रायपुर। हरियर प्रसाद जंगलिहा के फ़ार्म हाउस में "आतंक के हथियार-कुल्हाड़ी , आरी तथा आटोमेटिक आरी और जंगलों पर इनके दुष्परिणाम" विषय पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण गोष्टी संपन्न हुई। देश भर से बड़ी संख्या में विभिन्न प्रजातियों के वृक्षों के प्रतिनिधियों नें न केवल इस संवेदनशील गोष्टी में हिस्सा लिया वरन इस ज्वलंत विषय पर बेबाकी से अपने विचार भी व्यक्त किये।
आज प्रातः से ही श्री जंगलिहा के फ़ार्म हाउस में गहमागहमी प्रारम्भ हो गयी थी। आम, अमरुद, आंवला, हर्रा आदी वृक्षों में इस गोष्टी को लेकर अलग ही उत्साह नज़र आ रहा था। आगमन के साथ ही साल, बीजा, सरई, सागौन एकत्र होकर गोष्ठी के विषय पर आपस में गंभीर चर्चा करते दिखाई दिए। भिन्न भिन्न प्रकार की नन्हीं झाड़ियाँ उत्सुकतावश उनके निकट से गुजरतीं और आपस में फुसफुसाते हुए बातचीत करने लगतीं। वे देश भर से आये भाँती भाँती के वृक्षों को देखकर आश्चर्यचकित हो रही थीं। अनेक वृक्ष तो ऐसे थे जिनके बारे में इन नन्ही झाड़ियों ने सूना भी नहीं था। देखते ही देखते श्री जंगलिहा का पूरा फ़ार्म हाउस छोटे बड़े पेड़ पौधों से खचाखच भर गया।
तभी दरवाजे पर से पीपल के साथ इस कार्यक्रम के अध्यक्ष वटवृक्ष तथा मुख्य अतिथि चन्दन का आगमन हुआ। वृक्षों की भीड़ में हलचल सी हुई और स्वयमेव उनके बीच अतिथियों के लिए रास्ता बनाता गया। एक ओर सभी जहां वटवृक्ष का आदर के साथ झुक झुक कर अभिवादन कर रहे थे तो दूसरी ओर मुख्या अतिथि चन्दन को लेकर सब के मन में जिज्ञासा स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी। छोटी छोटी झाड़ियाँ तो उचक उचक कर उनको देखने का प्रयास करने लगीं। अनेक नन्हीं झाड़ियों को साल और बीजा ने अपनी टहनियों पर उठाकर अतिथियों के दर्शन भी कराये। उल्लासपूर्ण वातावरण में फ़ार्म हाउस के विशाल टीले पर अतिथियों के आसन ग्रहण करने के साथ ही हरसिंगार, चंपा, तगर, चमेली, गुलाब, गेंदा आदि के समूहों ने अतिथियों के साथ उपस्थित समस्त पेड़ पौधों पर पुष्प वर्षा की। उनकी देखा देखी और बहुत सारे फूल के पौधों भी अपने फूल अर्पित करने लगे। कुछ ही देर में श्री जंगलिहा का पूरा फ़ार्म हाउस रंग बिरंगे फूलों और मधुर सुगंध से भर गया।
गोष्टी के प्रथम वक्ता के रूप में बोलते हुए सागौन ने पूरी जाति की व्यथा को शब्द दिए। उसने कहा कि दुनिया का हर व्यक्ति उसी की लकड़ियों का इस्तेमाल अपने घर और आफिसेस में करना चाहता है। इसके लिए हमारे सैकड़ों परिवारों को आये दिन बलि देनी पड़ती है। कुल्हाड़ी और आरी तो हमारे लिए पहले ही आतंक का पर्याय थे, अब इंसानों ने स्वचालित आरी के रूप में हमारे खिलाफ एक बहुत ही खतरनाक हथियार का निर्माण कर लिया है। वे अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ती के लिए बड़े तो बड़े हमारे नन्हें नन्हें कोमल बच्चों को भी धारदार हथियारों से काटने में तनिक भी परहेज नहीं करते। क्या कहें कितना दुखद होता है अपने छोटे छोटे बच्चों को अकारण कट कर जान गंवाते देखना। सत्य तो यह है कि आज धरती से हमारे वंश के समूल नाश हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। अध्यक्ष महोदय, जल्द ही इस इस संकट का कोई हल निकालना आवश्यक हो गया है।
