समस्त सम्माननीय, सुधि, स्नेही मित्रों को सादर नमन। बासंती बयार के बीच इस बार प्रस्तुत है दो प्यारे प्यारे प्रेम पगे गीत...
*
१)
निश्छल प्रीत ही शक्ति सच्ची
साथी मनभावन है,
प्रेम हो आधार जिनका
सम्बन्ध वही पावन है।
*
जीवन की बगिया में सुरभित
मधुर एक चन्दन है,
आंच मिले जितनी यह दमके
यह स्वर्ण यही कुंदन है।
*
प्रेम ना हो जिस सीने में
कैसे स्पंदित वह होगा
प्रेम पर ही साँसे चलती
प्रेम ही धड़कन है।
*
२)
लगता क्यूँ है जैसे कोई
रहता दिल के पास है
नज़र भटक रही मन ढूंढे
होती ना ख़त्म तलाश है।
*
अनादी से ज्यों तृषित ह्रदय हो
कैसा यह एहसास है
मदिरा पी, जल गंगा का भी
बुझी ना किन्तु प्यास है।
*
कस्तूरी मृग सा भटक चुका
ना शांत हुई तृष्णा मेरी
प्रेम ही पीना शेष रहा अब
अंतिम मेरी आस है।
*
*******************
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१)
निश्छल प्रीत ही शक्ति सच्ची
साथी मनभावन है,
प्रेम हो आधार जिनका
सम्बन्ध वही पावन है।
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जीवन की बगिया में सुरभित
मधुर एक चन्दन है,
आंच मिले जितनी यह दमके
यह स्वर्ण यही कुंदन है।
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प्रेम ना हो जिस सीने में
कैसे स्पंदित वह होगा
प्रेम पर ही साँसे चलती
प्रेम ही धड़कन है।
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२)
लगता क्यूँ है जैसे कोई
रहता दिल के पास है
नज़र भटक रही मन ढूंढे
होती ना ख़त्म तलाश है।
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अनादी से ज्यों तृषित ह्रदय हो
कैसा यह एहसास है
मदिरा पी, जल गंगा का भी
बुझी ना किन्तु प्यास है।
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कस्तूरी मृग सा भटक चुका
ना शांत हुई तृष्णा मेरी
प्रेम ही पीना शेष रहा अब
अंतिम मेरी आस है।
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दोनों रचनाएँ उम्दा हैं.
ReplyDeleteवासंती बयार में प्रेम की मीठी खुशबू घुली हुई है.
सलाम.
बासंती बयार पर आपके द्वारा प्रस्तुत रचना अत्यंत ही मनमोहक और लाजवाब है, आप हमेशा ऐसे ही लिखते रहे, हमारी शुभकामनाएं आपके सदैव साथ हैं
ReplyDeleteprateyk rachna ki tarha - Atiuatam****
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