Tuesday, May 24, 2011

"छत्तीसगढ़ फिर से लहुलुहान"

छत्तीसगढ़ एक सप्ताह में चौथी दफे नक्सली हिंसा का गवाह बना.... प्रदेश की राजधानी के निकटस्थ विकासखंड गरियाबंद में घटित इस लौमहर्षक घटना (जिसमें ११ जवान शहीद हो गए) के खतरनाक संकेतों को सत्ता के गलियारों में बसने वाले जाने कब समझेंगे.... बहरहाल, उबलती रोशनाई कागज़ के सीने में गिरी तो ग़ज़ल की शक्ल उभर आई.... "छत्तीसगढ़ फिर से लहुलुहान"
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बिलखते रास्ते, तडपते जवान।
छत्तीसगढ़ फिर से लहुलुहान।
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लगते छलावे, सारे ही दावे,
फजायें भूलीं, क्या है मुस्कान।
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जंगल हरवक्त, कैसा कमबख्त,
ए.सी. को होगा, भला कैसे ज्ञान।
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सुरक्षा-घेरा, लगा लेते फेरा,
जवाबी निंदा, दर्द से अनजान।
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वक्त के इशारे, बड़े हैं करारे,
सत्ता के मारे, समझे ना ईजान।
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हिंसा का सूरज, उगाये अन्धेरा,
कितना सहेगी, रोशनी अपमान?
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हबीब का ज़नाज़ा, पूछे सवाल,
कब खत्म होंगे, मेरे आलाम?

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6 comments:

  1. हिंसा का सूरज, उगाये अन्धेरा,
    कितना सहेगी, रोशनी अपमान?
    मन को झकझोरने वाली अभिव्यक्ति !

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  2. हबीब का ज़नाज़ा, पूछे सवाल,
    कब खत्म होंगे, मेरे आलाम?
    habib ka janaza......

    bahot hi arth swar hai bro appka.....
    great ..v nice !!

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  3. हबीब का ज़नाज़ा, पूछे सवाल,
    कब खत्म होंगे, मेरे आलाम?

    बहुत खूब ,हबीब भाई.
    सुबह जरूर आयेगी,सुबह का इंतज़ार कीजिये.

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  4. सुख चैन की धरती पर हिंसा का सैलाब
    सूनी मांगे मांग रही है खून का हिसाब .

    शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि

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  5. सटीक प्रश्न करती गज़ल ... मार्मिक

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  6. pan ka dard kavita ban kar nikala hai. nikalana hi chahiye.

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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