Saturday, July 17, 2010

इंसान और पत्थर कुछ दृश्य...

एक बुनियादी फर्क होता है
इंसान और पत्थर में,
चेतनता और जड़ता का...
किन्तु दोनों में
एक विचित्र संयोग भी देखा मैंने-
"लहू बहाते वक़्त अक्सर पत्थर हो जता है इंसान!!!"
इंसान
जब भी चलता है,
कंकडों, पत्थरों को रौंदता हुआ चलता है,
इसीलिए शायद
अक्सर चला करते हैं पत्थर भी-
और कुचले जाते हैं इंसान !!!
पत्थर
सख्त नहीं होते हमेशा !
जब कभी थककर,
पसीने से लथपथ
सहारा लोगे किसी पत्थर का
तब होगा अहसास-
उसकी "कोमलता" का भी।
दिल का पता नहीं
पर पत्थर जरुर धड़कते हैं।
अक्सर सुनता हूँ
अपने वीरान, सुनसान
घर में धडकनें - दीवारों की।
0000

16 comments:

  1. ati sundar soch. patthar se bhi kamalataa ka ahasaas. sundar kalpana. sashakta rachanaa ke liye badhai.

    ReplyDelete
  2. Sunder rachna hai! parantu "lahu bahate waqt aksar patthar ho jata hai insaaan" me yah samajh nahi aaya ki lahu bahate waqt insaan, patthar ban jata hai ya patthar, insan ban jata hai?

    "Aksar sunta hun------------------ghar me dhadkane diiwaron ki!" bahut khoob!

    ReplyDelete
  3. सुना है पत्थर भी धड़कते हैं ...रचना बहुत सुन्दर ...

    ReplyDelete
  4. वाह !!वाह!!!!!!!! क्या बात है !!!!!!!!!!!!!!!!!
    कौन कहता है की पत्थर की तकदीर नहीं बदल सकती
    शर्त ये है कि हबीब भाई जैसे जौहरी के द्वारा वो तराशा जाये
    हबीब भाई जैसे जौहरी के द्वारा वो तराशा जाये .............
    बहुत बहुत साधुवाद पत्थरो में जान भरने वाली कविता के लिए
    हर हर महादेव

    ReplyDelete
  5. हबीब साहब
    आदाब अर्ज़ !
    इंसान और पत्थर को ले'कर बढ़िया भाव बोध की कविताएं लिखी हैं …
    पत्थर
    सख्त नहीं होते हमेशा !
    जब कभी थककर,
    पसीने से लथपथ
    सहारा लोगे किसी पत्थर का
    तब होगा अहसास-
    उसकी "कोमलता" का भी

    बहुत सुंदर भाव !
    बधाई !
    शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइए…

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    ReplyDelete
  6. sabse phle aapki is khubsurat rachna k liye badhai.. patthar me bhi komlata k bhaav va dhadkano ko dundh nikalana vaastav me bhut hi achcha laga.
    aur ab mera blog padhne k liye va protsahan k liye bhut bhut shukriya.

    ReplyDelete
  7. " लहू बहाते वक्त अक्सर पत्थर हो जाता है इंसान "
    "............ तब होगा अहसास उसकी "कोमलता" का भी"
    "दिल का पता नहीं पर पत्थर ज़रूर धडकते हैं "
    इंसान के दिल के किसी कोने में छिपी जड़ता और पत्थर की चेतनता का सुन्दर वर्णन.............

    ReplyDelete
  8. jaha n pahuche ravi, vaha pahuche kavi....
    great, phatharo ke dil ka halt kevel kavi hi samaz sakte hai..n duniyako samza sakte hai..
    bahot sundar bro....

    ReplyDelete
  9. पत्थर
    सख्त नहीं होते हमेशा !
    जब कभी थककर,
    पसीने से लथपथ
    सहारा लोगे किसी पत्थर का
    तब होगा अहसास-
    उसकी "कोमलता" का भी।

    बहुत सुन्दर लिखा है...

    ReplyDelete
  10. अक्सर चला करते हैं पत्थर भी-
    और कुचले जाते हैं इंसान !!!
    bahut gahan ...sateek abhivyakti ...
    bahut achchha likha hai ....

    ReplyDelete
  11. पत्थर
    सख्त नहीं होते हमेशा !
    जब कभी थककर,
    पसीने से लथपथ
    सहारा लोगे किसी पत्थर का
    तब होगा अहसास-
    उसकी "कोमलता" का भी।
    बहुत ही बढि़या ....।

    ReplyDelete
  12. बहुत ही बढ़िया सर ।

    सादर

    ReplyDelete
  13. दिल का पता नहीं
    पर पत्थर जरुर धड़कते हैं।
    अक्सर सुनता हूँ
    अपने वीरान, सुनसान
    घर में धडकनें - दीवारों की।

    बहुत खूबसूरती से पत्थरों की धडकन लिखी है ..सारी क्षणिकाएँ अच्छी लगीं

    ReplyDelete

मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

एक नज़र इधर भी...