Tuesday, November 2, 2010

"दीप ऐसे जले"

समस्त सुधि मित्रों को सादर नमस्कार। दीपों का तीन-दिवसीय महापर्व आज से आरम्भ हो गया। आज "धनतेरस" की अशेष शुभकामनाओं के साथ एक छोटी सी, प्यारी से पोस्ट (गीत) नज्र कर रहा हूँ ...
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" दीप ऐसे जले"
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दीप ऐसे जले,
जैसे सूरज खिले,
रात आई है दिन सा उजाले लिए,
दीप ऐसे जले...
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सारे छत के तले,
सारी खुशियाँ पलें,
कामनाएं हों सबकी भले के लिए,
दीप ऐसे जले...
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बैर ताज कर चलें,
मिलते सबसे गले,
भाई - भाई हैं, सब इक धरा में पले,
दीप ऐसे जले....
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आओ कर की तरह,
उर मिला ले ज़रा,
सुर सजाएं मधुर गुनगुनाते चलें,
दीप ऐसे जले....
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सीप बन क्यूँ जियें,
मोती भीतर लिए,
ज्योती अंतर की हो इस जहां के लिए,
दीप ऐसे जले..
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4 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

    दीपावली की शुभकामनाएं

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  2. आपको भी दिवाली की शुभकामनायें.... सादर

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  3. दीपावली पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं....

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  4. 'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्‍य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।

    दीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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