जंगल जंगल वेदना, मनुज वेदना शुन्य|
भटके भूले राह सब, कहाँ पाप कंह पुण्य||
नादानी है छीनना, हरियाली के प्राण|
वरदाता सब पेड अब, मांगें जीवनदान||
यदि बचाना स्वयं को, अरु अपना संसार|
पेड लगा कर हम करें, सृष्टि का श्रृंगार||
सुलगे सूरज सांझ तक, अम्बर त्राहिमाम|
बादल बरगद छांव में, तनिक करे विश्राम ||
सुलगे सूरज सांझ तक, अम्बर त्राहिमाम|
बादल बरगद छांव में, तनिक करे विश्राम ||
पेड़ों की ह्त्या करे, किस खातिर हतभाग?
हरियाली बिन ये धरा, डस लेगी बन नाग||
प्यासी नदिया ताकती, अम्बर मेघ विहीन|
बिन जंगल देखो ज़रा, जगती कितनी दीन|
बाँध द्वेष का भर चला, बंध हुये कमजोर|
वृक्ष प्रेम का रोप कर, जीवन करें विभोर||
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वाह सर......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
प्यासी नदिया ताकती, अम्बर मेघ विहीन|
बिन जंगल देखो ज़रा, जगती कितनी दीन|
सार्थक संदेसा देते....
सादर.
अनुपम प्रस्तुति |
ReplyDeleteसटीक एवं आवश्यक सन्देश ||
भाये ए सी की हवा, डेंगू मच्छर दोस्त ।
Deleteफल के पादप काटते, काटें मछली ग़ोश्त ।
काटें मछली ग़ोश्त, बने टावर के जंगल ।
टूंगे जंकी टोस्ट, मने जंगल में मंगल ।
खाना पीना मौज, मगन मानव भरमाये ।
काटे पादप रोज, हरेरी अपनी भाये ।।
बाँध द्वेष का भर चला, बंध हुये कमजोर|
ReplyDeleteवृक्ष प्रेम का रोप कर, जीवन करें विभोर||
ला-जवाब है आपका प्रकृति प्रेम
निरामिष: पश्चिम में प्रकाश - भारत के बाहर शाकाहार की परम्परा
bahot achchi.....
ReplyDeleteसुन्दर दोहे आपके, प्रेरित करते नित्य,
ReplyDeleteलुप्त हुए सरिता सलिल, धूमिल है आदित्य!
यदि बचाना स्वयं को, अरु अपना संसार|
ReplyDeleteपेड लगा कर हम करें, सृष्टि का श्रृंगार||
लाजवाब दोहे... सार्थक सन्देश...
प्यासी नदिया ताकती, अम्बर मेघ विहीन|
ReplyDeleteबिन जंगल देखो ज़रा, जगती कितनी दीन|
थोड़े से स्वार्थ के लिए प्रकृति पर अत्याचार किया जाता है और उनके परिणामों के बारे में कोई नहीं सोचता। आपके दोहे गहरे विचारों से परिपूर्ण हैं।
प्रेरक और सुंदर रचना ...!!
ReplyDeleteसुलगे सूरज सांझ तक, अम्बर त्राहिमाम|
ReplyDeleteबादल बरगद छांव में, तनिक करे विश्राम || ... बेहद अच्छे भाव
जंगल जंगल वेदना, मनुज वेदना शुन्य|
ReplyDeleteभटके भूले राह सब, कहाँ पाप कंह पुण्य||
बहुत सुंदर रचना,......
my resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
महाकाल के हाथ पे गुल होतें हैं पेड़ ,
ReplyDeleteसुषमा तीनों लोक की कुल होतें हैं पेड़ .
पेड़ पांडवों पर हुआ ,जब जब अत्याचार
ढांप लिए वट वृक्ष ने तब तब दृग के द्वार .
महा नगर ने फैंक दी ,मौसम की संदूक ,
पेड़ परिंदों से हुआ कितना बुरा सुलूक .
ये तेजाबी बारिशें ,बिजली घर की राख ,
एक दिन होगा भूपटल ,वारणावर्त की लाख .
बहुत सुन्दर पर्यावरणी माहौली दोहे रचे हैं आपने .बधाई .
प्रकृति को सहेज कर रखने का कर्म बना रहे।
ReplyDeleteसभी दोहे बहुत अच्छे लगे...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सटीक उपयोगी दोहे!
ReplyDeleteसुलगे सूरज सांझ तक, अम्बर त्राहिमाम|
ReplyDeleteबादल बरगद छांव में, तनिक करे विश्राम ||
सार्थक संदेश देते सभी दोहे लाज़वाब...
सादर
प्रभावी व सार्थक दोहे..अच्छी लगी..
