Thursday, November 25, 2010

२६/११

एक पतली नदी
आँखों से
मंथर बहती,
समूचा भिगोती,
समाती रही
अंतर में बूंद - बूंद...

भीगा अंतर
कुछ हलचलों का गवाह बना...
'वे' दौड़ते चले गए,
बहते लावों के ऊपर से
बंद कर दिया
अपना फौलादी सीना रखकर
धधकती ज्वालामुखी का मुंह...
अब...
जमे हुए लावों पर
अंकित हैं, कुछ -
पैरों के निशान...

पैरों के निशान ....
जो हैं तो अजनबी ....
पर पहचाने से लगते हैं...
श्रद्धा जगाते हैं...
मुक़द्दस सा एहसास
मन में भर जाते हैं....

***********श्रद्धांजली *************





10 comments:

  1. भावों से ओतप्रोत रचना ..विनम्र श्रद्धांजली

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  2. प्रणाम, सार्थक, प्रभावी एवं भावपूर्ण रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें |

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  3. २६/११ में हुए हमले के लिए विनम्र श्रद्धांजलि
    कुछ अनकहे शब्दों को सार्थक रचना में पीरोने के लिए धन्यवाद

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  4. पैरों के निशान ....
    जो हैं तो अजनबी ....
    पर पहचाने से लगते हैं...
    श्रद्धा जगाते हैं...
    मुक़द्दस सा एहसास
    मन में भर जाते हैं....
    सच्ची श्रधांजलि ....बहुत खूब
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है ....

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  5. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
    को दिया गया है .
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

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  6. एक सार्थक ....भावपूर्ण और अर्थपूर्ण रचना ...... उन वीरों को मेरा भी नमन....

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  7. एक सार्थक और भावपूर्ण रचना।

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  8. यही है सच्ची श्रद्धांजलि !

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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