Saturday, February 25, 2012

अनुष्टुप छंद (प्रायोगिक प्रविष्टियाँ)

भी सम्माननीय सुधि मित्रों को सादर नमस्कार. मित्रों, भारतीय छंद शास्त्र सचमुच महासागर की तरह है. इसमें ऐसे ऐसे मोती हैं जिसकी चमक से विश्व साहित्य हमेशा जगमगाता रहा है. ओपन बुक्स आनलाइन से जुड़ने के पश्चात  निश्चित ही मेरी छंदों में जानकारी, समझ और रूचि बढी है. सनातनी छंदों के सम्बन्ध में यहाँ प्रचुर एवं दुर्लभ जानकारियाँ सहज ही उपलब्ध हैं. समग्र साहित्य सेवा के क्षेत्र में ओपन बुक्स आनलाइन एक स्तुत्य उदाहरण है. पिछले दिनों आदरणीय बड़े भईया सौरभ पाण्डेय जी की  अनुष्टुप छंद   के सम्बन्ध में बहुमूल्य जानकारी देती प्रस्तुति ने इस मनोहारी छंद (जिसमें श्री मद्भागवत गीता, श्रीसुक्तम, गायत्री कवचम, विष्णु सहस्त्रनाम आदि की रचना हुई है. और हिन्दी पद्य में इस चार चरण के समवार्णिक छंद के चरण व वर्ण विन्यास निम्नानुसार होते हैं विषम चरण - वर्ण क्रमांक पाँचवाँ, छठा, सातवाँ, आठवाँ क्रमशः लघु, गुरू, गुरू, गुरू | सम  चरण -  वर्ण क्रमांक पाँचवाँ, छठा, सातवाँ, आठवाँ  क्रमशः लघु, गुरू, लघु, गुरू) के प्रति जिज्ञासा तो बढाई साथ ही कुछ रचने को भी प्रेरित किया.... प्रथम प्रयास के रूप में (अनुष्टुप पर एक प्रयोग) यह व्यंग्यिका रची थी. सुधीजनों की सभा में सादर प्रस्तुत है...

समय है चुनावों का, गाल सब बजा रहे | 
राम युग बसाएंगे, ख्वाब अब दिखा रहे || 

भेद भूल गये सारे, कौन कब गरीब हैं, 
झोपडियां सभी जाएँ, मिलता जो चबा रहे || 

ढोयें सरमेले भी, खाट पर पड़े रहें, 
पैर छाले खिलें भी तो, मंद वो मुसका रहे || 

श्रम करें किसानों सा, पौधे रोप रहे अभी, 
मौज कर बिताएंगे, पांच वर्ष मना रहे || 

हबीब जानता भी है, कितना कौन गैर है,
सभी यहाँ रियाया को, चूना नित लगा रहे| 

ओपन बुक्स आनलाइन में पिछले दिनों (१८ से २० फ़रवरी तक चली) छंद आधारित चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता में अनुष्टुप में मेरी यह प्रायोगिक प्रविष्टी सम्मिलित हुई तथा जिसे सवारने में स्वयं आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी का स्नेहिल स्पर्श भी मिला... सुधीजनों की सभा में सचित्र प्रस्तुत है...

ढल रही बहारों में, बहती रसधार है| 
कंटकमय राहों में, हंसता सनसार है| 

संग धर साथी का, प्रेरक य साथ हो, 
जलती मरुभूमी भी, शीतल भिनसार है| 

साथ धव चन्दा है, चांदनी बरसात सी, 
कोमल उजियारे का, मोहक अभिसार है| 

अंतरम भावों से, छलछला रहा अभी,
सागर सरिता का यूँ, मिलना उपहार है| 

यूँ बचप लौटा है, शोख और शरारती, 
झुर्रियों से यहाँ झांकें, मुग्ध उत्कट प्यार है|
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(बोल्ड वर्ण विन्यासानुसार लघु/गुरु रेखांकन)
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30 comments:

  1. यूँ बचपन लौटा है, शोख और शरारती,
    झुर्रियों से यहाँ झांकें, मुग्ध उत्कट प्यार है|... gahra hai

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  2. nice......achhi rachana ke liye badhai....

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  3. सीएचएचएनडी के बारे मेन विस्तृत और अच्छी जानकारी मिली ... आपका प्रयास निसंदेह सराहनीय है ...

    दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी ...

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  4. छंद के बारे में विस्तृत और अच्छी जानकारी मिली ... आपका प्रयास निसंदेह सराहनीय है ...

    दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी ...

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  5. साथ धवल चन्दा है, चांदनी बरसात सी,
    कोमल उजियारे का, मोहक अभिसार हैद्य

    अनुष्टुप छंद में बहुत सुंदर रचनाएं।
    कमाल है !

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  6. बहुत सुन्दर छंद...
    और साथ साथ ज्ञानवर्धन भी...

    शुक्रिया सर.

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  7. छंद बद्ध सुंदर रचना तथा सुंदर चित्र के लिये बहुत बहुत बधाई !

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  8. शब्द, छंद, आनन्द रसीला,
    फिर उतरी भावों की लीला

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  9. अंतरमन भावों से, छलछला रहा अभी,
    सागर सरिता का यूँ, मिलना उपहार है|
    SADAR BADHAI ....CHITR KE LIIYE BHI ABHAR....RACHANA BAHUT ACHHI LAGI .

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  10. आनन्द आ गया इन छन्दबद्ध रचनाओं को पढ़कर...आपका आभार ..ज्ञानवर्धन हुआ.

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  11. अंतरमन भावों से, छलछला रहा अभी,
    सागर सरिता का यूँ, मिलना उपहार है|
    सबसे पहले बधाई..... रचना इतनी प्रभावशाली है की जगह न मिलती तो आश्चर्य ही होता.

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  12. अनुष्टुप छन्द के बारे में इतना विस्तार से पढ़ा. धन्यवाद.

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  13. यूँ बचपन लौटा है, शोख और शरारती,
    झुर्रियों से यहाँ झांकें, मुग्ध उत्कट प्यार है|..

    bhaut sundar ...

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  14. संग धरम साथी का, प्रेरक यह साथ हो,
    जलती मरुभूमी भी, शीतल भिनसार है|

    साथ धवल चन्दा है, चांदनी बरसात सी,
    कोमल उजियारे का, मोहक अभिसार है|
    PRANAM AAP ITANA SUNDAR LIKHATE BAS PADA JAYE
    AAM KI TARAH CHUSA JAYE
    SWAD KISI KO BATAYA NA JAYE

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  15. खूबसूरत व्यंग्यिका रची है आपने। चुनावो का रंग उड़ने ही वाला है प्रेम का नशा छटने वाला है। छह मार्च के बाद भगवान ही बचाये हम लोगो को।

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  16. छंदों से उमड़ी उत्कट प्रेम मुग्धहारी है..

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  17. हबीब जानता भी है, कितना कौन गैर है,
    सभी यहाँ रियाया को, चूना नित लगा रहे|..

    वाह छंदों की विधा में जीवन का सार छिपा है ... आपने चुनावों के मौसम में इन्हें ब्व्यंग धार में उतारा है ... लाजवाब ...

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  18. साथ् धावल चन्दा है ---
    मन भावन पंक्ति |
    अच्छी प्रस्तुति |
    आशा

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  19. wah dono hi chand behad sundar..

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  20. एक वैज्ञानिक द्रष्टिकोण के साथ आपने जो रचना प्रस्तुत की वह बहुत ही मनमोहक है!! साधुवाद!!

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  21. सुँदर रचना ...छंद के बारे में अच्छी जानकारी मिली|
    सादर

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  22. अद्भुत!
    आपकी लेखनी को नमन!
    आपने तो न सिर्फ़ विषय को सहजता से समझा दिया बल्कि साथ ही मधुर रचनाएं भी लिख डाली।

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  23. .आपका आभार ..मनमोहक रचना प्रस्तुत की

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  24. यूँ बचपन लौटा है, शोख और शरारती,
    झुर्रियों से यहाँ झांकें, मुग्ध उत्कट प्यार ह

    मन भावन सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई,...
    संजय जी,..आपका फालोवर बन गया हूँ,...

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  25. बहुत सुंदर शाब्दिक संयोजन ....

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  26. बहुत सार्थक प्रस्तुति, सुंदर रचना के लिए संजय जी बधाई,...

    NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...

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  27. महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए और बेहतरीन छंदों के लिए आभार...

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  28. बहुत सुंदर

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  29. समय है चुनावों का, गाल सब बजा रहे |
    राम युग बसाएंगे, ख्वाब अब दिखा रहे ||
    सुन्दर प्रस्तुति .

    यूँ बचपन लौटा है, शोख और शरारती,
    झुर्रियों से यहाँ झांकें, मुग्ध उत्कट प्यार है|
    ज़वाब नहीं इसका भी .

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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