बचाने के प्रयास में दीवार फांदते हुए गोलियों की बौछारों से छलनी होकर धरासायी होते, जिस्म को बन्दूकी शोलों से बचाने के लिए सूखे कुएं में कूदकर समाधिस्थ होते तथा प्राण रक्षा के लिए इधर उधर भागते अपने ही भाईयों बहनों के क़दमों तले कुचल कर जान गंवाते अपने निर्दोष, निसहाय भाईयों बहनों को। रोंगटे खड़े हो गए... सुनाई पड़ने लगी उनकी मार्मिक चीखें... उफ... !! अनायास ही मेरे हाथों ने मेरे कानों को ढँक लिया।
"करीब आठ - दस मिनट तांडव करने के पश्चात...", इतिहास पुनः बताने लगा- "मौत का वह काफिला ऐसे लौट चला जैसे कुछ हुआ ही ना हो। और सचमुच कुछ भी तो नहीं था यह उनके लिए। जैसा कि जनरल डायर ने बाद में जांच कमेटी के आगे कहा था- 'मुझे खेद है कि मेरे पास १६०० कारतूस ही थे, वरना मैं और भी गोलिया चलवाता...." क्यों? हंटर कमेटी के प्रश्न पर क्रूरतापूर्वक बोला था वह ज़ालिम- " मैं इतनी गोलियां चलवा देना चाहता था कि फिर हमें गोलियां चलाने की आवश्यकता ही न पड़े...... और उधर.... गोलियों से छलनी असहाय लोग तडपते रहे। सहायता पहुंचाना तो दूर सारी रात कोई उन्हें पूछने वाला भी नहीं था। कोई यदि उनके पास थे तो बस सिसकते, सहमें से ये पौधे..... ।"
बस... बस... मुझमें आगे सुनने की शक्ति ना रही। मैंने पुनः अपनी तर्जनी इतिहास के धवल केशों से ढंके होठों पर रख दी। तब मेरे आंसुओ से तर चेहरे को अपने झुर्रीदार हाथों में लेकर प्यार से वह कहने लगे- "मेरे बच्चे, ऐसे ही अनेकानेक बर्बर जख्मों से मेरा पूरा जिस्म भरा हुआ है... लेकिन मेरे बच्चे मेरे जिस्म के ये सिसकते ज़ख्म ही तुम्हारी घरोहर हैं.... । बेशक इनकी दुखदायी सूरतें तुम्हारे अक्स को अश्कों से भिगो सकती हैं, लेकिन यही तुम्हें राह भी दिखाएंगी, बातायेंगी कि किस कीमत पर हासिल हुई है तुम्हें यह आज़ादी... । आओ पुत्र उन अमर अज्ञात शहीदों के लिए इश्वर से दुआ मांगे...."
और मैंने देखा - वे घुटनों के बल बैठ गए, माथे से ज़मीन को छुआ, सीने पर क्रास बनाया, थोड़ी मिट्टी हाथों में लेकर चूमा, उसे माथे से लगाया तथा दोनों आँख बंद कर हाथ उठा कर दुआ मांगने लगे। मित्रों, आईये दो क्षण हम भी उनका अनुशरण करें....
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MA BHARTI KE VEER SAPUTON EVAM VIRANGNAON KO SHAT SHAT NAMAN............BEHAD SARTHAK EVAM PRABHAVI POST KE LIYE BADHAI SWIKAR KAREN !!
ReplyDeleteशहीदों को शत शत नमन.
ReplyDeleteबेहद मार्मिक और प्रभावशाली पोस्ट.
मार्मिक पोस्ट।
ReplyDeleteआपके इस ऐतिहासिक आलेख के माध्यम से
ReplyDeleteउन सभी शहीदों को
श्रद्धांजली अर्पण करता हूँ .
अभिवादन स्वीकारें .
jai hind
ReplyDeleteJAI HIND JAI BHARAT
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