ReplyDeleteबाँध द्वेष का भर चला, बंध हुये कमजोर|
ReplyDeleteवृक्ष प्रेम का रोप कर, जीवन करें विभोर||
सभी दोहे एक से बढ़कर एक हैं ...आभार ।
मेरा ख़याल है कि पर्यावरण और वन मंत्रालय इन विषयों पर स्लोगनों को आमंत्रित और पुरस्कृत भी करता है।
ReplyDeleteबाँध द्वेष का भर चला, बंध हुये कमजोर|
ReplyDeleteवृक्ष प्रेम का रोप कर, जीवन करें विभोर||
वाह रोप चाहे प्रेम का हो या वृक्ष का ....दोनों ही द्वेष के ज़हर का तोड़ है ...सुन्दर रचना
सचमुच मनुज वेदना शून्य....कहाँ पाप और पुण्य...
ReplyDeleteयदि आपको मुझसे प्रेम का ख्याल आये तो सभी
ReplyDeleteदोहे मेल करें जिससे इनका उपयोग पाठशाला में
किया जा सके .
कोई धन्यवाद् नहीं .
हर एक दोहा बहुत सार्थक ... अच्छी सीख देते दोहों के लिए बधाई
ReplyDeleteबेहतरीन....बहुत बहुत बधाई....
ReplyDelete.
ReplyDelete♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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*चैत्र नवरात्रि और नव संवत २०६९ की हार्दिक बधाई !*
*शुभकामनाएं !*
*मंगलकामनाएं !*
धरा बचाने के लिये अमल करें उपदेश
ReplyDeleteवरना सारी सृष्टि ही होगी भग्नावशेष.
बाँध द्वेष का भर चला, बंध हुये कमजोर|
ReplyDeleteवृक्ष प्रेम का रोप कर, जीवन करें विभोर||
सुंदर कविता । सही कहा आपने । इतने वृक्ष कटेंगे तो पर्यावरण कैसे बचेगा और कैसे बचेगी ये धरती ।
सार्थक संदेश...नव संवत्सर की शुभकामनायें..
ReplyDeleteप्यासी नदिया ताकती, अम्बर मेघ विहीन|
ReplyDeleteबिन जंगल देखो ज़रा, जगती कितनी दीन|
.....जब हम प्रकृति से खिलवाड करेंगे तो यह तो एक दिन होगा ही...पर्यावरण संरक्षण को जागरूक करते सुंदर दोहे...नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!
पर्यावरण दोहों के माध्यम से सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut hi achchhe sandesh dete huye dohe..... sunder prastuti.
ReplyDeleteप्यासी नदिया ताकती, अम्बर मेघ विहीन|
ReplyDeleteबिन जंगल देखो ज़रा, जगती कितनी दीन|
बाँध द्वेष का भर चला, बंध हुये कमजोर|
वृक्ष प्रेम का रोप कर, जीवन करें विभोर||
सचमुच जंगल करतें हैं वर्षा का आवाहन ,बनाए रहतें हैं जैव विविधता .एक लाख से ज्यादा बरस लगतें हैं जंगल को खडा होने में और माफिया को ?प्रकृति से जुड़ाव का अभाव ही जीवन को रीता कर रहा है .बांध और बंधन दोनों छीज रहें हैं .बहुत बढ़िया दोहे रचें हैं हबीब साहब .बधाई .ब्लॉग पर आप आयें अच्छा लगा .उत्साह बढ़ा .ये आवाजाही बनी रहे ,कुछ हमको भी नित नया मिले .
प्यासी नदिया ताकती, अम्बर मेघ विहीन|
ReplyDeleteबिन जंगल देखो ज़रा, जगती कितनी दीन|
उम्दा प्रस्तुति ...
सुन्दर और सार्थक दोहे।
ReplyDeleteप्यासी नदिया ताकती, अम्बर मेघ विहीन|
ReplyDeleteबिन जंगल देखो ज़रा, जगती कितनी दीन|
बहुत सुंदर .... सार्थक सन्देश देती रचना
प्यासी नदिया ताकती, अम्बर मेघ विहीन।
ReplyDeleteबिन जंगल देखो ज़रा, जगती कितनी दीन।
लालित्यपूर्ण किंतु सचेत करते दोहे।
हरियाली की कीमत अभी भी समझो इंसान
ReplyDeleteरही अगर हरियाली तभी रहेगी तेरी जान ।।।।।
यदि बचाना स्वयं को, अरु अपना संसार|
ReplyDeleteपेड लगा कर हम करें, सृष्टि का श्रृंगार ...
ये श्रृंगार आज की जरूरत है ... मनुष्य जाती को यदि ईद पृथ्वी पे रहना है तो उसका संरक्षण करना ही होगा ... सार्थक दोहे हैं सभी ...
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteनश्तर सा चुभता है उर में कटे वृक्ष का मौन
नीड़ ढूँढते पागल पंछी को समझाये कौन!
पर्यावरण कि रक्षा का सन्देश देती सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय हबीब जी धन्यवाद
ReplyDeletebahut sunder
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