मैं क़ैद हूँ.... !!
ज़मीन के नीचे
तहखाने में....
जिसकी नींव लेकर
ऊपर,एक उन्नत भवन
बना दिया गया है,
जहां से कुछ लोग,
“जिन्हें मैं जानता नहीं,
जिनकी मैनें
कभी सूरत नहीं देखी,
और जिन्होनें,
कभी मेरी सूरत नहीं देखी”,
देश और दुनिया को
विश्वास दिलाते हैं
मेरे ज़िंदा होने का....
मेरे स्वस्थ्य होने का....
तहखाना...
जहां एक सुराख भर
बनाया गया है,
मेरी साँसों के लिए...
कुछ सालों के अंतराल में
उसी सुराख से
मुझे ‘वोटों’ की
खुराक दे दी जाती है...
कि मैं ज़िंदा रहूँ... !!
कि उनके
उन्नत भवन की नींव
सलामत रहे.... !!
हाँ, आपने सही पहचाना...
मैं ‘लोकतंत्र’ हूँ... !!
मेरी सेहत
बहुत नाज़ुक है....
पहुंचना चाहता हूँ,
किसी तरह मैं
‘लोक’ के पास...
किन्तु, समझ नहीं आता, कैसे ???
‘तन्त्र’ ने
कर जो रखा है मुझे....
‘क़ैद’
ज़मीन के नीचे...
तहखाने में... !!
हाँ, आपने सही पहचाना...
ReplyDeleteमैं ‘लोकतंत्र’ हूँ... !!
मेरी सेहत
बहुत नाज़ुक है....
पहुंचना चाहता हूँ,
किसी तरह मैं
‘लोक’ के पास...
किन्तु, समझ नहीं आता, कैसे ???
waah, behtareen rachna
लोकतंत्र कैद है ..सटीक अभिव्यक्ति ..
ReplyDeletebehtreen abhivakti...
ReplyDeleteलोकतंत्र कैद हुआ है,चांदी की दीवारों में।
ReplyDeleteवादों का खून किया,बाहुबली हत्यारो नें।।
बढिया संदेश हवे कविता मा।
शुभकामनाएं
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ...रश्मि दी की -''शख्स मेरी कलम से .''.के द्वारा ..आकर अच्छा लगा और आपका ब्लॉग भी फोल्लो किया है ..
ReplyDelete‘तन्त्र’ ने
कर जो रखा है मुझे....
‘क़ैद’
ज़मीन के नीचे...
तहखाने में... !!
.
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी ..आना सार्थक हुआ है ...
शुभकामनायें ...
बात तो सही है लोकतंत्र है क्या मैने तो नही देखा अपने जीवन काल मे चुनाव प्रचार बहुत किये थे जवानी मे अफ़सोस केवल एक का ही है जब हम नारा लगाते थे "रायपुर का कौन प्रदूषण केयूर भूषण केयूर भूषण" जब समझ आयी तो बहुत बाद मैने उनसे अतःमन से माफ़ी मांगी खैर साहब तब वो चुनाव लड़ भी नही रहे थे और चाहते तो भी लड़ नही सकते थे
ReplyDeletebahut dard hai is sachchayee men........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...बधाई
ReplyDeleteआखिरी पंक्तियाँ तो बहुत ही जबरदस्त हैं. बेहतरीन बिम्ब का प्रयोग किया है.
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना.
बहुत प्रभावी ... सच है लोकतंत्र को आज कैद आर लिया है इन भ्रष्टाचारों ने ...
ReplyDeleteवाह!! बेहतरीन ...बहुत उम्दा रचना.
ReplyDeleteलोकतंत्र के दर्द को बखूबी व्यक्त करती ....भावपूर्ण रचना
ReplyDeletebahut bahut sateek lekhan. aabhar.
ReplyDeleteसटीक और
ReplyDeleteरचना के लियें आभार..
कविता, जो गिरते हुये सामाजिक मूल्यों के बीच, आशा और विश्वास की रौशनी बिखेर सके. आज के जीवन में हम नींव की ईंट को और उसके महत्व को भूल ही गये हैं. कविता मैं आपने बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है. धन्यवाद.
ReplyDeleteआनन्द विश्वास
अहमदाबाद
bahut achha laga padkar..
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना.
ReplyDeleteआनंद विश्वास