Sunday, August 14, 2011

"लोकतंत्र है...."

जिसकी जो मरजी है गाओ, लोकतंत्र है /
जनता तो है ढोल; बजाओ, लोकतंत्र है /

एवरेस्ट विजय को निकली है मंहगाई,
भूखे भज के सब सो जाओ, लोकतंत्र है /

टू जी, और सी डब्लू जी, है गुल्लक अपनी,
आमदनी को खूब बढाओ, लोकतंत्र है /

पांच सितारा होटल मानिन्द वहाँ व्यवस्था,
जाओ भाइ जेल हो आओ, लोकतंत्र है /

मुट्ठी में क़ैदी कानून, फिर चिंता कैसी,
बेटी-बहन की लाज उड़ाओ, लोकतंत्र है /

लहू की किस्मत ही बहना है, बह जाने दो,
हत्यारों के दिल बहलाओ, लोकतंत्र है /

मुर्गा एक टंगा तंदूर में, बड़ा लज़ीज़,
मुल्क समूचा भून के खाओ, लोकतंत्र है /

सुप्रीम-कोर्ट की ना सुनते वो, अपनी क्या,
लोकपाल के नगमें गाओ, लोकतंत्र है /

बीत गया है दिन स्वेद बहाते, स्वाद विहीन,
रोटी के अब ख्वाब सजाओ, लोकतंत्र है /

आड़े आते हैं जो भी काले कृत्यों के,
आधी रतिया जा निपटाओ, लोकतंत्र है /

जी.डी.पी. और ग्रोथ रेट की ग्राफ बना कर,
विश्व सहित खुद को बहलाओ, लोकतंत्र है /

फसलें बारूद की उगती जंगल-घाटी में,
नीरो बन; बांसुरी बजाओ, लोकतंत्र है /

सैतालिस के पहले, बाद में है अंतर क्या?
लब ‘हबीब’ के आ सी जाओ, लोकतंत्र है /

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स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
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26 comments:

  1. kya bat hai....loktantra par tikha prahar .....bahuuuuuuuuuuut badhiya

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  2. बहुत बढ़िया कटाक्ष ... अच्छी प्रस्तुति

    स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें और बधाई

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  3. सार्थक प्रस्तुती... जय हिंद....

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  4. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.

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  5. bhaut hi acchi rachna... jai hind...

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  6. सुप्रीम-कोर्ट की ना सुनते वो, अपनी क्या,
    लोकपाल के नगमें गाओ, लोकतंत्र है /

    यौमे आज़ादी की साल गिरह मुबारक .-त्वरित दस्तक के लिए शुक्रिया भाईसाहब .
    सुप्रीम-कोर्ट की ना सुनते वो, अपनी क्या,
    लोकपाल के नगमें गाओ, लोकतंत्र है /छिपे हुए कहाँ थे आप हुज़ूर ,बड़ी देर करदी हुज़ूर आते आते .इतने असरदार अशआर आपके ,अर्थ पूर्ण ,मौजू ,बधाई .
    Sunday, August 14, 2011
    आज़ादी का गीत ......

    उर्दू के मशहूर शायर जोश मलीहाबादी की नज़्म ‘लम्हा-ए-आज़ादी’ का एक बड़ा लोकप्रिय शेर है:

    कि आज़ादी का इक लम्हा है बेहतर
    ग़ुलामी की हयाते-जाविदाँ से

    आइये हम इस आज़ादी को 'जश्ने आज़ादी' बनाएं और इसका लुफ्त उठाएं ......

    मनायेंगे ज़मीने -हिंद पर हम ज़श्ने आज़ादी
    वतन के इश्क में हम सरों का ताज रखेंगे.

    रविवार, १४ अगस्त २०११
    संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....
    Sunday, August 14, 2011
    चिट्ठी आई है ! अन्ना जी की PM के नाम !

