2९ जून २०१०,
आज तडके साढ़े चार बजे के आसपास सिरहाने के पास वाइब्रेशन मोड़ में रखे सेल फोन के घुरघुराहट से नींद खुल गई। मिचमिचा कर आँखे मलते हुए देखा तो एक पंक्ति में भेजा गया मेरे मित्र का मेसेज था- "रोड जाम, आई एम् सेफ एट मैनपुर।" यह एक पंक्ति का सन्देश अपने साथ अनगिनत प्रश्नों की भीड़ भी साथ लाया था। भिन्न-भिन्न आकारों के प्रश्न चिह्न मेरे सेल फोन के छोटे से स्क्रीन पर उभरने और विलोपित होने लगे। साथ ही उभरने लगीं दिलकश जंगलों के बीच गुजरने वाली ठंडी, सायेदार सड़कों की तस्वीरें भी, जिनके बीच से गुजरने पर महसूस होने वाले आनंद का बयान करने में हमारे शब्दकोष के तमाम लफ्ज़ बौने और अपर्याप्त लगने लगते हैं। सीटी की तरह बजती हुई सुरीली हवाएं हमें भी व्हिसलिंग का दावत देती हुई अपनी खूबसूरती में खो जाने के लिए मजबूर कर देती हैं। अनायास ही मुझे पांच वर्ष पूर्व मैनपुर के पांच दिवसीय शाशकीय दौरे पर सहकर्मियों और वहां के सीधे-सादे लोगों के साथ व्यतीत वक़्त याद आ गया।
मैनपुर... रायपुर से पूर्व दिशा में लगभग १३५ किमी पर स्थित आदिवासी विकासखंड का मुख्यालय। जैसे ही हम नगरीय तामझाम और चकाचौंध के प्रभाव से मुक्त मैनपुर के गावों में प्रवेश करते हैं, वहां के भोले-भाले लोग, तमाम परिश्थितियों में खुश रहने की उनकी प्रवित्ति इन्तहाई तौर पर प्रभावित करने लगती है। मुझे याद है जब हम मैनपुर से २०-२२ किमी दूर तरेंगा विश्रामगृह पहुंचे तो रात के २ बजे का असुविधाजनक वक्त होने पर भी विश्रामगृह के केयर टेकर ने प्रफुल्ल मन से इलायची वाली कली चाय और बेसन के छोटे छोटे पकौड़ो के साथ हमारा स्वागत किया था। यकीन मानिये, सूखी लकड़ियों को सुलगाकर बनायी हुई धुएं युक्त चाय की चुस्कियों में तब जो आनंद आया था वह हमारे शहरों के बड़े बड़े कैफे और रेस्टारेंट में मिल पाना संभव नहीं। मार्च का अंतिम सप्ताह होने के बावजूद; जब ग्रीष्म काल अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर चूका होता है, वहां का मौसम बेहद सर्द था, और सफ़र की सर्दी दूर भागने के लिए हमें चाय और पकौड़ों के साथ साथ आग का भी सहारा लेना पड़ा था। फिर अलसुबह हम केयर टेकर के साथ मार्निंग वाक् के बहाने घने जंगलों में काफी दूर तक घूमने चले गए थे। वाह... कैसी सुहानी सुबह थी। विभिन्न प्रकार के पक्षियों की भांति भांति की आवाजें वहां की सर्द हवा में घुलकर विलक्षण उत्साह का संचार कर रही थीं। एकदम तरोताजा कर देने वाली हिरणों के झुण्ड की धमाचौकड़ी का आनंद लेने का सुअवसर भी हमें मिल गया था। शहरों के भागमभाग और आपाधापी भरी दुनिया से अलग... एकदम अलग ही दुनिया थी वह।
और आज वही मैनपुर नक्सलवादी आहटों से सहमा हुआ दिखाई पड़ता है। आज पूरे क्षेत्र में एक रहस्यमय खामोशी सुनाई पड़ती है हमारे दिलकश जंगल अब हमें अपनी तरफ खींचते नहीं बल्कि डराते हैं। यहाँ की हरियाली में "लाल छींटे" यत्र तत्र प्रश्न बनकर बिखरे नजर आते हैं। हवाए सुरीली लगने की बजाय फुसफुसा कर सचेत करती हुयी प्रतीत होती हैं। मेरे सेल फोन की स्क्रीन से तमाम तस्वीरें धुंधली पड़कर विलुप्त हो गई। नींद का नामोनिशान न रहा आँखों में। कल शाम ही की तो बात है जब मित्र के देवभोग रवाना