Sunday, January 22, 2012

कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में

मस्त सम्माननीय सुधि मित्रों को सादर नमस्कार... पिछले पंद्रह दिनों से अत्यधिक व्यस्तता ने ब्लॉग पठन - पाठन से दूर कर रखा था. अब जल्द ही  नियमितता स्थापित कर लूंगा. इस दरमियान आप सभी से मिले स्नेह के लिए सादर आभार.... मित्रों, पिछले दिनों  आदरणीय पंकज सुबीर जी की सुबीर संवाद सेवा में मूर्धन्य कवि/शायर  स्वर्गीय श्री रमेश हठीला जी की स्मृति में तरही मुशायरे के लिए प्रदत्त मिसरे कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गांव में पर कुछ अशआर कहने की कोशिश की थी, आदरणीय पंकज सर के आशीर्वाद के लिए बावक्त भेज न पाया... आज वही अशआर महफिले दानां में बाअदब पेश है...

चंद सपने, चंद साथी हैं अभी तक गाँव में |
कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में |

वो चुराना आम खाकर कुछ रसीली गालियाँ, 
भोर सी यादें सुहानी हैं अभी तक गाँव में |

मुह बनाकर बंदरों सा बंदरों को छेड़ना, 
जागती रातें निराली हैं अभी तक गाँव में |

मेड पर वो बैठना वो हाथ लेना हाथ में, 
वो फजायें मुस्कुराती हैं अभी तक गाँव में |

मैं कहाँ तुम भी कहाँ हैं गुम शहर की भीड़ में, 
पनघटें हमको बुलाती हैं अभी तक गाँव में |

छोड़ कर तो आगये हम गाँव की गलियाँ हबीब 
कुछ फ़साने नागहानी हैं अभी तक गाँव में |
 

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सादर 

46 comments:

  1. चंद सपने, चंद साथी हैं अभी तक गाँव में |
    कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में |...चलो ना उनसे मिले , फिर से स्वाभाविकता जी लें

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  2. बहुत सुन्दर,,,,
    लाजवाब रचना है..हर पंक्ति काबिले तारीफ़..
    दाद कबूल करें.

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  3. छोड़ कर तो आगये हम गाँव की गलियाँ हबीब
    कुछ फ़साने नागहानी हैं अभी तक गाँव में |

    खूबसूरत हृदयस्पर्शी प्रस्तुति,संजय जी.
    कुछ और कहने के लिए अल्फाज नही मिल रहे.
    बहुत बहुत आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आप आते हैं,तो दिल खुश कर देते हैं आप.
    फिर से आईयेगा मेरी नई पोस्ट पर.

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  4. चंद सपने, चंद साथी हैं अभी तक गाँव में |
    कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में |

    जीवन की जड़ें हैं वहां .... सुंदर पंक्तिया

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  5. होती है सुनहली सुबह-ओ-शाम अभी तक गाँव में।
    मर्यादा की महीन लकीर बची है अभी तक गांव में।

    धूल धक्कड़ मारा मारी का है जलता बलता ये शहर।
    मजे से सुकून की नींद आती है अभी तक गांव में।

    दू लाईन ला अइसनहे जोड़ दे हंव गा। दिल है कि मानता नहीं है। हा हा हा

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  6. सुन्दर अभिव्यक्ति. आभार..

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर उनको शत शत नमन!

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  8. छोड़ कर तो आगये हम गाँव की गलियाँ हबीब
    कुछ फ़साने नागहानी हैं अभी तक गाँव में द्य

    हकीकत है। बहुत कुछ छूट गया गांव में।
    एक उम्दा ग़ज़ल।

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  9. छोड़ कर तो आगये हम गाँव की गलियाँ हबीब
    कुछ फ़साने नागहानी हैं अभी तक गाँव में द्य

    हकीकत है। बहुत कुछ छूट गया गांव में।
    एक उम्दा ग़ज़ल।

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  10. छोड़ कर तो आगये हम गाँव की गलियाँ हबीब
    कुछ फ़साने नागहानी हैं अभी तक गाँव में द्य

    हकीकत है। बहुत कुछ छूट गया गांव में।
    एक उम्दा ग़ज़ल।

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  11. जिस्म, खाली जिस्म, चलता-घूमता-फिरता यहाँ,
    रूह तो मेरी भटकती है अभी तक गाँव में!!

    संजय जी, बहुत ही खूबसूरत अशार, बहुत ही उम्दा गज़ल!!

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  12. मुह बनाकर बंदरों सा बंदरों को छेड़ना,
    जागती रातें निराली हैं अभी तक गाँव में |
    vaah sundar ....

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  13. "मैं कहाँ तुम भी कहाँ हैं गुम शहर की भीड़ में,
    पनघटें हमको बुलाती हैं अभी तक गाँव में |"

    बहुत खूब!

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  14. वाह ...बहुत सही लिखा है आपने
    बहुत कुछ छूट गया है गांव में .

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  15. मैं कहाँ तुम भी कहाँ हैं गुम शहर की भीड़ में,
    पनघटें हमको बुलाती हैं अभी तक गाँव में |
    beautiful lines

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  16. वो चुराना आम खाकर कुछ रसीली गालियाँ,
    भोर सी यादें सुहानी हैं अभी तक गाँव में |
    bahut mithas hoti he chura kar khane me...
    khoob

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  17. वाह बहुत खूब

    नई पुरानी यादो के लिए जो अभी बाकी हैं

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  18. बहुत खूब........खुबसूरत .........वो गाँव की गलियाँ |

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  19. पुरानी यादों को बड़ी सुंदरता से भावों में समेटकर खुबसुरती से प्रस्तुति करने के लिए बधाई,
    बहुत सुंदर रचना,
    WELCOME TO new post...वाह रे मंहगाई...

