सुधि मित्रों, मेरा सादर नमस्कार स्वीकार करें।
अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाएं देकर मेरी हौसला आफजाई करने के लिए आप सभी का बेहद शुक्रगुजार हूँ, और गुजारिश करता हूँ की अपने विचारों की रोशनी को मेरी हमराह बनाए रखकर मेरी राहें रोशन जरुर करते रहें।
पता नहीं ऐसा क्यों होता है की उम्मीदें दम तोड़ जाती हैं, और आशंकाएं अक्सर सच हो जाती हैं। "रोड जाम, आई एम् सेफ एट मैनपुर" को पोस्ट करते वक़्त भी मेरा मन जानी अनजानी आशंकाओं से भरा हुआ था, और शाम होते होते ये जालिम सच भी हो गए जब धौड़ाई से शहादत की खबरें आने लगी। आप सभी की प्रतिक्रियाएं इस बेहद संवेदनशील और सुलगते हुए सवाल पर शासन के उदासीन रवैये को शिद्दत से रेखांकित कर जाती हैं।
मुल्क की रहनुमाई करने वाले सुने - "अगर आप हर आतंकी हमले के बाद निंदा का पिटारा खोल कर बैठ जायेंगे, हमारे शहीदों को दी जाने वाली श्रद्धांजलि और सलामी का निर्वाह केवल परंपरा के रूप में करते रहेंगे और जवाबी कार्यवाही के नाम पर चर्चा और रणनीति निर्धारण का खेल खेलते रहेंगे तो बड़े दुःख के साथ मुझे अपनी यह भावनाएं व्यक्त करनी होगी की आपके द्वारा शहीदों को दी जाने वाली सलामी का कोई सार्थक पहलू दूर दूर तक नजर नहीं आता है।"
अपने इस पोस्ट "शहीद कब वतन से आदाब मांगता है" के साथ अपनी इन्ही भावनाओं को लेकर आपके समक्ष उपस्थित हूँ:-
लहू की बूँद बूँद का हिसाब मांगता है।
शहीद कब वतन से आदाब मांगता है।
पीठ पर जो वार कर रहे हैं मुह छुपाकर
सामना करें अगर वो सामने से आकर,
जमीन से मिला दें, मसल के ही जला दें,
अमनशिआर का जो इताब मांगता है।
अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाएं देकर मेरी हौसला आफजाई करने के लिए आप सभी का बेहद शुक्रगुजार हूँ, और गुजारिश करता हूँ की अपने विचारों की रोशनी को मेरी हमराह बनाए रखकर मेरी राहें रोशन जरुर करते रहें।
पता नहीं ऐसा क्यों होता है की उम्मीदें दम तोड़ जाती हैं, और आशंकाएं अक्सर सच हो जाती हैं। "रोड जाम, आई एम् सेफ एट मैनपुर" को पोस्ट करते वक़्त भी मेरा मन जानी अनजानी आशंकाओं से भरा हुआ था, और शाम होते होते ये जालिम सच भी हो गए जब धौड़ाई से शहादत की खबरें आने लगी। आप सभी की प्रतिक्रियाएं इस बेहद संवेदनशील और सुलगते हुए सवाल पर शासन के उदासीन रवैये को शिद्दत से रेखांकित कर जाती हैं।
मुल्क की रहनुमाई करने वाले सुने - "अगर आप हर आतंकी हमले के बाद निंदा का पिटारा खोल कर बैठ जायेंगे, हमारे शहीदों को दी जाने वाली श्रद्धांजलि और सलामी का निर्वाह केवल परंपरा के रूप में करते रहेंगे और जवाबी कार्यवाही के नाम पर चर्चा और रणनीति निर्धारण का खेल खेलते रहेंगे तो बड़े दुःख के साथ मुझे अपनी यह भावनाएं व्यक्त करनी होगी की आपके द्वारा शहीदों को दी जाने वाली सलामी का कोई सार्थक पहलू दूर दूर तक नजर नहीं आता है।"
अपने इस पोस्ट "शहीद कब वतन से आदाब मांगता है" के साथ अपनी इन्ही भावनाओं को लेकर आपके समक्ष उपस्थित हूँ:-
लहू की बूँद बूँद का हिसाब मांगता है।
शहीद कब वतन से आदाब मांगता है।
पीठ पर जो वार कर रहे हैं मुह छुपाकर
सामना करें अगर वो सामने से आकर,
जमीन से मिला दें, मसल के ही जला दें,
अमनशिआर का जो इताब मांगता है।
हम हैं अमन के हाफ़िज़, कुर्बान भी हो जाएँ,
घडी परीक्षा की है, सर देने का हो जज्बा,
अशफाक का चमन फिर इंक़लाब मांगता
आतंक का भी खर्चा उठा रहे हैं हम तुम,
अफज़ल-कसाब को क्यूँ खिला रहे हैं हम तुम,
भगत, गुरु और सुखदेव् जिस फंदे पर झूले थे,
वह फंदा सियासत से जवाब माँगता है।
वो काटते हैं सर भी, उफ़ भी नहीं है करते,
हम ज़ुल्म की कहानी हैं कागजों में भरते,
मुंसिफ में भी नहीं क्या है फैसले की हिम्मत,
जाने वो और कितना असबाब माँगता है।
कानून मुह छुपाये बैठा है चुप जमी पर,
यह बोझ आ गया है अहबाब अब हमी पर,
आओ कदम बढ़ाएं , खुदी को आजमायें
काफिरों का झुण्ड हमसे अज़ाब माँगता है।
लहू की बूँद बूँद का हिसाब मांगता है।
शहीद कब वतन से आदाब मांगता है।
शहीद कब वतन से आदाब मांगता है।
pathetic
ReplyDeleteशानदार.............आपके जज्बे क शत शत प्रणाम है !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है हबीब भाई, कायरों की जमात छुप कर वाद के कंधे में बंदूक रखकर गोली चला रहे हैं और शहीदों की गिनती दिनों दिन बढ़ती जा रही है. स्वाभाविक तौर पर संवेदना और शहीदों को नमन जैसे भाव जन मन में उठते हैं किन्तु आपने इस रचना में शहीदों के सम्मान में उम्दा बात की है. धन्यवाद.
