सुधि मित्रों, सदर नमस्कार और भाई बहन के प्यार भरे रिश्तों को स्थापित करने वाले अद्भुत त्यौहार रक्षा बंधन की दिली बधाइयां.... प्यारे प्यारे स्मृतियों के उमड़ते- घुमड़ते, बदलियों संग विचरते, मेरा यह पोस्ट दुनिया के सबसे प्यारे, सबसे न्यारे रिश्ते को समर्पित है...
खुशियाँ जहां की
लपेट दी मेरी कलाई पर,
दुनिया भी वार दूं
तेरे प्यार कि सच्चाई पर....
वो बचपन के किस्से
वो चाकलेट के हिस्से
वो छुपना - छुपाना
झगड़ना, मनाना
तेरे गुड़ियों की चोरी
आपस की सीना जोरी
माँ बाबा की प्यारी से डांट थी लड़ाई पर....
सायकल में संग मेरे
स्कूल को जाना
कैरियर में बैठे
मुझे गुदगुदाना
याद है जब कीचड में
दोनों गिरे थे
स्कूल से पहले ही
घर को फिरे थे
कितनी की मेहनत, यूनिफार्म की धुलाई पर.....
साथ पढ़ते दोनों
खेलते झगड़ते दोनों
उम्र को पकड़ते
समय के पीछे दोनों
मंडप सजाते तेरा
तुझको मेरा चिढ़ाना
भीगी सी पलकें लेकर
तेरा वो चलते जाना
सच कहूं, रोया था बहुत तेरी बिदाई पर....
लौट कर तू जब थी
राखी में आई
खुशियों की बुँदे मेरी
आँखों में ना समाई
बढ़ कर मुझे वो तेरा
गले से लगाना
गुदगुदा कर मुझे फिर
तेरा खिलखिलाना
और झूठ-मूठ रोई तू, कान की खिंचाई पर....
थाल सजाना तेरा
मुझको बुलाना तेरा
भागता मैं आगे
तू मेरे पीछे भागे
बाबा की मुस्कराहट
माँ की खिलखिलाहट
तेरा वो रूठ जाना
मेरा तुझे मनाना
और प्यार कैसा उमड़ा था तेरा अपने भाई पर....
दुनिया भी वार दूं, तेरे प्यार की सच्चाई पर....
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खुशियाँ जहां की
लपेट दी मेरी कलाई पर,
दुनिया भी वार दूं
तेरे प्यार कि सच्चाई पर....
वो बचपन के किस्से
वो चाकलेट के हिस्से
वो छुपना - छुपाना
झगड़ना, मनाना
तेरे गुड़ियों की चोरी
आपस की सीना जोरी
माँ बाबा की प्यारी से डांट थी लड़ाई पर....
सायकल में संग मेरे
स्कूल को जाना
कैरियर में बैठे
मुझे गुदगुदाना
याद है जब कीचड में
दोनों गिरे थे
स्कूल से पहले ही
घर को फिरे थे
कितनी की मेहनत, यूनिफार्म की धुलाई पर.....
साथ पढ़ते दोनों
खेलते झगड़ते दोनों
उम्र को पकड़ते
समय के पीछे दोनों
मंडप सजाते तेरा
तुझको मेरा चिढ़ाना
भीगी सी पलकें लेकर
तेरा वो चलते जाना
सच कहूं, रोया था बहुत तेरी बिदाई पर....
लौट कर तू जब थी
राखी में आई
खुशियों की बुँदे मेरी
आँखों में ना समाई
बढ़ कर मुझे वो तेरा
गले से लगाना
गुदगुदा कर मुझे फिर
तेरा खिलखिलाना
और झूठ-मूठ रोई तू, कान की खिंचाई पर....
थाल सजाना तेरा
मुझको बुलाना तेरा
भागता मैं आगे
तू मेरे पीछे भागे
बाबा की मुस्कराहट
माँ की खिलखिलाहट
तेरा वो रूठ जाना
मेरा तुझे मनाना
और प्यार कैसा उमड़ा था तेरा अपने भाई पर....
