सम्माननीय मित्रों, आज उर्दू अदब की रोशन मीनार शायरे आजम असदउल्ला खां ग़ालिब की जयन्ती है. ग़ालिब सचमुच ग़ालिब थे, यानि सबको जीत लेने वाले... उनके शान में बाअदब चंद अशआर कहने की गुस्ताखी (गुस्ताखी ही तो कही जायेगी) के साथ शायरी के शिखर को सलाम....
शायरे आजम रहे, वो शायरे उलफत रहे।
ठोकरों में रंज को रख, शायरे इशरत रहे।
शायरी की इंजिला वह इक खजाना हैं बलंद,
अगरचे खुद जिंदगी भर सरहदे गुरबत रहे।
धडकनों में रंग भरकर माह चुप हो छुप गया,
अर्श-ए-हसरत रहे, गालिब शबे फुरकत रहे।
जौक का था वह अहद पर कब अहद के साथ वो,
आप अपनी राह के हादी रहे किसमत रहे।
वो गजल, वो नज्म, वो किस्से-कहानी मौज के,
दोस्ती की, हौसलों की, आदतो-फितरत रहे।
ना सितारों की कमी चरखे अदब में है 'हबीब',
पर ना गालिब को पढ़े तो कल्ब में कुरवत रहे।
****************(बह्रे रमल २१२२/२१२२/२१२२/212 )*****************
इशरत = ख़ुशी | इंजिला = प्रकाशित | अर्श = आसमान | फुरकत = वियोग, विरह | अहद = युग | हादी = मार्गदर्शक | चरखे अदब = साहित्याकाश | कल्ब = ह्रदय | कुरवत = क्लेष |
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Agar ye gustakhi hai to hume to gustakhi pasand hai....
ReplyDeleteBehtareen shabd prayog aur bhav...
गुस्ताखी पसन्द आई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...लाजबाब गुस्ताखी !
ReplyDeleteशायरी के शिखर को सलाम और आपको भी ..
ReplyDeleteबेहतरीन संजय भाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शेर हैं.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति अच्छी लगी.
बार बार कीजियेगा ऐसी गुस्ताखी
तो ग़ालिब जी जीवंत ही लगेंगें.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
वीर हनुमान बुलाते हैं.
wah bahut umda ...
ReplyDeleteइस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।
ReplyDeleteआप तो अपनी हर प्रस्तुति के साथ चकित करते हैं।
बेहतरीन ग़ज़ल....
ReplyDeletebahut hi khub shandar sher kahe hai aapne 'galib' ki shan me.............haits off is prayas kje liye.
ReplyDeleteवो गजल, वो नज्म, वो किस्से-कहानी मौज के,
ReplyDeleteदोस्ती की, हौसलों की, आदतो-फितरत रहे।
waah
ना सितारों की कमी चरखे अदब में है 'हबीब',
ReplyDeleteपर ना गालिब को पढ़े तो कल्ब में कुरवत रहे ...
बहुत खूब हबीब जी ... आपका ये अंदाज़ बहुत ही लाजवाब लगा ... शायरों के शहंशाह को हमारा नमन ...
शायरे आजम रहे, वो शायरे उलफत रहे।
ReplyDeleteठोकरों में रंज को रख, शायरे इशरत रहे।
....सभी शेर लाज़वाब...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..
ग़ालिब साहब को समर्पित बहुत ही अच्छी पोस्ट..... सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गज़ल से गालिब की तस्वीर खींच दी , वाह !!!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत खूब! कुछ तो है ग़ालिब में जो उनके शब्द आज भी गूंज रहे हैं!
ReplyDeleteना सितारों की कमी चरखे अदब में है 'हबीब',
ReplyDeleteपर ना गालिब को पढ़े तो कल्ब में कुरवत रहे।
एकदम सही । गालिब को ना पढने से बहुत बडी कमी रहेगी जिंदगी में ।
बहुत सुंदर प्रस्तुती ग़ालिब साहब समर्पित बेहतरीन रचना,.....
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए..
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सुन्दर भाव लिए रचना |
ReplyDeleteबधाई |आशा
bahut sundar
ReplyDeleteशायरी की इंजिला वह इक खजाना हैं बलंद,
अगरचे खुद जिंदगी भर सरहदे गुरबत रहे।
adab sanjay bhai ... bahut achhi pakad hai urdu pr ....man gye bhai.
धडकनों में रंग भरकर माह चुप हो छुप गया,
ReplyDeleteअर्श-ए-हसरत रहे, गालिब शबे फुरकत रहे।
...
वाह !
मिर्ज़ा ग़ालिब पर कुछ लिखने की आप ही सोंच सकते हैं हबीब साहब !
आपके हुनर, हौसले और जज्बे को सलाम !
ये गज़ल तो मेरे सर के ऊपर से ही निकल गयी ...फिर से पढूंगी :):)
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