सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार..... मित्रों असंतुलित होती प्रकृति चिंता का विषय है.... पर्यावरण संरक्षण पर गहन विमर्श ओर गंभीर प्रयास आज की महती आवश्यकता है... प्रस्तुत है विषय विशेष पर दो कुण्डलियाँ .......
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१.
नदियों की छाती जले, सूखे पड़ गए खेत*
१.
मैं प्यासा बैठा रहा, लिए अंजुली रेत
लिए अंजुली रेत, भटकूँ दो बूंद जल को
संकल्प सब का ही, बचा सकता है कल को
कहता दास हबीब, चलो अब वृक्ष लगाएं
सुन्दर अपनी धरा, आज हम इसे बचाएं
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२
बूढ़ा पेड़ बिगड़ गया, सुन छाँव की बात
गुस्से में थर्राया फिर, मुझको जड़ दी लात
मुझको जड़ दी लात, कहा अब न काटो पेड़
मचता हाहाकार, प्रकृति को न छेड़
कहता दास हबीब, झुलस कर मर जाएगा
बुझाने अपनी प्यास, कह किधर जाएगा
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"पेड़ लगाएं, वनों को बचाएं"
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बहुत सुन्दर रचना है हबीब साहब । बधाई ....
ReplyDeleteवाह हबीब साहब... बेहतरीन रचना है...
ReplyDeletebahot hi accha sandesh diya hai brooo....
ReplyDeleteKash ye sarkar samz paye....mere city me 1 month me 9ooo ped kate hai.........!!
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