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  20. टिपिकल ‘हबीब’ छाप ग़ज़ल! अद्भुत!
    हलाँकि अब तो गाँव में भी शहर बो दिए गए हैं और तेजी से बोये जा रहे हैं किन्तु अभी भी वहाँ कुछ संस्कार अक्षुण्ण हैं। एक आत्मीयता है, उद्गार है, प्राकृतिक जीवन शैली है... हाँ ईर्ष्या-द्वेष भी है, लोभ-लालच भी है किन्तु आनुपातिक और अपेक्षित दृष्टि से कम। भारतीय संस्कृति के दर्शन वहाँ आप कर सकते हैं। जीवन-मूल्यों का पूर्ण लोप अभी नहीं हुआ है वहाँ।

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  21. प्रिय बंधुवर संजय 'हबीब' जी
    आपके यहां आना हमेशा ही आनंददायक होता है मेरे लिए …

    चंद सपने, चंद साथी हैं अभी तक गाँव में
    कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में



    अच्छे मतले के साथ प्यारी ग़ज़ल कही है … भावपूर्ण !
    बधाई !


    हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  22. .


    हां, पनघट पुल्लिंग है बहुवचन होने पर यहां पनघट ही रहेगा
    पनघटें औरतें , दावतें , आदि की तर्ज़ पर स्त्रीलिंग हो गया है …
    देख लीजिएगा … :)

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  23. संजय जी , आपकी रचना तो पुराने दिनों की यादें तरोताजा कर दीं,सुंदर-सुंदर दृश्यों ने मंत्र-मुग्ध कर दिया.

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  24. बहुत सुंदर गजल !

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  25. आपके इस उत्‍कृष्‍ठ लेखन का आभार ...

    ।। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ।।

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  26. मुह बनाकर बंदरों सा बंदरों को छेड़ना,
    जागती रातें निराली हैं अभी तक गाँव में ...

    वाह संजय जी ... कमाल के शेर निकाले हैं आपने ... गाँव केर आँचल से निकले हुवे हैं सभी शेर ... तरही सच में लाजवाब चल रही है गुरुदेव के ब्लॉग पर ...

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  27. मेड पर वो बैठना वो हाथ लेना हाथ में,
    वो फजायें मुस्कुराती हैं अभी तक गाँव में |

    मैं कहाँ तुम भी कहाँ हैं गुम शहर की भीड़ में,
    पनघटें हमको बुलाती हैं अभी तक गाँव में |

    wah habib sahab ap ne purani yadon ko fir se jeevant kr diya.....ak behtareen rachana ...abhar.

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  28. मैं कहाँ तुम भी कहाँ हैं गुम शहर की भीड़ में,
    पनघटें हमको बुलाती हैं अभी तक गाँव में |

    वाह.... वेहतरीन प्रस्तुति
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

    vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........

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  29. खूबसूरत गज़ल .. शहर में रह कर भी गांव बसा हुआ है मन में ..

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  30. बहुत सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण अच्छा मतला,.बढ़िया गजल
    WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....

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  31. खूबसूरत गज़ल,शहर में रह कर भी गांव बसा हुआ है|

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  32. कुछ यादें बाकी हैं अभी तक गांव की.

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  33. शहर में कोई कितना भी संपन्न हो पर फिर भी गांव कि याद तो आती हि है..
    बहूत सजीव और सुंदर चित्रण
    वसंत पंचमी कि शुभकामनाये

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  34. गाँव का सजीव एवं यथार्थ चित्रण.......
    क्या यही गणतंत्र है

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  35. sach kaha aapne...gaav ki yaaden bhulayi nhi ja sakti..bahut sundar rachna

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  36. बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना! बधाई !

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  37. बहुत अच्छा बन पड़ा है। अपने बचपन और गांव की स्मृति हो आई।

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  38. मैं कहाँ तुम भी कहाँ हैं गुम शहर की भीड़ में,
    पनघटें हमको बुलाती हैं अभी तक गाँव में |

    ...बहुत खूब! लाज़वाब गज़ल...

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  39. sundar rachana ke liye ak bar fir se badhai...shayad ap bina soochana ke bahar hain... filhal hm prateeksha to karengae hi.

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  40. मेरा अपना गांव और वहां बिताए सुख-दु:ख के क्षण याद करा दिए।

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  41. गाँव की बात ही कुछ और है.... आपने बहुत अच्छी तस्वीर खिंची है.सुंदर प्रस्तुति.
    पुरवईया : आपन देश के बयार- कलेंडर

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  42. बेहतरीन लिखा है हबीब साहब... शुक्रिया !

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  43. जितनी प्रसन्नता हुई इस ग़ज़ल को पढ़कर उतना ही अफ़सोस हुआ इस ग़ज़ल को उक्त तरही मुशायरे में शामिल न हो पाने पर. लेकिन इस मात्र से कि तरही में यह शामिल न हो पायी या समय से भेजी न जासकी, इस ग़ज़ल की खूबसूरती कम नहीं हो जाती.
    मिसरा ’कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में..’ भावों को बहुवचन में चाहता है जिसका निर्वहन थोड़ा कठिन अवश्य है.
    संजयजी, इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिये आपको हृदय से बधाई.

    --सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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  44. चंद सपने, चंद साथी हैं अभी तक गाँव में |
    कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में |
    ...
    केवल यादें है भाई जी अब..सपने और साथी नहीं रहे हैं अब वहाँ ..अलबत्ता एक बेमिसाल गज़ल लिख कर आपने बचपन में जरूर पहुंचा दिया !

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

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