दुनिया भी वार दूं, तेरे प्यार की सच्चाई पर....
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रक्षाबंधन के पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाएं
ReplyDeletehttp://rp-sara.blogspot.com/2010/08/blog-post_23.html#comment-form
रचना में तो आपने पूरा दिल ही उड़ेल दिया हबीब भाई,
बहुत सुंदर रचना है, दिल को छु गयी।
ले गयी खींच कर मुझे,
अपने बचपने की बीती हुई यादों में।
आपको श्रावणी पर्व की हार्दिक बधाई
लांस नायक वेदराम!
bahut achcha likha hai aapne... aur bahut sachcha bhi.
ReplyDeleteबचपन के दिन याद आ गये, बहुत सुन्दर ढ़ग से शव्दों में भाई बहन के प्यार को अभिव्यक्त किया है भाई साहब आपने.
ReplyDeleteधन्यवाद.
रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteक्या कहूँ ? अगर मेरे पास आपकी रचना की तारीफ लायक शब्द होते तो तारीफ करता. जितना खुबसूरत ये रिश्ता है उतनी ही खुबसूरत तरीके से आपने इसे व्यक्त किया है. बचपन से युवावस्था तक बहना के साथ में बिताया जीवन का सफ़र, शैतानियाँ, मां बाबा की चासनी सी डांट, लड़ना, झगड़ना, रूठना और फिर मनाना, एक दिन उसका डोली में बैठकर विदा हो जाना, ये जीवन के वो पल हैं जो हमेशा के लिए ह्रदय पर अंकित हो जाते हैं. जीवन के इन अनमोल पलो की माला को आपने बहुत खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से भाई बहन के बचपन की बातें लिखी हैं ...सुन्दर अभिव्यक्ति ...शुभकामनाएं
ReplyDeleteभाई-बहन के मजबूत रिश्तों का पर्व रक्षाबंधन सब भाई-बहनों के रिश्तों मे मजबूती लाये
ReplyDeleteबेहतरीन और अच्छी पोस्ट
शुभकामनाएं
आपकी पोस्ट ब्लाग वार्ता पर
खुशियाँ जहां की
ReplyDeleteलपेट दी मेरी कलाई पर ....
वाह ललित जी ने सही कहा आपने दिल से लिखी है यह रचना ....
वो बचपन की यादें ...
मासूमियत भरी शरारतें ....
संग संग खेलना खाना .....
दुआ है ये प्यार बना रहे आपका .....!!
बहुत खूबसूरत.
ReplyDeleteरक्षाबंधन पर इतनी सुन्दर रचना पढ़कर मन गदगद हो गया.
ReplyDelete________________
शब्द-सृजन की ओर पर ''तुम्हारी ख़ामोशी"
विषय को गहराई तक ले जाने वाले शब्दों के साथ पेश करना ही रचनाकार की सफ़लता माना जाता है...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर ये विशेषता देखने को मिली है...
मुबारकबाद कुबूल फ़रमाएं.
shabdo aur bhavo ka atulniy mishran---- bhut badiya
ReplyDeleteआप सभी सम्मानीय मित्रों का बेहद शुक्रगुजार हूँ. आपकी टिप्पणियां उत्साह का संचार करती हैं. अपनी बेबाक टीपों से मार्गदर्शन करते रहने का आग्रह करता हूँ. सादर नमस्कार.
ReplyDeleteआदरणीय हबीब साहब
ReplyDeleteआदाब अर्ज़ है जनाब !
कितनी निष्पाप , पवित्र , एकदम अपनी - सी लगने वाली कविता लिखी है आपने !
पहले पढ़ कर गया था , तब बात नहीं कर पाया तो आज दुबारा आया हूं ।
एक बार और पढ़ा तो फिर नयन सजल हो गए ।
मेरी बहन मुझसे बड़ी है …
लेकिन बचपन की स्मृतियां आपकी कविता की वज़ह से जीवंत हो उठी ।
एक भावपूर्ण , मन को छू लेने वाली रचना के लिए आभार !
बधाई ! साधुवाद !
- राजेन्द्र स्वर्णकार