समस्त सुधि मित्रों को सादर नमस्कार, आप सभी सम्माननीय जनों एवं देश भर के लाडलों को आज १४ नवम्बर अर्थात बालदिवस की स्नेहिल बधाइयां। आदरणीय मित्रों, आज बाल दिवस के प्यारे अवसर पर "बालगीत" के माध्यम से एक शाश्वत तथ्य को आप सुधीजनों के सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ.....
"स्वर्ग उसे ही जग कहता है..."
एक देश था सच्चा सा
राजा उसका बच्चा था।
भेद - भाव की बात नहीं थी,
प्रेम की गंगा वहाँ बही थी।
साथ में सोते, साथ में उठते,
साथ में खेले, साथ में पढ़ते।
मिल जुलकर रहते थे सारे,
आसमान में जैसे तारे।
सबकी करते साथ भलाई,
वहाँ बसी थी बस अच्छाई।
फिर आया था इक शैतान,
हट्टा - कट्टा बड़ा जवान।
जाने कैसा पाठ पढ़ाया,
हिन्दू, मुल्ला, सिक्ख बनाया।
बदल गईं ज़न्नत की बातें,
लगने लगी वहाँ भी घातें।
ये तेरा, ये मेरा हो गया,
दुर्भावों का फेरा हो गया।
कल तक थे जो भाई - भाई,
उनमें होने लगी लड़ाई।
दुश्मन की तो नज़र गडी थी,
सेना उसकी बहुत बड़ी थी।
देखी जो बच्चों की लड़ाई,
तुरत ही कर दी उसने चढ़ाई।
बच्चों की ताक़त जो बटी थी,
ताक़त उनकी खूब घटी थी।
दुश्मन कर गया अपना काम,
सारे बच्चे हुए ग़ुलाम।
क़ैद में सारे सोंचे अब,
अपना ही सर नोंचे अब।
बात समझ में देर से आई,
बुरा था झगडा, बुरी लड़ाई।
लेकिन अब क्या होता है,
जो लड़ता है खोता है।
देखो बच्चों तुम ना लड़ना,
प्रश्न सभी से इतना करना।
आपस में जब सारे भाई,
कैसा झगड़ा और लड़ाई?
प्रेम भाव जहां बसता है,
स्वर्ग उसे ही जग कहता है।
***** बाल दिवस की शुभकामनाएं *****
बहुत खूब !!!!
ReplyDeleteआप की कविता बच्चो के मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ने का कार्य कर रही है |
इतनी सरल एवम प्रेरणा देने वाली कविता के लिए केवल हम ह़ी नहीं, आने वाली हमारी संतति आप की ऋणी रहेगी और इस से प्रेरणा पाती रहेगी |
आप को बहुत बहुत साधुवाद
हर हर महादेव
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ReplyDeleteभैया सादर प्रणाम,
ReplyDeleteआपकी हर कविता को पढने के बाद लगता है की शब्द आपके हैं पर विचार हमारे हैं, इसबार भी कुछ ऐसा ही अहसास हुआ......
"अभियान भारतीय" के उद्देश्य को प्रसारित करती कविता के लिए मै अपने और "अभियान भारतीय" से जुड़े अन्य मित्रों की पर से आपको बधाई प्रेषित कर रहा हूँ कृपया स्वीकार करें |
"भारतीय"
बहुत सुन्दर कविता है हबीब भाई, धन्यवाद. इन दिनों गूगल रीडर से पोस्ट पढ़ रहा हूं इस कारण आपको नियमित पढ़ नहीं पाया था, अब इस ब्लॉग को फालो कर लिया हूं रीडर से मोबाईल में भी पढ़ पाउंगा.
ReplyDeleteशुक्रिया संजीव भैया एवं सम्माननीय मित्रगण, यही उम्मीद है की आप सभी सुधि मित्रों की रायें मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी... आप सबका हबीब.
ReplyDeleteबहुत सुंदर ......!!
ReplyDeleteबाल दिवस पर सीख देती कविता .....हबीब जी .....
बचपन की लिखी बहुत सी बाल कवितायेँ पड़ी हैं ध्यान ही न रहा पोस्ट कर देती ....
बाल कविताओं का भी अपना ही मज़ा है ....
(तीसरे पैरे में गड़ी शब्द गाडी हो गया है ....देखें ...)
बहुत शुक्रिया हरकीरत जी, ज़ेहन में गडी लफ्ज़ होने के कारण शायद 'गाडी' भी मुझे 'गडी' नज़र आता रहा.... बहरहाल गडी को गाडी बना कर अर्थ बदल देने वाले 'आ' की मात्रा को विलोपित कर इस रोचक भूल का निराकरण कर लिया है... आपका शुक्रिया.
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