वक़्त खेल रहा है
समुद्र की लहरों के साथ...
पल में उसे उछालता
आसमान में,
जैसे एक काबिल खिलाड़ी
उछाल देता है फुटबाल को....
सागर तट पर बैठा...
तुझे सोचता...
देखता रहा उसी ओर,
जिस ओर तुम गयी हो... अभी अभी...
तट की भीगी मुलायम रेत पर
चमकते तुम्हारे कोमल पैरों के
खुबसूरत छाप...
मुस्कुराते हुए से लगते हैं...
मानो वादा कर रहे हों,
क्षनान्तर में लौट आने का...
तभी अचानक...!!
वक़्त के पैरों उछाली जाकर,
लहरें... तट पर आन गिरी...
और पल भर में लौट गईं...
वक़्त के पैरों की ओर...
फिर से उछाल दिए जाने के लिए...
लेकिन... जाते हुए...
मुस्कुरा कर...
क्षनान्तर में लौट आने का...
वादा सी करती
तुम्हारे पैरों की,
कोमल, सुन्दर छाप भी,
ले गयी अपने साथ....
आह...!!
तट की भीगी रेत
अब एकदम सपाट हो चली है...
एक गहरे
बहुत ही सुन्दर रचना....
ReplyDeleteवक़्त खेल रहा है
ReplyDeleteसमुद्र की लहरों के साथ...
पल में उसे उछालता
आसमान में,
जैसे एक काबिल खिलाड़ी
उछाल देता है फुटबाल को......
आह...!!
तट की भीगी रेत
अब एकदम सपाट हो चली है...
एक गहरे ‘निःश्वांस’ की तरह...
और वक़्त...??
वह मशगुल है...
अपने खेल में अभी भी... ...बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
एक गहरे ‘निःश्वांस’ की तरह...
ReplyDeleteबधाई सुंदर प्रस्तुति के लिये.
वक़्त के खेल निराले होते हैं।
ReplyDeleteभावपूर्ण कविता के लिए बधाई।
आह...!!
ReplyDeleteतट की भीगी रेत
अब एकदम सपाट हो चली है...
एक गहरे ‘निःश्वांस’ की तरह...
और वक़्त...??
वह मशगुल है...
अपने खेल में अभी भी... behtreen prstuti...
सागर तट पर बैठा...
ReplyDeleteतुझे सोचता...
देखता रहा उसी ओर,
जिस ओर तुम गयी हो... अभी अभी...
तट की भीगी मुलायम रेत पर
चमकते तुम्हारे कोमल पैरों के
खुबसूरत छाप...
मुस्कुराते हुए से लगते हैं...
मानो वादा कर रहे हों,
क्षनान्तर में लौट आने का...
behad sunder ashavadi rachna. badhai.
आह...!!
ReplyDeleteतट की भीगी रेत
अब एकदम सपाट हो चली है...
एक गहरे ‘निःश्वांस’ की तरह...
और वक़्त...??
वह मशगुल है...
अपने खेल में अभी भी... वक़्त का खेल और मन ! वक़्त क्यूँ नहीं रुक जाता कुछ देर मन के लिए ...
सुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई |।
आह...!!
ReplyDeleteतट की भीगी रेत
अब एकदम सपाट हो चली है...
एक गहरे ‘निःश्वांस’ की तरह...
और वक़्त...??
वह मशगूल है...
अपने खेल में अभी भी...
बहुत खूब ,हबीब भाई.
आपने बहुत शिद्दत के साथ वक़्त को महसूस किया है.
कुछ यादें समय के साथ गहराती जाती हैं।
ReplyDeleteवक्त तो अपने खेलो मे ही लगा रहता है………………सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteलेकिन... जाते हुए...
ReplyDeleteमुस्कुरा कर...
क्षनान्तर में लौट आने का...
वादा सी करती
तुम्हारे पैरों की,
कोमल, सुन्दर छाप भी,
ले गयी अपने साथ....
....वक़्त की लहरों पर किसका बस चलता है...बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
bahut sunder rachna .....
ReplyDeleteऔर वक़्त...??
ReplyDeleteवह मशगुल है...
अपने खेल में अभी भी...
'वक्त' वक्त-बेवक्त अपने खेल खेलता ही रहता है
बहुत सुन्दर भाव की रचना
वक़्त के पैरों उछाली जाकर,
ReplyDeleteलहरें... तट पर आन गिरी...
और पल भर में लौट गईं...
वक़्त के पैरों की ओर...
फिर से उछाल दिए जाने के लिए...
लेकिन... जाते हुए...
मुस्कुरा कर...
क्षनान्तर में लौट आने का...
वादा सी करती
तुम्हारे पैरों की,
कोमल, सुन्दर छाप भी,
ले गयी अपने साथ....
कमाल है भाई कमाल है। बधाई। इस कल्पना ने प्रभावित किया।
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना आभार
ReplyDeleteवक़्त का ......
ReplyDeleteये खेल अभी है जारी, बिछड़े सभी बारी-बारी.
संजय जी ! लहर, पद छाप, नि:शंवास, वक़्त
इन पात्रों से कुशल निर्देशक की भाँति अभिनय कराने के लिये शुभकामनायें.
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteवक़्त का खेल तो निरंतर चलता ही रहता है!
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
अति सुन्दर अभिव्यक्ति. उत्तम रचना.
ReplyDeleteप्रतीकों के माध्यम से, समय की रेत
पर अंकित, अति सुन्दर हस्ताक्षर.
बहुत - बहुत धन्यवाद.
...आनन्द विश्वास
समय ऐसे ही छीन लेता है पल ... कुछ यादें भी ऐसी ही गुम जाती हैं ...
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
बढ़िया रचना
ReplyDeleteयही तो वक्त का सितम है…………बहुत उम्दा।
ReplyDeleteतट की भीगी मुलायम रेत पर
ReplyDeleteचमकते तुम्हारे कोमल पैरों के
खुबसूरत छाप...
मुस्कुराते हुए से लगते हैं...
मानो वादा कर रहे हों,
क्षनान्तर में लौट आने का...
wah kya bhav hain....
puri kavita pasand aayi...
www.poeticprakash.com
बहुत ही सुंदर रचना. मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
ReplyDeletehttp://monijain21dec.blogspot.com/
आह...!!
ReplyDeleteतट की भीगी रेत
अब एकदम सपाट हो चली है...
एक गहरे ‘निःश्वांस’ की तरह...
और वक़्त...??
वह मशगुल है...
अपने खेल में अभी भी...
मिश्रा जी आज का दिन बहुत शुभ है मेरे लिए ....आखिर आ ही गया आपके अंजुमन में ...ईश्वर से प्रार्थना है कि अब यहीं का होकर रह जाऊं !
shabdo ke sunder sashak prayog ne chalchitr sa paish kar diya hai manodasha ka.
ReplyDeletesunder srijan.
भावमय चित्र-सा अंकित कर दिया है !
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