* आदमों की बस्ती है। मुसीबतें बसती हैं। * दूर बड़ा साहिल है, टूटी हुयी कश्ती है। * रोटियां तो मंहगी हैं, ज़िंदगी ही सस्ती है। * भीतर जईफ सभी, चेहरों पे सख्ती है। * कलम इश्तहारी है, खामोशी की गश्ती है। * 'हबीब' तेरे गुलशन की, हर कली सिसकती है। *
मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.
बहुत खूब ..हर शेर अलग अंदाज़ रखता है ..
ReplyDeleteरोटियां तो मंहगी हैं,
ReplyDeleteज़िंदगी ही सस्ती है।
*waah
रोटियां तो मंहगी हैं,
ReplyDeleteज़िंदगी ही सस्ती है।
WAAH BEHTARIN.......!!
रोटियां तो मंहगी हैं,
ReplyDeleteज़िंदगी ही सस्ती है। aaj ki suchaai likh di apne... bhut bhut acchi...
छोटी बहर की उम्दा ग़ज़ल ...
ReplyDeleteहर शेर बेहतरीन..
कहें किस्से दर्दे दिल जालिम
ReplyDeleteअपना रहनुमा ही खब्ती है.
उम्दा रचना है हबीब भाई......
दूर बड़ा साहिल है,
ReplyDeleteटूटी हुयी कश्ती है।
*
रोटियां तो मंहगी हैं,
ज़िंदगी ही सस्ती है।
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भीतर जईफ सभी,
चेहरों पे सख्ती है।
बहुत खूबसूरती से ज़िंदगी के हालात को बयान किया है अपने हर एक शेर में ...
goood poem brooo....!!!!
ReplyDeleteनहीं कहता कि खुदा हो जाओ, खुद को मगर इंसान कर लो"
ReplyDeleteबस इन्सान को इन्सान ही तो होने की जरुरत है... ख़ुदा का खौफ रहे इन्सान इन्सान रहे तो पूरी कायनात ख़ूबसूरत हो जाये...