Thursday, October 7, 2010

"स्वीकारोक्ति"

प्रभु...!

मैं पुनः छला गया....

मैंने देखा था - शैतान,
सांप का रूप धर आया था
सो, तमाम वक़्त
बचाता रहा स्वयं को
विषधरों से,
फिर भी मैं
धोखा खा ही गया.....!!

शैतान इस बार सांप नहीं
इंसान के भेष में आ गया
बहका कर
"स्वार्थ के वृक्ष का
प्रतिबंधित फल" खिला गया....
*
भूल गया फिर
तेरी शिक्षा, तेरा उपदेश
याद रहा केवल आवेश
मैं जला, जलाता गया,
आदर्शों का लहू
बहाता गया....
बहाता गया...

अब, जब नशा
उतरने को है - स्वार्थ का,
डर रहा हूँ,
अदन से निष्काषित हो कर
जमीन पर आया था,
कहाँ जाउंगा
अगर यहाँ से भी निकाला गया...!!!!
*
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5 comments:

  1. कलम के बेटे को प्रणाम
    आपके द्वारा लिखी कवितायेँ जीवन में नई उमंग और प्रेरणा देती हैं
    इश्वर आपकी लेखन शैली को और भी उज्जवलित करे .........
    हर हर महादेव

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  2. ... प्रभावशाली रचना, बधाई!

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  3. वाह भैया क्या बात है............
    इस पर कुछ भी कह पाना मुझ अकिंचन के लिए असंभव है, अतः मै आपको ढेर सारी बधाई इस बेहतरीन पोस्ट और नवरात्री के पावन पर्व के लिए प्रेषित कर रहा हूँ !!!

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  4. बहुत ही प्रभावी रचना .....
    सांप के काटे से मनुष्य इस पार या उस पार हो जाता है पर मनुष्य का कटा ताउम्र उसे सुलगता रहता है ...जो और भी हानिकारक है .....

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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