मित्रों सादर नमस्कार स्वीकार करें,
इस पोस्ट के माध्यम से मैं भाई जनाब शहरोज का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ जिनकी प्रेरणा से मुझे जुल्मशिआर शासन के खिलाफ स्वस्फूर्त छिड़े जनांदोलन की अमर गाथा के पुनर्पठन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बहुत मुमकिन है उन्होंने मेरी कविता "हिंद के बेटों उट्ठो कि वन्दे मातरम् गाना होगा" के परिपेक्ष्य में मुझे 'आनंद मठ' पढ़ने कि नेक सलाह दी हो। मैं उनकी बेहद इज्जत करता हूँ।
सचमुच, बंगाल के भौगोलिक परिदृश्य पर आधारित यह उपन्यास देश भक्ति कि ऐसी मिसाल देने में कामयाब है, जो कहीं और मिलना गैरमुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है। पहले से ही दुर्भिक्ष के रूप में कुदरत कि मार झेल रहे बंगाल के बाशिंदे जब अत्याचारी शासक के जुल्मों का भी शिकार होने लगते हैं तब विद्रोह कि एक बेमिसाल गाथा कि नीव रखी जाती है। (यहाँ मेरे लिए यह साफ़ कर देना मुनासिब होगा कि शासक लफ्ज़ का इस्तेमाल मेरे द्वारा किसी मुल्क या कौम के नुमाइंदे के लिए नहीं किया गया है। मेरा मत है कि शासक इन बातों से जुदा होता है, और यदि वह आवाम की सरपरस्ती में कोताही करता है या उसके रंजोगम से वाकिफियत और इत्तफाक न रखते हुए कानून के नाम पर जुल्म उठाने लगता है तो उसके जुल्म और अत्याचार का पुरजोर खिलाफत करने का हक़ उसकी रियाया का बनता है। और यही मसाइल मेरी कविता की बुनियाद हैं।)
कोई ताज्जुब नहीं कि इस किताब ने हिंन्द की जन्गेआज़ादी में कूद जाने कि लिए उस वक़्त के नवजवानों में जूनून और जोश पैदा कर दिया था। लिखे जाने के इतने समय के बाद भी जब यह किताब पढ़ी जाती है और पाठक जब मातृभूमि के संतानों को 'हरे मुरारे, मधुकैटभारे' , और 'वन्दे मातरम्' के जुनूनी नारेबाजी के साथ अपने जान कि बाजी लगाते हुए देखता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं, और वह स्वयम भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगता है। बन्दूक के खिलाफ शमशीर की, जुल्म के खिलाफ हौसले कि एक बुलंद आवाज है यह किताब। इसीलिए हिनुस्तानी साहित्य जगत में आनंद मठ का अपना मक़ाम है।
बहरहाल, मुझे आनंद मठ पुनः पढ़ने कि सद्प्रेरणा देने हेतु भाई शहरोज का फिर से शुक्रिया, और साथ ही आप सब से अपनी कविता "हिंद के बेटों....." में एक पद और जोड़ने कि इजाजत चाहता हूँ:
"जंगल में बारूद लगाने वाले सुन,
चलेंगे जब हिंद के मतवाले सुन,
फौलादों से तब तुम्हें टकराना होगा...
संतानों के संग तुम्हें भी वन्दे मातरम् गाना होगा।"
जय हिंद।
.... बहुत सुन्दर!!!
ReplyDeleteवन्दे मातरम्
ReplyDeleteबहुत भावप्रद अभिव्यक्ति, शहरोज़ भाई के प्रेरणा को नमन.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteवन्दे मातरम्
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, भावप्रद, देश भक्ति से ओत-प्रोत एक ऐसी अभिव्यक्ति; जिस को पढने के बाद देश प्रेम के लहू का ज्वार नस तोड़ कर बहना चाहे......
प्रणाम करता हूँ आप की लेखनी को और आप के देश प्रेम के जज्बे को ...
हर हर महादेव
Sundar
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