Sunday, May 22, 2011

"चेहरों पे सख्ती है"

*
आदमों की बस्ती है।
मुसीबतें बसती हैं।
*

दूर बड़ा साहिल है,
टूटी हुयी कश्ती है।
*
रोटियां तो मंहगी हैं,
ज़िंदगी ही सस्ती है।
*
भीतर जईफ सभी,
चेहरों पे सख्ती है।
*
कलम इश्तहारी है,
खामोशी की गश्ती है।
*

'हबीब' तेरे गुलशन की,
हर कली सिसकती है।
*

9 comments:

  1. बहुत खूब ..हर शेर अलग अंदाज़ रखता है ..

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  2. रोटियां तो मंहगी हैं,
    ज़िंदगी ही सस्ती है।
    *waah

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  3. रोटियां तो मंहगी हैं,
    ज़िंदगी ही सस्ती है।

    WAAH BEHTARIN.......!!

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  4. रोटियां तो मंहगी हैं,
    ज़िंदगी ही सस्ती है। aaj ki suchaai likh di apne... bhut bhut acchi...

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  5. छोटी बहर की उम्दा ग़ज़ल ...

    हर शेर बेहतरीन..

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  6. कहें किस्से दर्दे दिल जालिम
    अपना रहनुमा ही खब्ती है.

    उम्दा रचना है हबीब भाई......

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  7. दूर बड़ा साहिल है,
    टूटी हुयी कश्ती है।
    *
    रोटियां तो मंहगी हैं,
    ज़िंदगी ही सस्ती है।
    *
    भीतर जईफ सभी,
    चेहरों पे सख्ती है।

    बहुत खूबसूरती से ज़िंदगी के हालात को बयान किया है अपने हर एक शेर में ...

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  8. नहीं कहता कि खुदा हो जाओ, खुद को मगर इंसान कर लो"

    बस इन्सान को इन्सान ही तो होने की जरुरत है... ख़ुदा का खौफ रहे इन्सान इन्सान रहे तो पूरी कायनात ख़ूबसूरत हो जाये...

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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