Wednesday, July 13, 2011

"ओह! मुंबई..."

“आतंक के सलासिल ना टूटते हैं भाई
मुंबई के आसमां में फिर देख लाली छाई
होते धमाके फिर से, हैं आज दिल के भीतर
इक  आँख में नमी है, इक  आँख में रुलाई”
मुम्बई आज फिर 'सीरियल ब्लास्ट' से दहला है... दर्जन भर से ज्यादा निर्दोष भाई/बहन अकारण शहीद हुए हैं... 
हे इश्वर!! जाने कब ये सिलसिला  ख़त्म होगा... जाने कब ये सिरफिरे, आतंक के पुजारी  इंसान बनेंगे... जाने कब ये शैतान ज़िंदगी की कीमत समझेंगे... जाने कब...?? जाने कब...??

4 comments:

  1. मुरख बैईठे गद्दी, साधु चले किनार
    सती हां भूख मरे,लड़ुवा खाए छिनार

    ReplyDelete
  2. क्या कहें भाई कैसे मूर्ख है जो ऐसा काम करते हैं और वो लोग कैसे महामूर्ख हैं जो इन्हे ऐसा करने से जन्नत मिलेगी की शिक्षा देते हैं ।

    ReplyDelete
  3. आतंक के साये में ...।

    ReplyDelete

मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

एक नज़र इधर भी...