Wednesday, November 30, 2011

ग़ज़ल (जंजाल आते हैं)

सभी सम्माननीय सुधि मित्रों को सादर नमस्कार कर एक ग़ज़ल महफिले दानां में पेशे खिदमत है... 
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बहर :- बहरे हजज मुसम्मन सालिम | 
मफाईलुन | मफाईलुन | मफाईलुन | मफाईलुन
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विदेशी बेचने हमको हमारा माल आते हैं ।
हमारी जान की खातिर बड़े जंजाल आते हैं ।1।

रहो खामोश अपने देश की बातें न करना तुम,
जुबां खोली अगर, माजी तिरा खंगाल आते हैं ।2।

सभी मिहमान को हम देव की भांती बुला लेते,
लुटेरे भी अगर आये बजाते गाल आते हैं ।3।

नये वादे बनायेंगे हसीं सपने दिखाने को,
यहाँ सीधे सहज लोगों पे टेढ़े चाल आते हैं ।4।

रिवाजो रस्म होते हैं जुदा जंगल के सब यारों
मरे जो भेड तो भी काम उनके खाल आते हैं ।5।

मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं ।6।

नजर है नींद से बोझिल मगर सो भी नहीं पाता,
गुलामी के हबीब सपन मुझे विकराल आते हैं ।7

  
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यहाँ सुनें

47 comments:

  1. रिवाजो रस्म होते हैं जुदा जंगल के सब यारों
    मरे जो भेड तो भी काम उनके खाल आते हैं ।5।
    बहुत बढ़िया .....

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  2. रहो खामोश अपने देश की बातें न करना तुम,
    जुबां खोली अगर, माजी तिरा खंगाल आते हैं ... bahut hi jabardast

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  3. नजर है नींद से बोझिल मगर सो भी नहीं पाता,
    गुलामी के ‘हबीब’ सपन मुझे विकराल आते हैं
    बहुत खूब कहा है आपने ।

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  4. सुन्दर अति सुन्दर.......व्यंग्य में लिपटी ये ग़ज़ल शानदार है|

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  5. प्रस्तुति इक सुन्दर दिखी, ले आया इस मंच |
    बाँच टिप्पणी कीजिये, प्यारे पाठक पञ्च ||

    cahrchamanch.blogspot.com

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  6. मस्त गजल हे गा, शानदार मीटर लगे हे। हेडलाईट घलो बरत हे बहर मा, मजा आगे भाई , राम राम

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  7. मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं ।6।

    बहुत खूब ...

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  8. एक खुबसूरत और उम्दा ग़ज़ल.....

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  9. मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं ।6।
    मार्मिक तथ्य उतनी ही मार्मिकता से रेखांकित हुई है!
    बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए!

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  10. मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं ।
    ............शानदार !

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  11. मेरी टिप्पणी लगता है स्पैम में चली गई है। कृपया देखें।

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  12. हमको ग़ज़ल की तकनीकी जानकारी कोई खास नहीं है। बस इतना पता है कि यह ग़ज़ल जबर्दश्त है।

    हमारे गुरु (ग़ज़ल के मामले में) सलिल भाई का कहना है कि एक ग़ज़ल के शे’र में अलग बात कहते हुए होने चाहिए.. और इस गज़ल में ऐसा ही है। इसलिए यह ग़ज़ल पूरी तरह से सटीक और सार्थक है।

    ऐसी ग़ज़ल ब्लॉग जगत में कम ही देखने को मिलती है।

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  13. प्रिय बंधुवर संजय जी
    क्या बात है !

    अब तो उस्तादों को भी मात देने लगे हैं :)

    विदेशी बेचने हमको हमारा माल आते हैं
    हमारी जान की खातिर बड़े जंजाल आते हैं


    बहुत ख़ूब !

    सदैव मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  14. bahut khoob Habib bhai ,

    gazal ka ak maksad ye bhi hai .jise ap ne poora kr hi diya . thanks mishra ji

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  15. बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  16. बड़ी ही सामयिक गज़ल संजय जी.खतरनाक ख्वाबों के खौफ से भला कौन सो पा रहा है.मशीन का प्रयोगवाद बेहतरीन.
    विदेशी बेचने हमको हमारा माल आते हैं ।
    हमारी जान की खातिर बड़े जंजाल आते हैं ।1।.....वाह !!!!

    बड़ी मछलियाँ यहाँ लीलने तैयार बैठी हैं
    उधर हमको फँसाने उफ् सुनहरे जाल आते हैं...

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  17. बहुत जानदार और शानदार गजल ! हबीब का क्या अर्थ होता है...

