Monday, June 20, 2011

"पितृ स्मरण"


मस्त स्नेही स्वजनों को सादर नमस्कार.... मित्रों, 'बाबूजी', इस एक शब्द में जितना प्यार, जितना सम्मान, जितना अधिकार, जितना संबल समाहित है, उसकी व्याख्या तो शायद दुनिया के तमाम लफ्ज़ मिल कर भी ना कर सकें... हमारी साँसों में, हमारे लडखडाते-थरथराते नन्हें कदमों में, हमारी तोतली जुबान में, हमारे कन्धों में लटकते बस्तों में, आईने में उभरते हमारे बने ठने अक्श में, जीवन के टेढ़े-मेढे रास्तों में यही लफ्ज़ तो नुमाया होते है.... खुशी और गम में, सफलता और विफलता में जो शब्द हमारे कांधों पर हाथ रखे मुस्कुराता है, ढाढस देता है, वह 'बाबूजी' ही तो होता है....
फिर जाने जीवन के सफर में वह क्षण क्यों आ जाता है जब ईश्वर के खिलाफ भी विद्रोह करने को यह अश्रुपूरित मन मचल उठता है.... उस परमपिता से भी सवाल करने की इच्छा हो जाती है कि 'हे अनंत, तू इंसान के जीवन में यह क्षण लिखता ही क्यों है?'
आज पितृ दिवस पर वह अकल्पनीय क्षण पुनः साकार सा हो गया है जहां मैंने जीवन में पहली बार देखा कि मेरे बाबूजी लेटे हुए हैं.... लेटे हुए हैं, कभी न उठने के लिए....
सजल नयन यह पोस्ट 'बाबूजी' दुनिया के उन सभी पुत्रों की ओर से सभी पिताओं को श्रद्धांजली स्वरुप है जिनके पिता उनके साथ साक्षात न होकर 'स्मृति रूप' में अवस्थित हैं...

सद्विचार के पुष्प प्रतिदिन छाँव तले हम चुनते थे. 
अंतरआत्मा की खातिर फिर माला सुन्दर बुनते थे.
ओ हरसिंगार के वृक्ष तुम्हारे सम्मुख शीश सदा नत है 
तेरी खुशबू से अब सारा भू-अम्बर सुवासित है. 

अद्भुत ग्रन्थ थे जीवन के तुम, निस दिन हमने पढ़ा किये 
थाम के अंगुली कदम कदम पर, कदम जमा के बढ़ा किये 
अपने सत्कर्मों से तुमने, जो है हमको शिक्षा दी 
उन जगमग सीखों सा दीपों से, जीवन पथ आलोकित है. 

अंतिम शैय्या में लेटे तुम, हम अंतर में सुलग उठे 
मोह पाश सब छोड़ चले तुम, पर कैसे हम विलग रहें 
बिम्बित हो कण कण में अब, क्षण क्षण में गुंजित बांतें हैं 
झिलमिल झिलमिल स्मृतियों में, आँखें नम हैं लोहित है. 

नहीं आज हो संग हमारे, करता मन विश्वास कहाँ 
तन मिटता, कण कण मिटता, पर मिटता है अहसास कहाँ 
उजले हैं पदचिह्न राह में, कहाँ भला हम भटकेंगे 
तेरे निर्मित आदर्शों से, यह जीवन अनुशासित है.

4 comments:

  1. नहीं आज हो संग हमारे, करता मन विश्वास कहाँ
    तन मिटता, कण कण मिटता, पर मिटता है अहसास कहाँ

    सच कहा है ... आने वाले को जाना तो होता है .. पर वि एहसास कहीं नहीं जाता ... पितृ दिवस पर बहुत ही मार्मिक रचना ...

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  2. too good -***
    as per me this is one of your best post

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  3. बहुत श्रद्धायुक्त रचना

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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