Monday, September 13, 2010

"नज़्म बने रहें"

आप सभी सुधि मित्रों को सादर नमस्कार। यह पोस्ट "कडुआ सच" में भाई श्याम कोरी 'उदय' द्वारा की गयी अपील और भाई गौरव शर्मा 'भारतीय' के 'अभियान भारतीय' को समर्पित है।

"आओ नज़्म बनें"
दोस्तों, मैनें एक नज़्म लिखी थी। मुझे बहुत सुन्दर प्रतीत हुई वह नज़्म, तो दोस्तों को पढ़ाया, दोस्तों के दोस्तों को पढ़ाया। सभी ने पसंद किया। तारीफ़ के पुल खड़े कर दिए गए। किसी ने कहा - बड़ी सुन्दर नज़्म है, किसी की नज़र में वह अमूल्य साहित्यिक कृति थी तो किसी ने उसे मानवता के लिए सुन्दर सन्देश बताया। भाव-विभोर हो मेरा मन मुझसे कहने लगा-"आज इन बेजान से अक्षरों को एकत्र कर तूने एक अक्स दिया है, एक अर्थ दिया है, एक पहचान दी है; और देखना एक वक़्त वह भी आएगा जब यही नज़्म तेरी पहचान बनेगी।"
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लेकिन हुआ क्या? एक दिन मैनें देखा वह कागज़ जिस पर बड़ी मेहनत से मैंने शब्दों को पिरोकर नज़्म की रचना की थी, तीन - चार जगह से फट गयी है। उसमें पैबस्त तमाम लफ्ज़ इधर-उधर बेतहाशा भाग रहे हैं। वहाँ पर एक अजीब सा हडकंप मचा हुआ था। भयानक शोरोगुल के बीच मैनें देखा कि मेरी नज़्म के तमाम शब्द इधर-उधर भागते हुए आपस में टकराने लगे, एक दुसरे के पैरों तले कुचले जाने लगे; और देखते ही देखते सराबोर हो गए अपने ही लहू से। ये वे ही शब्द थे जिन्हें एक साथ देखकर लोगों ने "मानवता के लिए सुन्दर सन्देश" जैसी उपमाएं दी थीं।

मेरा वजूद मेरे सामने फना होता रहा, और मैं... मैं कुछ भी तो नहीं कर पाया सिवाय स्तब्ध होकर देखने के, असहाय सा... । कुछ क्षणोंपरांत जब कागज़ कागज़ ना रहा, शब्द भी शब्द ना रह गए; मैंने देखा कि वहां पर "सेलो टेप" के चंद टुकडे पड़े हुए हैं। बात समझ में आ गयी कि वह कागज़ जिस पर मैनें नज़्म की रचना की थी इन्हीं "सेलो टेप" के सहारे चिपका रहा होगा, और जिसे मौका पाकर कुछ काफिर हाथों नें चीथ कर अलग कर दिया, जिसका नतीजा मेरे सामने था।

सोचता हूँ, हम इंसानों की स्थिति भी ऐसी ही एक नज़्म की तरह है। हम इंसान नहीं शब्द हैं, जिन्हें मानवता, भाईचारा, प्रेम, सद्भावना, एकता आदि के सहारे प्रकृति के कागज़ पर एकत्र किया गया है। ठीक उस एक नज़्म की तरह कि हम मिसाल बन जाएँ। मगर होता क्या है? अक्सर मौका पाकर कुछ फसाद परस्त हाथ मानवता, सद्भावना, एकता, प्रेम रूपी "सेलो टेप" को चीथ कर हमें खंड खंड कर देते हैं और नतीजा वही होता है, जो मेरी नज़्म का हुआ..... ।

दोस्तों, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम केवल शब्द ना रहें, बल्कि दृढ़ता से एक दूसरे का हाथ थामे रहकर नज़्म बने रहे...... ?
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11 comments:

  1. HABIB JI,
    bahut khoob likha kya bichar hain aapke
    very nice
    regards
    shailendra verma
    (jo ghar phunke apna.......)

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  2. बहुत खूबसूरती से जज़्बात लिखे हैं ..काश हम नज़्म ही बने रह पाते ..

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  3. भैया मै आभारी हूँ की आपने "अभियान भारतीय" को समर्पित शानदार एवं प्रेरणा दायक पोस्ट इस सुन्दर से चिट्ठे में लिखा है|
    सच कहा है आपने, वाकई में अगर हम नज़्म की ही तरह होते तो देश कितना की स्थिति आज कुछ और होती लोग यूँ जाती पंथ भाषा के नाम पर न लड़ते.....
    आपको मै इस प्रेरणादायक पोस्ट के लिए पुनः अपनी तथा "अभियान भारतीय" की पूरी टीम की ओर से सादर धन्यवाद प्रेषित करता हूँ, कृपया स्वीकार करें !!

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  4. ... बेहद सार्थक, सारगर्भित, प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति, बहुत बहुत बधाई !!!

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  5. बहुत पते की बात की है भाई आपने... लाईये अपना हाथ मुझे दें...

    बहुत बहुत धन्‍यवाद भाई, पोस्‍ट पढ़ते हुए एहसास हो रहा था कि शव्‍द शव्‍द आपके दिल से निकल रहे हैं और मैं उन्‍हें आंखों से नहीं दिल से ही पढ़ रहा हूं.

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  6. क्या लिखू !!!!
    स्तब्ध हूँ !!! कितना सुंदर विचार है आप के !!
    अब ऐसा ह़ी होगा हबीब (मित्र) .......हम केवल शब्द नहीं रहेगें बल्कि दृढ़ता के साथ एक दुसरे का हाथ थामे रह कर नज्म बने रहने का संकल्प लेते हैं ...........
    संकल्प लेते हैं ..............................................................
    हर हर महादेव

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  7. बड़ी अच्छी बात कही है आपने...
    इसके लिए आपको साधुवाद ....

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  8. ऐ सुखनवर, ऐ हबीब!
    खुश हूँ तू जो है मेरा रफ़ीक!
    पाक मंसूबे हैं तेरे,
    तू खुदा के है करीब!

    आदाब!
    मुझे लगा दीजिये प्रेम वाली टेप!
    आशीष
    --
    बैचलर पोहा!!!

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  9. हबीब भाई को ढेर सारी शुभकामनायें

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  10. AAJ AISE HI LEKHAKON KI ZAROORAT HAI JO MAHAUL KO PYAR SE BHAR DE. SACHCHE LOGON KO NAFART NAHE PYAR BHATA HAI. AUR JAB TAK HABIB JAISE LEKHAK RAHENGE, YAH DESH KABHI BHI GALAT RAH PAR NAHI JA SAKATA..

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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