सभी स्नेही गुनीजनों को सादर नमस्कार... आज बापू की १४६वीं जयंती है... उनका सादर पुन्य स्मरण.... आज जगह जगह पर अनेक कार्यक्रमों में बापू याद किये जा रहे हैं... एक दो कार्यक्रमों में हिस्सा भी लिया... पर जाने क्यूँ भावनाओं का ज्वार भी भाव के अभाव को इंगित करता प्रतीत होता रहा... वापस आकर बापू को स्मरण कर कुछ लिखने बैठा ही था
हर कदम पर धोखे यहाँ, बापू! न आना इस देश में.
किस पर विश्वास करोगे, रावन है विभीषण वेश में...
तुमने जीवन वार दिया, आज़ादी का उपहार दिया
अमूल्य नींव को जाने, हमने क्या व्यवहार दिया
देश तुम्हारा अब खडा है, कठिनतम, कलुषित परिवेश में.
किस पर विश्वास करोगे, रावन है विभीषण वेश में...
कितने अच्छे ख्वाब सजाकर, दिए थे तुमने कल के लिए
जीने नहीं दिया उनको, हमी ने ही दो पल की लिए
अपने स्वारथ सिद्ध किये हैं, दहका कर अग्नि देश में.
किस पर विश्वास करोगे, रावन है विभीषण वेश में...
तेरी मूरत के नीचे, बैठ करें हम भ्रष्टाचार
शहीदों का सद्पुन्य प्रयास, लगता लोकतंत्र लाचार
उलझा उलझा पलता है, संकीर्णता और क्लेश में.
किस पर विश्वास करोगे, रावन है विभीषण वेश में...
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त्रस्त मन की सटीक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबापू आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने कल थे। इन सब अवमूल्यन का कारण ही है कि हम उनके दिखाए मार्ग और बताए आदर्शों से भटक गये हैं।
ReplyDeleteसार्थक और सटीक अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteतेरी मूरत के नीचे, बैठ करें हम भ्रष्टाचार
ReplyDeleteशहीदों का सद्पुन्य प्रयास, लगता लोकतंत्र लाचार
उलझा उलझा पलता है, संकीर्णता और क्लेश में.
किस पर विश्वास करोगे, रावन है विभीषण वेश में...
बहुत ही सार्थक रचना हबीब साहब.. बिलकुल सही कहते हैं आप.. आभार !
तेरी मूरत के नीचे, बैठ करें हम भ्रष्टाचार
ReplyDeleteशहीदों का सद्पुन्य प्रयास, लगता लोकतंत्र लाचार
उलझा उलझा पलता है, संकीर्णता और क्लेश में.
किस पर विश्वास करोगे, रावन है विभीषण वेश में...
बहुत ही सार्थक रचना हबीब साहब.. बिलकुल सही कहते हैं आप.. आभार !
बिलकुल सही कहा.. सटीक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteराष्ट्रपिता महात्मा गांधी और यशस्वी प्रधानमंत्री रहे स्व. लालबहादुर शास्त्री के जन्मदिवस पर उन्हें स्मरण करते हुए मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि!
ReplyDeleteइन महामना महापुरुषों के जन्मदिन दो अक्टूबर की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
हबीब जी , वर्तमान परिदृश्य में आपकी सोच बिल्कुल सही है.मनोज जी ने कारण भी सटीक बताया है.आपकी कलम ने हर भारतीय की छटपटाहट को अभिव्यक्ति दी है.सार्थक रचना.
ReplyDeleteयथार्थ का भावपूर्ण चित्रण
ReplyDeletebapu ne khud hi kaan band ker liya hai, aankhen band ker li hain , munh band ker liya....
ReplyDeleteबापू हैं तो आना ही होगा चाहे हम कितने भी गिर जाएँ…
ReplyDeleteतेरी मूरत के नीचे, बैठ करें हम भ्रष्टाचार
ReplyDeleteशहीदों का सद्पुन्य प्रयास, लगता लोकतंत्र लाचार
उलझा उलझा पलता है, संकीर्णता और क्लेश में.
किस पर विश्वास करोगे, रावन है विभीषण वेश में...
हर कदम पर धोखे यहाँ, बापू! न आना इस देश में.
यथार्थ का काव्यमय सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...आभार.
प्रिय संजय मिश्र हबीब भाई बातें सटीक हैं व्यंग्य का पुट कटाक्ष ...सुन्दर ...सच में देश की यही हाल है ....बापू से किसी का भी जीना दूभर
ReplyDeleteबधाई आप को लाजबाब ...
धन्यवाद और आभार ..अपना स्नेह और समर्थन दीजियेगा
भ्रमर ५
देश तुम्हारा अब खडा है, कठिनतम, कलुषित परिवेश में.
किस पर विश्वास करोगे, रावन है विभीषण वेश में...
जब ह्रदय चीत्कार करता है तो ऐसी ही कामना उठती है...अति सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...आभार ।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है आपने ..सार्थक व सटीक लेखन ।
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने ! तस्वीर बहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteतेरी मूरत के नीचे, बैठ करें हम भ्रष्टाचार
ReplyDelete....यही तो आज की विडम्बना है..बहुत सटीक और प्रभावी प्रस्तुति..
vibheeshan ne to fir bhi dharam ka sath de kar saty ko pooja tha...lekin ye vebheeshan roopi ravan to na to dharam ke pujari hain, na saty ka sath dete hain na apni antaraatma ki aawaz sunte hain.
ReplyDeleteprabhavi prastuti.
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ......सार्थक व सटीक.....
ReplyDeleteबापू इधर आनाईच मत बाप बोले तो तुम्हारा हार्ट टूटॆला हो जाइंगा
ReplyDeleteजोरदार रचना -सचमुच विषाद पूर्ण स्थिति है
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