इसके पश्चात सरई ने अपनी बात रखी। उसने अपने अनुभव सभा में बाँटते हुए बताया कि वह और उसका विशाल परिवार एक संकरी सड़क के दोनों ओर सालों से निवास करता आ रहा था। सैकड़ों की संख्या थी बड़े बड़े सदस्यों की, और उनके बच्चों की तो गिनती करना ही मुश्किल था। आप विश्वास नहीं करेंगे कि अपने सड़क के चौडीकरण के लिए इंसानों ने बदर्दी से मेरे पुरे परिवार की ह्त्या कर डाली। छोटे छोटे बच्चों को तो लोहे के भारी भारी पहियों तले कुचल दिया गया। मैं पूछता हूँ कि आखिर इंसानों को यह अधिकार किसने दिया कि वे अपनी सुविधा के लिए ऐसे नृशंश हत्याकांड को अंजाम देवें? अपने को सृष्टी में सबसे महान समझने वाले इंसान क्या अपने बलबूते पर हमारे एक पत्ते का भी निर्माण कर सकते हैं? अध्यक्ष महोदय, जब शहरों में सड़कों का चौडीकरण किया जाता है तो निर्जीव मकानों के एवज में करोड़ों रुपये बांटे जाते हैं, तो क्यों कुछ राशी खर्च करके हमारे जीते जागते परिवारों के विस्थापन की व्यवस्था नहीं की जा सकती? मैनें सूना है, विदेशों में पेड़ों को जड़ से उठाकर दुसरे स्थान पर प्यार से लगाया जाता है। पता नहीं हमारे यहाँ ऐसी जागरूकता और पेड़ों के प्रति सहिष्णुता कब आयेगी?
सरई के उद्बोधन पर पूरी सभा में शोरगुल आरम्भ हो गया। सभी चिल्ला चिल्ला कर सरई की बातों का समर्थन करने लगे। आम के वृक्ष ने चिल्ला कर बताया कि ऐसी ही घटना उसके परिवार के साथ भी घट चुकी है। साल, बीजा और आंवला के वृक्षों ने भी ऐसे ही हत्याकांड के चश्मदीद होने का दावा किया। शोरगुल बढ़ते देख अध्यक्ष वटवृक्ष को आकर अपील करनी पडी तब जाकर उपस्थित पेड़ समुदाय शांत हुआ।
अगले वक्ता के रूप में जेट्रोफा ने बड़ी शिद्दत के साथ अपने उग्र विचार व्यक्त किये। उसने बताया कि किस प्रकार बड़े बड़े भूखंड उसके लिए सुरक्षित किये जाते हैं। जोर शोर से बड़ी संख्या में उसे रोपा जाता है किन्तु अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि मेरी सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किये जाते। अनेक स्थानों में मेरे जाति के सदस्य देखरेख के अभाव में तिल तिल कर अपने प्रान गंवा रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि पेट्रोल और डीजल की अनियंत्रित होती कीमतों के बावजूद इंसान और उसकी चुनी सरकार वाहन इंधन के सबसे बड़े स्त्रोत पर ध्यान नहीं दे रही है।
जेट्रोफा के बाद साल परिवार के किशोर सदस्य ने अपनी "सुनामी" नामक यह हृदयस्पर्शी कविता सुनायी -
पहाडी पर खडा
चिंतित, भयभीत सा
मैं, देखता रहा....
बढ़ता विकास का काफिला...
शोर मचाती,
सैकड़ों फीट उछलती
विकास की लहरें...
हजारों पेड़ों को लीलती
हर बार...
पहुँच गया, नीचे-
उसी पहाडी के
जहां मैं खडा था....
मुझे याद हो आया
कुछ वर्ष पूर्व आया - "सुनामी"
अनगिनत मौतें...
ध्वंस होते शहर - गाँव...
अखबारों की खबरे,
दर्दनाक तस्वीरें.....
जानता हूँ मैं,
कल के अखबार में
इस "सुनामी" की
कोई खबर नहीं होगी!!!