होने के पूर्व काफी के साथ हम चर्चा कर रहे थे की आजकल कुछ शान्ति है, और अब यह मेसेज? मैंने हडबडा कर मित्र को फोन किया। उसने बताया की मैनपुर से ३५-४० किमी दूर सड़क पर पेड़ पड़े हुए हैं। नक्सलियों ने दो दिन के बंद का ऐलान किया है. । कन्फर्म नहीं है की सड़क उन्हीं के द्वारा जाम किया गया है या हवा में पेड़ सड़क पर गिर गए हैं। लेकिन हमारी बस मैनपुर वापस आ गई है और इस वक़्त बस स्टेंड में है। हालांकि किसी प्रकार की दुर्घटना की जानकारी नहीं है पर सारे यात्री दहशत में हैं और रायपुर की तरफ वापस लौटने की भी हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। सुबह का उजाला होने पर शायद माहोल देखकर बस चलाई जाएगी।
दोस्त से बातें करके मैं सहज तो हो गया पर उसके द्वारा कही गई आखिरी पंक्ति "सुबह का उजाला होने पर शायद माहोल देखर बस चलायी जाएगी" मुझसे प्रश्न करती हुई प्रतीत हो रही है की "हमारे जंगलों में नक्सली आतंक से मुक्त सबेरा अपना उजाला लेकर आखिर कब आयेगा?"
बढ़िया संस्मरण ..... धन्यवाद.
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण .
ReplyDelete"हमारे जंगलों में नक्सली आतंक से मुक्त सबेरा अपना उजाला लेकर आखिर कब आयेगा?" हकीकत मैं यह एक सवाल है, जिसको बेहतेरीन तरीके से पेश किया है..
ReplyDeleteजिन्दा लोगों की तलाश!
ReplyDeleteमर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
Pl. see-http://presspalika.blogspot.com/2010_03_01_archive.html
भाई जी कल इस पोस्ट को पढ़कर, आपके विचारों से सहमत होता रहा, शाम जब धौड़ाई हमले की खबर आई तब यह पोस्ट आंखों में जीवंत हो उठा था.
ReplyDeleteलेखन के लिए, धन्यवाद भईया.
बढ़िया है!
ReplyDeleteथोडा सा इंतज़ार कीजिये, घूँघट बस उठने ही वाला है - हमारीवाणी.कॉम
आपकी उत्सुकता के लिए बताते चलते हैं कि हमारीवाणी.कॉम जल्द ही अपने डोमेन नेम अर्थात http://hamarivani.com के सर्वर पर अपलोड हो जाएगा। आपको यह जानकार हर्ष होगा कि यह बहुत ही आसान और उपयोगकर्ताओं के अनुकूल बनाया जा रहा है। इसमें लेखकों को बार-बार फीड नहीं देनी पड़ेगी, एक बार किसी भी ब्लॉग के हमारीवाणी.कॉम के सर्वर से जुड़ने के बाद यह अपने आप ही लेख प्रकाशित करेगा। आप सभी की भावनाओं का ध्यान रखते हुए इसका स्वरुप आपका जाना पहचाना और पसंद किया हुआ ही बनाया जा रहा है। लेकिन धीरे-धीरे आपके सुझावों को मानते हुए इसके डिजाईन तथा टूल्स में आपकी पसंद के अनुरूप बदलाव किए जाएँगे।....
अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:
http://hamarivani.blogspot.com
bhai sahab, aakhir isi ek prashna ka javab shayad ham sabhi chhattisgarhwasi dhundh rahe hain, lekin prashn shayad chhota hote hue bhi itna lamba ho gaya hai ki iska or-chhor nahi mil raha....
ReplyDelete"हमारे जंगलों में नक्सली आतंक से मुक्त सबेरा अपना उजाला लेकर आखिर कब आयेगा?"
ReplyDeleteसंस्मरण के अंत में प्रश्न रूप में आपकी चिंता प्रत्येक ज़िम्मेदार नागरिक की है. आपकी संस्मरणात्मक शैली सरल और सुलझी हुयी है. बेहद पसंद आयी.
badhiya !!!!!
ReplyDeletekabhi idhar bhi aa jaaeeyega !!!!
hamarianjuman.blogspot.com