खुश है आज रमेसर
बहुत खुश,
जोरों से आया है मानसून इस बार,
भर गए हैं ताल-तलैय्या, खेत,
भीगी माटी से
आने लगी है खुशबू "सोंधी- सोंधी",
हल रखे कांधों पर
निकल पड़े हैं किसान,
लोट रहे हैं नंग-धडंग बच्चे
गाव की पानी भरी गलियों में छपाक-छपाक...
देख रहा है रमेसर,
सुनता है किलकारियां बच्चों की,
बैलों के गले में बंधे
घान्ग्रा की मधुर आवाज....
सोचता है रमेसर...
खूब करूँगा मेहनत इस बार,
मिल जाएँगी जब खेत कि माटी में
मेरे पसीने कि बूंदें,
लहलहा उठेंगे खेत,
लगेंगी धान के पौधों पर "बालियाँ सोने की",
चुकता कर दूंगा इस बरस सारे कर्ज...
मुनिया की शादी...
चुन्नू का स्कूल, और...
और.....
सोच न पाया रमेसर इससे आगे,
याद आ गया सहसा उसे
दो एकड़ का अपना खेत...
बंद है जो "तिजोरी" में साहूकार के!!!!
बुझ गई हैं रमेसर की चमकती आँखें,
ख़ुशी के परिंदे
जाने कहाँ काफूर हो गए...
लोट गया रमेसर जाकर
हाथ जोड़े, भगवान् की मूर्ती के सामने....
शायद प्रार्थना कर रहा है वह,
या शायद वह कर रहा होगा
"पूर्वाभ्यास" साहूकार के समक्ष जाने कि!!!!
बहुत खुश,
जोरों से आया है मानसून इस बार,
भर गए हैं ताल-तलैय्या, खेत,
भीगी माटी से
आने लगी है खुशबू "सोंधी- सोंधी",
हल रखे कांधों पर
निकल पड़े हैं किसान,
लोट रहे हैं नंग-धडंग बच्चे
गाव की पानी भरी गलियों में छपाक-छपाक...
देख रहा है रमेसर,
सुनता है किलकारियां बच्चों की,
बैलों के गले में बंधे
घान्ग्रा की मधुर आवाज....
सोचता है रमेसर...
खूब करूँगा मेहनत इस बार,
मिल जाएँगी जब खेत कि माटी में
मेरे पसीने कि बूंदें,
लहलहा उठेंगे खेत,
लगेंगी धान के पौधों पर "बालियाँ सोने की",
चुकता कर दूंगा इस बरस सारे कर्ज...
मुनिया की शादी...
चुन्नू का स्कूल, और...
और.....
सोच न पाया रमेसर इससे आगे,
याद आ गया सहसा उसे
दो एकड़ का अपना खेत...
बंद है जो "तिजोरी" में साहूकार के!!!!
बुझ गई हैं रमेसर की चमकती आँखें,
ख़ुशी के परिंदे
जाने कहाँ काफूर हो गए...
लोट गया रमेसर जाकर
हाथ जोड़े, भगवान् की मूर्ती के सामने....
शायद प्रार्थना कर रहा है वह,
या शायद वह कर रहा होगा
"पूर्वाभ्यास" साहूकार के समक्ष जाने कि!!!!
वन्दे मातरम भैया !!
ReplyDeleteयह पीड़ा काश किसी एक किसान की होती..... मानसून के आने की ख़ुशी देश के किसानों के चेहरे पर न जाने क्यों अधिक समय तक नहीं नजर आती और किसान जो अन्नदाता है आज आजादी के छटवें दशक में भी साहूकारों के चक्कर से मुक्त नहीं हो पाया है .......शर्मनाक बेहद शर्मनाक है यह हालत ....पर आपने जिस तरह इनके पीड़ा का चित्रण किया है वह बेहद मार्मिक और दिल में घर करने वाला है सच में इसे पढ़कर मानसून की ख़ुशी कहीं ओझल नजर आती है .....................इस मर्मस्पर्शी लेख के लिए अशेष शुभकामनायें !!
bahot accha bhiyya,,,
ReplyDeletekisan ki khushi n mazburi...bade aasani se shabdo me zod diye hai....
good work bro...
keep it up....
achi hai,kash kisan ki zidangi bhi sudharpati
ReplyDelete10/10---------------Gulzar ki yaad dila rahe ho kuchh-kuchh!
ReplyDeletehabib bhai, badee sundar kavita ban padee hai yah. apne samay se samvaad kartee hui. talkh tippanee hai iss visangatipoorn samay par..
ReplyDeleteभर गए ताल तलैया रे.... बहुत सुन्दर गीत....
ReplyDeleteउम्र ढोने के लिए
ReplyDeleteकुछ साँस की सौगात ले
सुर्ख सूखी रेत बैठे
किसान से जज्बात ले
मैं जिया हूँ किस तरह ये राज़ कैसे दूँ तुम्हे ?
जब शब्द पत्थर से हुए, दाद कैसे दूँ तुम्हे ?
इतना मर्म कहाँ से लाते हैं आप ...प्रणाम करता हूँ आप की लेखनी को.......... आप के ज़ज्बात को ...जिस ने ..किसान की पीड़ा का सजीव चित्रण कर उसकी ज्वलंत समस्या को ना केवल उठाया है बल्कि आप की ये कविता कुछ हद तक उसकी ज्वलंत समस्या का निदान भी दे रही है|
साधुवाद
हर हर महादेव
hbib saahb aadab aapne to apni is adaon se mujhe apnaa gulaam bnaa daalaa jnaab men sochtaa thaa yeh soch yeh alfaaz shaayd hi is jnm men kisi or ke hon lekin ab sochtaa hun aap tk phunch kr aek achche insaan achche lekhk,achche shaayr kvi or thinkr ke alaavaa insaaniyt ki tlaash khtm ho gyi he kyunki jis ki tlaash thi voh sb vn men sho ki trh aap akele me mil gyaa he . shukriyaa bdhaayi hbib bhaayi ho ske to akhtarkhanakela.blogspot.com bhi kholn ki zhmt kren . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeletebahot achcha.
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