ReplyDeleteलहू की बूँद बूँद का हिसाब मांगता है।
शहीद कब वतन से आदाब मांगता है।
निशब्द हूँ …………………आज के हालात का सजीव चित्रण्।
ReplyDeleteकल के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
yeh napunsak log hisab kya denge.....
ReplyDeleteबहुत खूब. शहीद तो कुछ भी नहीं मांगता लेकिन जिस सम्मान का वो हक़दार है हमारे सत्ताधारी उन्हें वो भी नहीं दे पाते.
ReplyDeletemarmikabhivyakti hai. do din pahale maine bhi bastar ke halaat par ek post likhi thee. shayad meraa blog dekh nahi paye ho..?
ReplyDeleteलहू की बूँद बूँद का हिसाब मांगता है.
ReplyDeleteशहीद कब वतन से आदाब मांगता है...
बहुत ही भावपूर्ण रचना...
"Satya" ko itne achchhe lafzon me bhi kaha ja sakta hai, ye to aapki rachnaayen padhke pata laga! Aur pata hai mitr mai khud ek fauzi hun(serving in Indian Army, at present posted in J&K)isliye ye haqikat samajhna mere liye kuchh jyada hi aasan hai! Aap sahi kahte ho - ek shahid ki kimat aaj "salami shastra" tak hi simit ho gayi hai. Lekin Shahid aur uske pariwar ka ewam tamam-tamam un bhaiyon ka jo aise mission me lage huye hain in jhoot-mooth ki salamiyon se koi bhala nahi hone wala!! Zaroorat hai ek thos ran-niti ki jo hamare ye tathakathit leader kabhi nahi banane wale! Kyonki unka koi parijan kabhi in haalaton se gujarata hi nahi?
ReplyDeleteझकझोर देने वाली रचना....मन में कई प्रश्न उठाती हुई..
ReplyDeleteइस से बढ़ कर और शर्म की बात नहीं हो सकती थी
ReplyDeleteभारत माँ के परवानो पर घात नहीं हो सकती थी
कोई नेता कसाब के पक्ष में हमदर्दी जतलाता है
बलिदानी करकरे की सहादत पर भी थूक के जाता है
गाली की भी कोई सीमा है कोई मर्यादा है ...
गाली की भी कोई सीमा है कोई मर्यादा है ................
उनको क्षमादान .. देशद्रोह की परिभाषा से जायदा है
आप की भावनावों को शत शत प्रणाम
हर हर महादेव
सुन्दर लेखन।
ReplyDeleteभैया सच में बड़ी अच्छी रचना है मै बहुत अधिक कवितायेँ नहीं सुना करता हूँ पर आजकल आपकी कविताओं को सुनने पढने के बाद मेरी रूचि बढती जा रही है .............भैया माफ़ कीजियेगा कुछ उर्दू सब्द मै समझ नहीं पाता हूँ पर मै आपकी भावनाओं को अच्छी तरह से समझ सकता हूँ और उसके लिए आपको बधाई देना चाहता हूँ !!
ReplyDeletelajawab
ReplyDeleteलहू की बूँद बूँद का हिसाब मांगता है।
ReplyDeleteशहीद कब वतन से आदाब मांगता है।
सच बात , आपके इस जज्बे को सलाम ।
एक पंक्ति दिल में घूम रही है ...सर दे के जो है पाया वो जज्बा कब खिताब मांगता है ।
कब समझेंगे हम उनका बलिदान ?
कानून मुह छुपाये बैठा है चुप जमी पर,
ReplyDeleteयह बोझ आ गया है अहबाब अब हमी पर,
आओ कदम बढ़ाएं , खुदी को आजमायें
काफिरों का झुण्ड हमसे अज़ाब माँगता है।
बेहतरीन पंक्तियाँ ....... हर पंक्ति मन को उद्वेलित करती है ..
संजय हबीब जी....सबसे पहले तो शुक्रिया कि आप ने अपने ब्लॉग से मुझे जोड़ा...आप कि रचना वाकई शानदार है...एतदर्थ मेरी बधाई
ReplyDeleteआओ कदम बढ़ाएं , खुदी को आजमायें
काफिरों का झुण्ड हमसे अज़ाब माँगता है।
अब समय आ गया है..कि कुछ ज़रूरी फैसले जनता को करने होंगे...वर्ना..वही बचेंगे जो खुद की रक्षा में समर्थ होंगे...हमारे नेता तो मुंबई बम विस्फोट पर भी राजनीति से बाज़ नहीं आते....
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
bahut sundar , agar ve aatankiyon ko dand kee seema tak pahuncha denge to phir rajneeti kis par karenge? logon kee bhavanaaon ka majak kaise udayenge? sach men bhagat aur aazad kee kurbani aaj ke in karnamon par hamase savaal kar rahi hai aur ham niruttar sir jhukaye khade hain.
ReplyDeleteSirji.. gazab ka likha hai. rongte khade ho gaye padh kar..
ReplyDelete//भगत, गुरु और सुखदेव् जिस फंदे पर झूले थे,
वह फंदा सियासत से जवाब माँगता है।
lajawaab