समस्त सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार... काफी हाउस की महफ़िल, नोक झोंक, हास परिहास ओर चुटकियों के बीच से निकली एक दुखबंदी.... ओ... ओ.. सॉरी... तुकबंदी... :-))
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बाअदब.... बामुलाह्जा.... होशियार.... ।
आ गया वह छीन कर सुख, देने को दिक्कत हजार ।
*
सारी दुनिया ही खिलाफत में खड़ी उसके मगर,
जाने क्या खा कर चला है, जीत जाता बार बार ।
*
वेदना का बिम्ब है बस उसके मिलने की खबर,
टूट पड़ता मुफलिसों पर, ले के वह शक्ति अपार ।
*
ना कोई सूरत, ना पैकर और ना ही पैरहन,
ना नज़र आकर के भी, वह करता है भीषण प्रहार ।
*
ज़र्रे ज़र्रे में ज़हां के, आया, आ के छा गया,
उसका ही गुण गा रहे, चेनल सभी सारे अखबार ।
*
सोचते हो कौन है वह, देखो सबके संग खडा,
हर बुराई का अधिष्ठाता है, ये है भ्रष्टाचार ।
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बाअदब.... बामुलाह्जा.... होशियार.... ।
आ गया वह छीन कर सुख, देने को दिक्कत हजार ।
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सारी दुनिया ही खिलाफत में खड़ी उसके मगर,
जाने क्या खा कर चला है, जीत जाता बार बार ।
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वेदना का बिम्ब है बस उसके मिलने की खबर,
टूट पड़ता मुफलिसों पर, ले के वह शक्ति अपार ।
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ना कोई सूरत, ना पैकर और ना ही पैरहन,
ना नज़र आकर के भी, वह करता है भीषण प्रहार ।
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ज़र्रे ज़र्रे में ज़हां के, आया, आ के छा गया,
उसका ही गुण गा रहे, चेनल सभी सारे अखबार ।
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सोचते हो कौन है वह, देखो सबके संग खडा,
हर बुराई का अधिष्ठाता है, ये है भ्रष्टाचार ।
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जै हो भ्रष्टाचार की ... सब उसकी माया है ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteभ्रष्टाचार का कोई पार न पा सका.. तीखा कटाक्ष
ReplyDeletesab gota laga rahe
ReplyDeleteबहुत खूब ..बढ़िया कटाक्ष
ReplyDeletevaah hbib bhaai bhrastaachar pr to bhtrin likh daala hai mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteज़र्रे ज़र्रे में ज़हां के, आया, आ के छा गया,
ReplyDeleteउसका ही गुण गा रहे, चेनल सभी सारे अखबार ।
सटीक लिखा है ...
लेखन की दशा और दिशा को
ReplyDeleteबखूबी बयान किया है आपने ....
ज़र्रे ज़र्रे में ज़हां के, आया, आ के छा गया,
उसका ही गुण गा रहे, चेनल सभी सारे अखबार
वाह - वा !!
बहुत अच्छे विचार, धन्यवाद आपको..
ReplyDeleteबहुत हनकदार प्रस्तुति....
ReplyDeleteसुन्दर व्यंग्य प्रस्तुति.... आज बस भ्रष्टाचार का ही तो बोलबाला है हर तरफ
ReplyDeleteबेतहरीन लिखा है सर.
ReplyDelete---------------
कल 06/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सारी दुनिया ही खिलाफत में खड़ी उसके मगर,
ReplyDeleteजाने क्या खा कर चला है, जीत जाता बार बार ।
बहुत खूब ...बहुत ही अच्छा लिखा है आपने, आपका विस्तृत परिचय रश्मि जी के ब्लॉग पर पढ़ा आभार ।
इस भ्रष्टाचार का दानव फैलता जा रहा है ... लाजवाब व्यंग रचना है ...
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com