जम्मो मयारुक संगी मन ला राम राम... आरम्भ अउ गुरतुर गोठ अउ ललित डाट काम असन लोकप्रिय ब्लॉग के आदरणीय भाई संजीव तिवारी अउ आदरणीय भाई ललित शर्मा के प्रेरणा ले एक ठन छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल कहे हंव.... आप मन ह देख सुन के रद्दा दिखाहौ इही बिनती हवे.....
"केती बर जावौं जी"
कोन कोती हबरौ संगी केती बर जावौ जी
गाडा गाडा कहिनी काला दुख के सुनावौ जी
मंहगई हर रक्सिन बनके, अंगना म फुगड़ी खेले
जुड धर लिस चुल्हा ल मोर कईसे सुलगावौं जी
नोनी ल जुच्छा थारी, परुसय ओखर महतारी
रोटी, बासी होगे सपना, सपना देखावौं जी
मोर पछीना जेती गिरथे, डबडब ले तरिया भरथे
पानी फेर अन्जरी भर के, बुडे बर न पावौं जी
करजा कर कर के खेती, बाडी-बोनी करथौं जेती
फरगे बन्दूक ओती बर, कईसे जी बचावौ जी
अईसन अलकरहा रद्दा, झन ‘हबीब’ रेंगव भईया
छोर आवौ बारूद-बम ल, पाँव पर मनावौं जी.
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इही ग़ज़ल ल मोर अवाज म सुनौं
बहुत सुघ्घर गज़ल हबीब भाई, समें के पीरा के सटीक बरनन करे हव आप, धन्यवाद.
ReplyDeleteआडियो ला काली सुनिहंवए अभी 'स्लो नेट' के कारन चलत नइ हे.
बने सु्घ्घर "छज़ल" हे हबीब भाई, अउ बने गाए घलो हस, सुन त राते के डारे रहेवं, फ़ेर बिहनिया ले नेट अउ बिजली पदोवत हे। फ़ेर मजा आगे सुनके। नामकरण घलो कर दे हंव। :)
ReplyDeleteसुघ्घर गज़ल....सार्थक प्रयास. गाड़ा-गाड़ा बधाई. इसी तरह लिखते रहो.
ReplyDeletebeautiful gazal
ReplyDeleteवाह भैया बेहतरीन गजल हावे.....गाडा गाडा बधाई !!वाह भैया बेहतरीन गजल हावे.....गाडा गाडा बधाई !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल..
ReplyDeleteमंहगई हर रक्सिन बनके, अंगना म फुगड़ी खेले
ReplyDeleteजुड धर लिस चुल्हा ल मोर कईसे सुलगावौं जी
एक दम नवा छत्तीसगढ़िया -उपमा संग अतिक बढ़िया गजल लिखे हव.
हिरदे जुड़ागे.मोर हिंदी-गद्य , छत्तीसगढ़िया ब्लाग मितानी-गोठ अउ सियानी - गोठ मा समे निकल के आवौ,झाराझार नेवता हे.
सिरतोन गजल ला सुन के मन जुड़ागे.
.....बेहतरीन गजल
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