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  18. रिवाजो रस्म होते हैं जुदा जंगल के सब यारों
    मरे जो भेड तो भी काम उनके खाल आते हैं ।5।

    ....बहुत सशक्त गज़ल...बेहतरीन

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  19. सुंदर आवाज में उम्दा गजल,..बेहतरीन ,...

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  20. मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं ।6।

    बेमिसाल लिखा है आभार

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  21. अति सुन्दर रचना है ..
    अपने जिस रंग शैली में इसे लिखा है यह रचना को और भी रोचक बनती है...

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  22. मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं ।6।

    नजर है नींद से बोझिल मगर सो भी नहीं पाता,
    गुलामी के ‘हबीब’ सपन मुझे विकराल आते हैं ।7।

    kya Khoob!

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  23. वाह...बेजोड़ रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  24. Waah !! Shandaar ghazal .
    Sare sher behad umda.

    Badhaai.

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  25. क्या बात है । आपेक पोस्ट ने बहुत ही भाव विभोर कर दिया । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है ।

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  26. समसामयिक बात उठाई है ..बहुत खूबसूरत गज़ल

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  27. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 04 -12 - 2011 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज .जोर का झटका धीरे से लगा

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  28. मेरा कमेन्ट कहाँ गया ... स्पैम में देखिएगा

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  29. नजर है नींद से बोझिल मगर सो भी नहीं पाता,
    गुलामी के ‘हबीब’ सपन मुझे विकराल आते हैं

    बहर के परिचय और ऑडियो के साथ प्रस्तुतिकरण प्रभावी बन पड़ा है

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  30. अच्छा व्यंग्य करती हुई सुंदर गज़ल ... लिखते रहें ...
    देश के विषय में सोचने वाले वैसे भी बहुत कम हैं.... बधाई..

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  31. मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं ।

    आजकल के हालात को बयां करती लाजवाब ग़ज़ल।

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  32. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेर नए पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़एं । धन्यवाद ।

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  33. सभी मिहमान को हम देव की भांती बुला लेते,
    लुटेरे भी अगर आये बजाते गाल आते हैं ।
    - यही बात है .मेहमान ,घरवालों से बढ़ कर हो जाता है, और चलती है उसकी मनमानी1

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  34. रहो खामोश अपने देश की बातें न करना तुम,
    जुबां खोली अगर, माजी तिरा खंगाल आते हैं

    बहुत ही खूब,हबीब भाई.
    आज का सच लिखा है आपने.

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  35. नजर है नींद से बोझिल मगर सो भी नहीं पाता,
    गुलामी के ‘हबीब’ सपन मुझे विकराल आते हैं

    बहुत सुन्दर सार्थक और विचारणीय प्रस्तुति है आपकी.
    आपकी मधुर गायन में मार्मिकता का पुट दिल को
    छूता है.

    अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
    मेरे ब्लॉग पर आप आये,इसके लिए भी आभार.

    फिर से मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    हनुमान लीला पर आपके अमूल्य विचार और
    अनुभव आमंत्रित हैं.

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  36. मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं ।6।

    bahut sundar !

    .

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  37. मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं ...
    बहुत ही लाजवाब ... कमाल की बात कहे है आपने ... एक तरफ बडती जनसँख्या और दूसरी तरफ मशीन युग ... करार व्यंग ...

    नजर है नींद से बोझिल मगर सो भी नहीं पाता,
    गुलामी के ‘हबीब’ सपन मुझे विकराल आते हैं ...
    डेढ़ के ताज़ा हालात पे सही टीका किया है आपने .... बहुत ही लाजवाब गज़ल है हबीब जी ... मज़ा आ गया ...

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  38. बेहद ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  39. नजर है नींद से बोझिल मगर सो भी नहीं पाता,
    गुलामी के ‘हबीब’ सपन मुझे विकराल आते हैं.bahut khub.

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  40. नजर है नींद से बोझिल मगर सो भी नहीं पाता,
    गुलामी के ‘हबीब’ सपन मुझे विकराल आते हैं ।7।
    bahut sundar mishra ji

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  41. विदेशी बेचने हमको हमारा माल आते हैं ।
    हमारी जान की खातिर बड़े जंजाल आते हैं

    मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं

    kya kataksh kiya hai aapne...samsamiyik jai ye prastuti...badhai... nayi post dali hai, ek nazar wahan bhi..

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  42. नजर है नींद से बोझिल मगर सो भी नहीं पाता,
    गुलामी के ‘हबीब’ सपन मुझे विकराल आते हैं ।7।
    bahut badhia ..

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  43. मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं
    मज़ा आ गया

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  44. मशीनों की नई इक खेप बस आने ही वाली है,
    उधर इनसान डालो तो इधर कंकाल आते हैं ।

    बेजोड़ ...!

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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