माँ !
तुझे याद है
वो गर्मी का वक़्त....
खुली छत...
तारों भरी अन्धियारी रात...
तेरे पांवों के झूले...
मुझे सुलाने की कोशिश में
तेरे कहानियों की सुन्दर परियां,
जब थक जातीं.... तुम मुझे
सितारों को गिनने का काम दे देती....
और मैं तेरे हाथों का सिरहाना बनाए
नन्ही उँगलियों के इशारों से
गिनने लगता, सितारों को....
एक, दो, तीन... पचीस... पचास....
जान ही न पाता,
नींद की परियां कब,
मेरी पलकों पर आ कर बैठ जाती...
और तब तक न जातीं,
जब तक सूरज खुद आकर
उन्हें, बांह पकड़ कर न उठाता.....
गिनने का क्रम
अब भी जारी है... माँ....!!
अब भी जारी है... माँ....!!
जिंदगी के सियाह आसमान में
दर्द के सितारों की गिनती....
एक... दो... सौ... हजार... लाख...
नींद की परियां मगर नहीं आती...
हाँ... सूरज के टुकड़े
जरुर आते हैं
मुझे बांह पकड़ कर बिस्तर से उठाने...
माँ !!
मैं आज तक न समझ पाया
बचपन में
सितारों को गिनते हुए
आने वाली नीदं का कारण
सितारों की गिनती हुआ करती थी
या सर के नीचे रखे
तेरे हांथों की मुलायम गरमी...!!
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behtareennnnnnnnnnn......................................
ReplyDeleteगिनने का क्रम
ReplyDeleteअब भी जारी है... माँ....!!
जिंदगी के सियाह आसमान में
दर्द के सितारों की गिनती....
एक... दो... सौ... हजार... लाख...
बहुत मार्मिक बात
मान कि उँगलियों कि गर्माहट ही प्यारी सी नींद देती थी
bhut khubsurat ehsaas... behtareen rachna...
ReplyDeleteवाह क्या अनुभूती होती है मन मे आपके लेखन से
ReplyDeleteSUNDAR PRASTUTI
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteमाँ माँ होती है
गिनने का क्रम
ReplyDeleteअब भी जारी है... माँ....!!
जिंदगी के सियाह आसमान में
दर्द के सितारों की गिनती....
एक... दो... सौ... हजार... लाख...
वाह........दिल की गहराइयों तक उतर जाने वाली बेहतरीन भावाभिव्यक्ति !!
बधाई एवं आभार स्वीकार करें !!
गिनने का क्रम
ReplyDeleteअब भी जारी है... माँ....!!
जिंदगी के सियाह आसमान में
दर्द के सितारों की गिनती....
एक... दो... सौ... हजार... लाख...
बहुत ही खूबसूरत,
बधाई स्वीकार करें - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
मेरे ब्लाग पर आपके आगमन का धन्यवाद ।
ReplyDeleteआपको नाचीज का कहा कुछ अच्छा लगा, उसके लिए हार्दिक आभार
आपके कलम की जादूगरी अच्छी लगी । बधाई
bahut khoob ,habib bhai.
ReplyDeletedil ko chhoo liya aapne.