खुशी
गुलाब की
पांखुरी को छूते ही
खामोशी से उतर आई
मेरी तर्जनी की नाख़ून पर
मुस्कुराती हुई
ओस की एक बूँद.....
अभी,
मेरी नाडियों का स्पंदन
मुझे डराने लगा है....
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अस्तित्व
मैंने सोचा था,
वह एक बूँद है....
गिरकर पलकों से
ज़मीन में कहीं खो जाएगा....
मैं गलत था...!
वह एक बूँद का सागर
फैला है दिगंत तक
मेरे सम्मुख....
उसे पार करना
मेरे वश का नहीं,
और डूबने का सलीका
मैं सीख न सका.....!!
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भ्रम
दर्द की टहनी से
बिछड आये पत्ते ने
पलकों पर दस्तक दी...
देखा....
चेहरे पर
बेइंतहा ज़र्दी के बीच
चंद हरियाले से छींटे...
यह क्या...!!!
मैंने आँखें मलकर
दोबारा देखा...
कहीं मेरे सामने कोई
आईना तो नहीं....
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विरह
मेरे दोस्त...
मेरी राहे हयात से
क्यूँ समेट ली तुमने
अपनी यादों की धूप...??
देख..!
मेरे लफ़्ज़ों की तरह
मेरी रूह भी ठिठुरी जाती है....
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उसे पार करना
ReplyDeleteमेरे वश का नहीं,
और डूबने का सलीका
मैं सीख न सका.....!!
...
करूँ तो क्या करूँ भाई जी हालात तो आपने मेरे बयान कर दिया कुछ राह भी बताइए !
देख..!
ReplyDeleteमेरे लफ़्ज़ों की तरह
मेरी रूह भी ठिठुरी जाती है....एक से बढकर एक शानदार क्षणिकाएं।
वाह सभी की सभी बेहद उम्दा हैं |
ReplyDeleteहर क्षणिका बहुत सुंदर भावों को सँजोये हुये ... यादों की धूप अच्छी लगी
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteसभी बेहद खूबसूरत....
सादर.
"विरह
ReplyDeleteमेरे दोस्त...
मेरी राहे हयात से
क्यूँ समेट ली तुमने
अपनी यादों की धूप...??"
वाह हबीब साहब ! बहुत खूबसूरत।
marvelous writing..
ReplyDeleteचारो क्षणिकाएं बढ़िया हैं.
ReplyDeleteबहुत-बहुत ही अच्छी भावपूर्ण रचनाये है......
ReplyDeleteAstitv ne dil loot liya ji
ReplyDeleteउसे पार करना
मेरे वश का नहीं,
और डूबने का सलीका
मैं सीख न सका.....!!kya baat hei !
वाह! बहुत बढ़िया, रोचक !
ReplyDeleteआपको पढ़कर अदब से सर झुकता है
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएं।
ReplyDeleteचारों ही विषयों पर सशक्त और स्पष्ट अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteगजब की क्षणिकाएं प्रस्तुत की हैं आपने.
ReplyDeleteपढकर मन मग्न हो गया है.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का मैं आभारी हूँ.
मैंने सोचा था,
ReplyDeleteवह एक बूँद है....
गिरकर पलकों से
ज़मीन में कहीं खो जाएगा....
मैं गलत था...!
वह एक बूँद का सागर
फैला है दिगंत तक
मेरे सम्मुख....
kise behtar kahun , kise kam
एक एक क्षणिका एक एक बूँद में एक एक सागर समेटे है.. भावनाओं का, गहन अर्थ का और एक दार्शनिकता का!!
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ बहुत ही बढ़िया हैं सर!
ReplyDeleteसादर
anupam.....ek se badhkar ek.....
ReplyDeleteवाह|||
ReplyDeleteसभी सुन्दर एवं बेहतरीन है...
बहुत ही बढ़िया
क्या आप इतने ही सामर्थ्य से जीवन के उल्लास को व्यक्त करना चाहेंगे?
ReplyDeleteदेख..!
ReplyDeleteमेरे लफ़्ज़ों की तरह
मेरी रूह भी ठिठुरी जाती है....
अति कोमल रचनाएँ ! बहुत सुन्दर !
मेरे दोस्त...
ReplyDeleteमेरी राहे हयात से
क्यूँ समेट ली तुमने
अपनी यादों की धूप...??
देख..!
मेरे लफ़्ज़ों की तरह
मेरी रूह भी ठिठुरी जाती है...
....लाज़वाब...सभी क्षणिकाएं बहुत सुंदर
मैंने सोचा था,
ReplyDeleteवह एक बूँद है....
गिरकर पलकों से
ज़मीन में कहीं खो जाएगा....
मैं गलत था...!
वह एक बूँद का सागर
फैला है दिगंत तक
मेरे सम्मुख....
उसे पार करना
मेरे वश का नहीं,
और डूबने का सलीका
मैं सीख न सका Bahut Khoob.
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देख..!
ReplyDeleteमेरे लफ़्ज़ों की तरह
मेरी रूह भी ठिठुरी जाती है....
वाह ! बहुत सुंदर क्षणिकाएँ !
सभी क्षणिकायें प्राकृतिक बिम्बों में जीवन दर्शन कर रही हैं, वाह , क्या बात है.इसे कलम कहूँ या तूलिका ?
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण क्षणिकाएँ...
ReplyDeleteसभी एक से बढ़कर एक...
सादर
देखा....
ReplyDeleteचेहरे पर
बेइंतहा ज़र्दी के बीच
चंद हरियाले से छींटे...
WAH MISHRA JI SUNDAR REKHANKAN KE SATH HI LAJABAB SHABDON KA SANYOJAN ...AP NE TO RACHANA ME CHAR CHAND LAGA DIYA....BADHAI SWEEKAREN.
इन क्षणिकाओं के लिये एक शब्द कहा जा सकता है अद्भुत..
ReplyDeleteबहुत सुंदर. बधाई.
सभी बेमिसाल .. पर आसुओं की बूँद का अस्तित्व गहरे उतर गया ..
ReplyDeleteउसे पार करना
ReplyDeleteमेरे वश का नहीं,
और डूबने का सलीका
मैं सीख न सका.....!!
सुन्दर भावों की अतिसुन्दर क्षणिकाएं