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  7. रविवार, १४ अगस्त २०११
    संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....
    अन्नाजी को कटहरे में खड़े करने वालों से सीधी बात -
    अन्नाजी ने संविधान नहीं पढ़ा है ,वह जो चाहे बोल देतें हैं ?
    मेरे विद्वान दोश्त कपिल सिब्बल जी ,संविधान इस देश में जिन्होनें पढ़ा था उन्होंने इमरजेंसी लगा दी थी .और संविधान में यह कहाँ लिखा है ,कि किसी व्यक्ति की उम्र नहीं पूछी जा सकती ,उससे ये नहीं कहा जा सकता ईश्वर ने आपको सब कुछ दिया है ,अब आप उम्र दराज़ हो गए राष्ट्र की सेवा करो ।आपके पास नैतिक ताकत है ,आप ईमानदार हैं .
    संविधान में यह भी मनाही नहीं है कि एक साथ चार -मूर्खों को मंत्री बना दिया जाए ,और एक षड्यंत्र रच के १४ अगस्त की शाम एक साथ सारे एक ही स्वर में ,एक ही आरोह अवरोह में झूठ बोलना शुरु करें ।
    और ये कौन से सावंत की बात हो रही है अदालत तो राखी सावंत भी लगातीं थीं ?
    क्या किसी नैतिक शक्ति से संचालित होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने की संविधान में मनाही है या फिर प्रजातंत्र में यह नैतिक शक्ति ही उसे प्रासंगिक बनाए रहती है ?
    किसी नवीन चावला को भी संविधान के ऊपर थोपने की मनाही नहीं है ।
    विदूषी अंबिका सोनी जी कहीं संजय गांधी जी की तो बात नहीं कर रहीं ।?गांधी तो वह भी थे .
    महात्मा गांधीजी को तो यह हक़ हासिल था कि वह पंडित नेहरु या सुभाष चन्द्र बोस की उम्र पूछ सकें ।
    ये काले कोट वाले सुदर्शन कुमारजी जांच तो भगत सिंह की भी करवा सकतें हैं -संसद में बम गिराने का असलाह और पैसे कहाँ से जुटाए थे ज़नाबभगत सिंह ने ?
    सारे महानुभाव मय मनीष तिवारीजी ,सुदर्शन हैं ,सुमुखी हैं ,वाणी से इनकी अमृत झर रहा है ,संविधान में इसकी भी मनाही नहीं है इन्हें कुछ भी बोलने की छूट न दी जाए ।
    "अनशन स्थल और अवधि वही जो सरकार बतलाये ,आन्दोलन वही जो सरकार चलवाए ।".
    अन्ना का खौफ क्यों भाई ,कल को कोई अन्नभी मांगेगा ,अन्न कहेगा तो सरकार "अन्ना "समझेगी ?इस नासमझी की भी संविधान में मनाही नहीं है ?

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  8. रविवार, १४ अगस्त २०११
    संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....
    अन्नाजी को कटहरे में खड़े करने वालों से सीधी बात -
    अन्नाजी ने संविधान नहीं पढ़ा है ,वह जो चाहे बोल देतें हैं ?
    मेरे विद्वान दोश्त कपिल सिब्बल जी ,संविधान इस देश में जिन्होनें पढ़ा था उन्होंने इमरजेंसी लगा दी थी .और संविधान में यह कहाँ लिखा है ,कि किसी व्यक्ति की उम्र नहीं पूछी जा सकती ,उससे ये नहीं कहा जा सकता ईश्वर ने आपको सब कुछ दिया है ,अब आप उम्र दराज़ हो गए राष्ट्र की सेवा करो ।आपके पास नैतिक ताकत है ,आप ईमानदार हैं .
    संविधान में यह भी मनाही नहीं है कि एक साथ चार -मूर्खों को मंत्री बना दिया जाए ,और एक षड्यंत्र रच के १४ अगस्त की शाम एक साथ सारे एक ही स्वर में ,एक ही आरोह अवरोह में झूठ बोलना शुरु करें ।
    और ये कौन से सावंत की बात हो रही है अदालत तो राखी सावंत भी लगातीं थीं ?
    क्या किसी नैतिक शक्ति से संचालित होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने की संविधान में मनाही है या फिर प्रजातंत्र में यह नैतिक शक्ति ही उसे प्रासंगिक बनाए रहती है ?
    किसी नवीन चावला को भी संविधान के ऊपर थोपने की मनाही नहीं है ।
    विदूषी अंबिका सोनी जी कहीं संजय गांधी जी की तो बात नहीं कर रहीं ।?गांधी तो वह भी थे .
    महात्मा गांधीजी को तो यह हक़ हासिल था कि वह पंडित नेहरु या सुभाष चन्द्र बोस की उम्र पूछ सकें ।
    ये काले कोट वाले सुदर्शन कुमारजी जांच तो भगत सिंह की भी करवा सकतें हैं -संसद में बम गिराने का असलाह और पैसे कहाँ से जुटाए थे ज़नाबभगत सिंह ने ?
    सारे महानुभाव मय मनीष तिवारीजी ,सुदर्शन हैं ,सुमुखी हैं ,वाणी से इनकी अमृत झर रहा है ,संविधान में इसकी भी मनाही नहीं है इन्हें कुछ भी बोलने की छूट न दी जाए ।
    "अनशन स्थल और अवधि वही जो सरकार बतलाये ,आन्दोलन वही जो सरकार चलवाए ।".
    अन्ना का खौफ क्यों भाई ,कल को कोई अन्नभी मांगेगा ,अन्न कहेगा तो सरकार "अन्ना "समझेगी ?इस नासमझी की भी संविधान में मनाही नहीं है ? (संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).).

