सुधि मित्रों, मेरा सादर नमस्कार स्वीकार करें,
मनमोहन की सारी कोशिश व्यर्थ चली जाए, मैया व्यर्थ चली जाए।
मैं अत्यंत आभारी हूँ की आप सब ने मेरी भावनाओं से इत्तेफाक रखते हुए मुझ अकिंचन को अपने स्नेह का भागी बनाया। कोई रचना जब हमें अपने ह्रदय के निकट जान पड़ती है तो निश्चित रूप से हम अपनी प्रतिक्रिया में अपने सर्वोत्तम भावों को अंकित करते हैं। मेरी रचना "'शहीद कब वतन..." पर आपकी प्रत्येक टिप्पणी इस तथ्य को संवेदनशीलता के साथ उजागर कारती हुई मेरे ह्रदय के निकट स्पंदित हो रही हैं। अपनी रचना में प्रयुक्त उर्दू लफ़्ज़ों के अर्थ ना देकर अनजाने ही अपने मित्रो के असमंजस का कारण बन जाने के लिए मैं खेद प्रगट करता हूँ तथा भविष्य में इस पक्ष पर सतर्क रहने का विश्वास दिलाता हूँ। आप सभी के स्नेह के सम्मुख नतमस्तक मैं प्रयासरत हूँ कि आपके द्वारा प्रदत्त "स्नेह सम्पदा" की रक्षा कर सकूं।
मित्रों, देश की; जनता की प्रमुखतम एवं दिन प्रतिदिन विकराल होती समस्या पर हास्य व्यंग्य को माध्यम बनाकर, यह इस पोस्ट आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ. शासन-प्रशासन के कथित गंभीर उपायों के बावजूद महंगाई वक़्त-बेवक्त उछल उछल कर हम सभी को लतियाए जा रही है। तमाम दावों से ऊपर की सच्चाई यही है कि "महंगाई" किसी के नियंत्रण में नहीं है और अपना पृथक अस्तित्व बना चुकी है। देश के कण-कण में व्याप्त हो चुकी है। अभी तक मेरा, कदाचित हम सब का मानना रहा है की केवल इश्वर ही कण-कण व्यापी होता है और इस लिहाज से तो महंगाई..... खैर, इस पर नियंत्रण सरकार के बस की बात तो लगता है की है नहीं. आइये हम स्वयं श्रद्धापूर्वक "महंगाई माता" की स्तुति कर उससे नीचे आ जाने की प्रार्थना करते हैं. संभवतः ऐसे ही कुछ सफलता हाथ लग जाए.
॥ महंगाई माता की आरती॥
ॐ जय महंगाई माता, मैया जय महंगाई माता।
तेरी किरपा से घर घर में कष्ट बहुत आता॥ॐ जय महंगाई माता॥
बुलेट ट्रेन के जैसे सरपट, तू ऐसे भागे, मैया तू ऐसे भागे।
तेरी चर्चा कर कर सब जन, सोयें और जागें ॥ॐ जय महंगाई माता॥
मनमोहन की सारी कोशिश व्यर्थ चली जाए, मैया व्यर्थ चली जाए।
भाजपाई बंद भारत कर कर खिसियाये ॥ॐ जय महंगाई माता॥
होम लोन पर ब्याज का दर हर बैंक बढ़ाता है, मैया हर बैंक बढ़ाता है।
ख़त्म कमाई "किश्तों" में फिर, घर क्या आता है ॥ॐ जय महंगाई माता॥
पेट्रोल और डीज़ल तो खुद ही, भभक रहे ऐसे, मैया भभक रहे ऐसे।
गैस की कीमत ही सुन किचन, फुफकारे जैसे ॥ॐ जय महंगाई माता॥
दाल और चावल की दर, सुरसा के मुह जैसे, मैया सुरसा के मुह जैसे।
खाना संभव नहीं बिना, खाए ही जियें कैसे ॥ॐ जय महंगाई माता॥
सब्जी की सूरत देखे ही बीत गए बरसों, मैया बीत गए बरसों।
तेरी कृपा से दाल मगर, खा पाया माँ परसों ॥ॐ जय महंगाई माता॥
हाथ जोर विनती करता मैं, नीचे आ जाओ, मैया नीचे आ जाओ।
पत्नी झोला दे बोली है, राशन ले आओ ॥ॐ जय महंगाई माता॥
"महंगाई माँ" की आरती जो जन प्रेम सहित गाये, मैया प्रेम सहित गाये।
तीनों लोक सुधारे अपना, बेहद सुख पाए ॥ॐ जय महंगाई माता॥
॥इति श्री महंगाई माता स्तुति॥
achchha vyangya geet hai yah. badhai is teekhee nazar kliye. yah samay aise hi vyangyon kahai.
ReplyDeleteशानदार रचना................!!
ReplyDeleteकाश की देश के कर्णधार गरीब और अमीर के बिच अनावश्यक पिस रहे मध्यमवर्गीय जनों की पीड़ा को समझ पाते जो महंगाई से सर्वाधिक ग्रस्त और त्रस्त हैं............आपको शुभकामनायें देना चाहता हूँ की आपने महंगाई की समस्या को बखूबी इस व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत किया है, साथ ही मै आपके लगातार लोकप्रिय हो रहे ब्लॉग के लिए भी अशेष शुभकामनायें देता हूँ...............वन्दे मातरम !!
व्यंग अच्छा है
ReplyDeleteहर हर महादेव
mai lekhak nhi hu per aam admi ke shabd mai kahutoo lajwab post
ReplyDeleteha ha ha-------------mazedar bhi saarthak bhi!!
ReplyDeletecharam ki or jati hui mahgaai aur shasahn ke rawaiye se trast insaan ki wyatha ka aapne is wyangy ke madhyam se satik chitran kiya hai. badhai.
ReplyDeleteहबीब भाई,
ReplyDeleteआज आपके ब्लाग पर पहली बार पहुंचा,
मुझे बहुत अच्छा लगा यहां आकर,
आपकी उम्दा रचनाओं कर पढकर
हां,मैने आपका पूरा ब्लाग पढा है।
कुछ मेरे मन में उमड़ घुमड़ रहा है।
मुलाहिजा फ़रमाएं
वतन के नौजवां जब हबीब हो जाएं
वहां कौन किसका रकीब हो सकता है
बहती जहां गंगा जमुनी पुरवाई सदा
वहां कौन खेतों में सलीब बो सकता है
इसे अधुरी छोड़कर जा रहा हूँ
समय मिले तो पूरी किजिएगा
मैं फ़िर लौट कर आऊंगा
आपके आदेश का पालन करने की कोशिश अवश्य करूँगा. फ़िलहाल आपकी आमद का शुक्रिया करते हुए ये पंक्तियाँ आपके लिए...
ReplyDelete"आपके आगमन से ताक़त बढ़ी है,
लगता है संग सारी दुनिया खड़ी है,
आपकी नसीहतें मिलती रहें बस
सूरज की भाति नसीब हो सकता है.
आप का स्वागत. आप आयें, मेरा हौसला बढ़ाएं.