Tuesday, February 15, 2011

बेटियाँ

"दो परिचित से
हाथों ने आगे बढ़कर
खिल कर महकने को आतुर
रजनीगन्धा के पौधे को
उखाड़ लिया जड़ से,
और डाल दिया उसे
लेजाकर बाहर कूड़ेदान में...
*
बिलखती धरती का हाथ
हाथों में लिए सिसकता रहा
देर तक पूनम का चाँद ।"
*
न्या भ्रूण हत्या पर आयोजित गोष्ठी में पढ़ी अपनी नज़्म याद आ गयी, देश के एक अति सम्मानित महिला का वक्तव्य पढ़कर. जिसमें उन्होंने कहा कि "लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाय." वक्तव्य का सन्दर्भ निश्चित रूप से अलग विवेचना का विषय हो सकता है। सृष्टी के आरम्भ से ही पाशविकता के गहरे निशाँ आधी आबादी के माथे पर अंकित होते रहे है। वह चाहे बादशाहों, नवाबों के द्वारा कमसिन लकड़ियों को जबरन हरम का हिस्सा बनाकर उनके हसीं जिन्दगी के ख्वाब का क़त्ल करने के रूप में हो या उन्हें नगर वधु बना कर वक्तिगत जीवन की आहुती ले लेने वाली प्रथा के रूप में, दुनिया की 'आधी आबादी' शेष आधी आबादी के द्वारा दमन और अत्याचार का दंश झेलती आई है जो आज भी जारी है...
*
आज भी जारी है.... व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक सोच और शिक्षा के उन्नयित होते स्तर के बावजूद जारी है... जो निश्चित रूप से सामाजिक और वैधानिक स्तर पर गंभीर चिंतन, सकारात्मक दृष्टी और वाजीब क़दम उठाये जाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
*
बावजूद इसके समग्र धरातल पर विचार करने पर हम यही पायेंगे कि हमारा देश "यत्र पूज्यन्ते नारी, तत्र बसते देवता" की अवधारणा पर ही अवलंबित रहा है और आज भी है... और ऐसे समय में जब देश भर में कन्या भ्रूण ह्त्या के विरुद्ध एक जागरूकतापूर्ण सकारात्मक माहौल तैयार होता नज़र आ रहा है, यह बयान चकित और व्यथित करता है। इन लफ़्ज़ों का इस्तेमाल यदि किसी सामान्य भावुक महिला के द्वारा किया गया होता तो उसे वर्तमान परिदृश्य के सापेक्ष हताशा और भावातिरेक का परिचायक समझा जा सकता था किन्तु जिस स्तर से इस स्तर का बयान आया वह किसी भी स्तर से परिवार, समाज और देश को सार्थक सन्देश देता हुआ प्रतीत नहीं हुआ बल्कि बढ़ते आपराधिक वृत्ति पर नियंत्रण करने असफलता की वजह से देश के उच्चस्थ गलियारों में पसरती हताशा का द्योतक ही भासित होता है।
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6 comments:

  1. भैया सादर प्रणाम,
    वाकई आज भी हम नारी शाश्क्तिकरण जैसी कितनी ही बड़ी बड़ी बातें क्यों न करें पर हकीकत कुछ और ही नजर आता है और ऐसे तथाकथित प्रतिष्ठित जनों के बयान उसपर नमक मिर्च लगाने का काम करते हैं |
    खैर अब हमें कहना सुनना छोड़कर कुछ करना होगा जिससे किसी बेटी का जीवन दुःख में न बीते क्योंकी :-

    ओस की बूंद सी होती है बेटियां
    स्पर्श खुरदुरा हो तो रोती हैं बेटियां

    कोई नहीं यारों एक दुसरे से कम
    हिरा है बेटा तो मोती हैं बेटियां

    बेटा तो करता है एक ही कुल को रोशन
    दो दो कुल की लाज को ढ़ोती हैं बेटियां

    जीवन भर काँटों की राह पर चलती हैं
    पर गैरों के लिए फुल ही बोती हैं बेटियां

    सच में विधि का विधान है बेटियां
    ईश्वर का दिया वरदान हैं बेटियां...

    आपके इस बेहद सार्थक पोस्ट के लिए बधाई एवं आभार !!

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  2. लाजवाब .....!!

    इस तरह की ७,८ आठ क्षणिकाएं अपने परिचय और चित्र के साथ भेजिए न सरस्वती सुमन के लिए ......

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  3. आदरणीय हबीब भाईजान
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    बेटियां नज़्म बहुत मार्मिक है …
    हरकीरत हीर जी जैसी नज़्मगो अगर रचनाओं को भेजने के लिए कुछ कहे तो फ़ख़्र की बात है … हमें तो उन्होंने कभी कहा ही नहीं … काश ! हम भी कुछ ढंग का कहना-लिखना सीख पाते …:)


    ♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !♥
    बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. गौरव भाई, आदरणीय हीर जी, राजेन्द्र भैया.... सादर आभार...
    आद हीर जी, राजेन्द्र भैया ने सच कहा, आपके लफ्ज़ वाकई इस नाचीज़ को इज्जत बख्सते हैं....इंशाअल्लाह, कोशिश ज़रूर रहेगी कि मेरे द्वारा आपको भेजने लायक कुछ लिखा जा सके... बहुत शुक्रिया..
    साथ ही, सभी मोहतरम मित्रों से गुजारिश है प्रेरणास्त्रोत बने रहने की... राह नुमाई करते रहने की...

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  5. ब्लॉग पर बेटी के बारे में बहुत कुछ लिखा जा रहा है.
    अच्छा लक्षण है.
    अगर कवि जागृत हो रहा है तो समझिये समाज को जागृत होते देर नहीं लगेगी.
    बहुत ही उम्दा नज़्म है.
    आप की कलम को सलाम

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  6. रचना में
    प्रतीकात्मकता,
    आपकी काव्य-क्षमता की परिचायक बन पडी है
    बहुत संवेदनशील विषय है,,,
    मनन होते रहना आवश्यक है
    अभिवादन .

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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