समस्त सम्माननीय सुधि मित्रों को सादर नमस्कार। कुछ अवकाश के पश्चात एक ग़ज़ल... एक अपील के रूप में, बिना किसी भूमिका के यह पोस्ट हिंद के आवाम को नज्र करता हूँ...
तारीख को एक नया मोड़ दें।
सब दीवारों को आओ तोड़ दें।
खुदा वहां कहाँ मिलेगा दोस्त,
प्रपंची राहों को छोड़ दें।
*
भाई रहकर वक्ते मुश्किल में भी,
दुनिया को मिसाल एक बेजोड़ दें।
मुल्क अपना अच्छा, सारे जहाँ से
जिस्म को इसके न फिरकाई कोढ़ दें।
गलत राह दिखाए जो सबको 'हबीब',
ऐसे वाईज की क्यों न गर्दन ही मरोड़ दें।
**************************************
शब्दार्थ: वाईज = उपदेशक।
habib, tumhari soch mujhe badee prerana detee hai. aise bhale log jis desh mey rahate hon, vahaan koi samasya nahi ho sakti. ghazal mey sundar-prerak vicharo ko kahane ki pahal ke liye badhai. aur menat karke har sher ko aur vazandaar banaya ja sakta hai.
ReplyDeletethank u for best gazal sir muge apki gazal bahut achi lagi desh ke prati apke vicharo ko mai dil se naman karta hu . aur sir mai kahna chauga ki lago raho.........
ReplyDeleteशाम यहाँ कभी घबराती न आएगी.. यही आशा है..
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...वाकई ऐसे लोगों की गर्दन मरोड़ ही देनी चाहिए जो गलत राह दिखाते हों ..
ReplyDeleteआप सभी से निवेदन है की मेरे पुराने ब्लॉग कृपया "भारतीय की कलम से..." में कोई भी टिपण्णी न देवें यह हैक हो चूका है| पर आप सभी से अनवरत जुडाव के लिए मैंने नया ब्लॉग निर्मित कर लेखन प्रारंभ कर दिया है, आप कृपया उस नए ब्लॉग में आकर अपनी प्रतिक्रियाओं से मुझे अवगत कराएँ इस कष्टमय समय में पुनः मेरा उत्साह बढ़ाएं !!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का यु. आर एल. निम्नांकित है :-
लो मै फिर आ गया.....
pls visit on my blog :- http://bhartiyagourav2222.blogspot.com/
परिस्थिति कैसी भी हो पर देश में शांति और भाईचारे का होना अति आवश्यक है, भैया आपका यह गजल हमें बेहद पसंद आया और आप निश्चिंत रहिये जब तक आपकी कलम चलती रहेगी शाम कभी घबराती हुई नहीं आएगी............... बधाई एवं आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना .... आभार
ReplyDeleteपर भारत का नक्शा खंडित क्यों है ?????
ReplyDeleteati sundar rachana....
ReplyDeletebadai ho bro.......!