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  9. सैतालिस के पहले, बाद में है अंतर क्या?
    लब ‘हबीब’ के आ सी जाओ, लोकतंत्र है /
    ..
    यौमे आज़ादी की साल गिरह मुबारक .-त्वरित दस्तक के लिए शुक्रिया भाईसाहब .
    सुप्रीम-कोर्ट की ना सुनते वो, अपनी क्या,
    लोकपाल के नगमें गाओ, लोकतंत्र है /छिपे हुए कहाँ थे आप हुज़ूर ,बड़ी देर करदी हुज़ूर आते आते .इतने असरदार अशआर आपके ,अर्थ पूर्ण ,मौजू ,बधाई .
    Sunday, August 14, 2011
    आज़ादी का गीत ......

    उर्दू के मशहूर शायर जोश मलीहाबादी की नज़्म ‘लम्हा-ए-आज़ादी’ का एक बड़ा लोकप्रिय शेर है:

    कि आज़ादी का इक लम्हा है बेहतर
    ग़ुलामी की हयाते-जाविदाँ से

    आइये हम इस आज़ादी को 'जश्ने आज़ादी' बनाएं और इसका लुफ्त उठाएं ......

    मनायेंगे ज़मीने -हिंद पर हम ज़श्ने आज़ादी
    वतन के इश्क में हम सरों का ताज रखेंगे.

    रविवार, १४ अगस्त २०११
    संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....
    Sunday, August 14, 2011
    चिट्ठी आई है ! अन्ना जी की PM के नाम !

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  10. वर्तमान परिवेश पर बेहतरीन ग़ज़ल.
    स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभ-कामनाएं.

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  11. सार्थक प्रस्तुती...

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  12. आज की व्यवस्था पर प्रहार करती सार्थक रचना ..

    स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें और बधाई

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  13. सार्थक प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  14. बहुत ही सुन्दर एंव सार्थक प्रस्तुति...आभार

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  15. गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  16. बिल्कुल नये बिम्बों के साथ हर अशआर बेमिसाल.

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  17. भाई यस० एम० हबीब साहब बहुत ही सुंदर कविता पढ़ने को मिली बधाई

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  18. गज़ब के कटाक्ष किए हैं व्यवस्था पर ...
    बहुत ही लाजवाब शेर हैं सब ...

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  19. वर्तमान परिस्थितियों पर कटाक्ष करती हुई सामयिक और सार्थक रचना.

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  20. बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति..

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  21. bahut ache ,sahi kataksh kiye hain apni prstuti men aapne..

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  22. उत्कृष्ट रचना....... शानदार कटाक्ष.....सरकार की तानाशाही की बेमिसाल प्रस्तुति।

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  23. बहुत प्रभावशाली रचना ! आभार!

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  24. क्या कहें कहने को कुछ छोड़ा ही नही आपने वाकई कभी मन निराश भी हो जाता है। पर यह भी याद रहे कि हमने कुछ चीजें पायी भी हैं। बात निरोशा की नही आक्रोश की होना चाहिये अब बहुत हो चुका उखाड़ फ़ेकना है इस सिस्टम को

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  25. फसलें बारूद की उगती जंगल-घाटी में,
    नीरो बन, बांसुरी बजाओ, लोकतंत्र है ।

    लोकतंत्र का यह स्लाइड शो अच्छा लगा।
    लोकतंत्र की बखिया उधेड़ती बेबाक रचना।

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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