गोष्ठी के संचालक पीपल ने साल के उदास हो चले किशोर को अपने गोद में उठाकर प्यार किया और सुन्दर कविता के लिए बधाई दी। अध्यक्ष और मुख्य अतिथि चन्दन ने भी उसे सहला कर ढाढस बंधाया। किशोर साल की कविता से भारी हो चले माहौल को हल्का करने का प्रयास करते हुए बबूल ने साभिनय अपनी तुकबंदी सुनाई-
"मैं बबूल, मैं बबूल,
सब कहते मुझे फ़िज़ूल,
मैं बबूल मैं बबूल,
मेरे सारे बदन में फैले, तीखे तीखे शूल,
मैं बबूल, मैं बबूल,
कोई ना करता कभी मुझसे लड़ने की भूल,
मैं बबूल, मैं बबूल।
तत्पश्चात मुख्यातिथि चन्दन ने अपना उद्बोधन प्रारंभ किया तो पूरी सभा में भीनी भीनी खुशबू फ़ैल गयी। सब मंत्रमुग्ध होकर उसे देखने और सुनने लगे। चन्दन ने अपनी जाति पर वीरप्पन के आतंक की कहानी बतानी शुरू की, कि कैसे इस आतंकवादी ने मेरी प्रजाति के समूल नाश का अभियान छेड़ दिया था। वह और उसके साथी इतने खतरनाक थे कि रातों रात मेरे हजारों निरीह साथियों को बड़ी बड़ी स्वचालित मशीनों से काटकर गाड़ियों में भरकर बाहर भेज दिया जाता था। सागौन ने सही कहा था कि अपने सामने अपने साथियों को बेबस कटता देखना बड़ा ही दुरूह कार्य होता है। उस वक़्त मुझे भगवान् पर भी बड़ा क्रोध आया था कि क्यों उसने हमें जीवन दे कर भी अचल बनाया है। अगर हम चल सकते तो हम सभी अपना घर छोड़कर कहीं अन्यत्र शरण ले लेते। वीरप्पन के अत्याचार की कहानी सुनकर पूरी सभा में सन्नाटा छा गया। डर कर सहमते छोटे झाड़ियों को बड़े वृक्षों ने अपने शरीर से चिपका कर हौसला दिया।
तत्पश्चात मुख्यातिथि चन्दन ने सभा के समक्ष प्रस्ताव रखा कि हमारी ओर से एक प्रतिनिधी मंडल इंसानों की चुनी हुई सरकार से मिले और निम्न मुद्दों पर चर्चा करे-
१ संख्या आधारित आरक्षण का लाभ दे कर हमें संरक्षित किया जाए।
२ वनों की कटाई करने वालों के खिलाफ कड़े क़ानून बनाए जाएँ, और यदि कोई क़ानून है तो उसका कडाई से पालन कर दोषियों को सख्त सजा दिया जाए।
३ कुल्हाड़ी, आरी इत्यादी हथियार जो हमारे जो हमारे खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल किये जाते हैं, के उत्पादन पर शनैः शनैः कमी की जाय।
४ विकास यात्रा की जद में आने वाले पेड़ों को उनके जीवन की रक्षा करते हुए सावधानी से विस्थापित किया जाय।
५ शासन सघन वृक्षारोपण की योजना बनाकर चरणबद्ध क्रियान्वयन करें।
६ सभी उद्योगों और कार्यालयों में उसकी भूमी के कुछ प्रतिशत निश्चित भूभाग में पेड़ लगाने का क़ानून बनाया जाय।
७ जंगलों के विनाश का इंसानों और प्रकृती पर होने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी देते हुए लोगों को जागरूक करने के लिए सर्वत्र शाशकीय और गैर शाशकीय स्तर पर अभियान चलाया जाय।
८ प्रत्येक घरों और कालोनियों में पेड़ों के लिए जमीन आरक्षित की जाय।
९ विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ जो महामारी बनकर हमें नष्ट करती हैं, से हमें बचाने के लिए पर्याप्त उपाय किये जाएँ।
१० वृक्षों को केवल मृत्युपरांत ही काटा जाय।
और साथियों इंसान और उनकी चुनी हुई सरकार इन मुद्दों पर ध्यान नहीं देती है या कोताही बरतती है तो सभी प्रकार के वृक्षों से यह निवेदन किया जाय कि वृक्ष हित में कुछ समय के लिए आक्सीजन उत्पादन बंद कर दें। इतने में ही इंसानों को हमारी महत्ता का आभास हो जाएगा और वे गंभीरता से हमारे सम्बन्ध में कोई निर्णय लेने हेतु बाध्य हो जायेंगे। उपस्थित तमाम छोटे बड़े पेड़ पौधों ने जोरदार ध्वनि उत्पन्न कर चन्दन के प्रस्तावों को अपना समर्थन दिया।
अंत में अध्यक्षीय उद्बोधन के लिए जब वटवृक्ष आये तो तमाम पेड़ पौधे उनके सम्मान में एकदम शांत हो कर उसकी बातें गंभीरता से सुनाने लगे। वटवृक्ष ने चन्दन के प्रस्तावों की सराहना की और कहा कि निश्चित रूप से एक प्रतिनिधि मंडल को शासन से चर्चा हेतु रवाना किया जाएगा। दोस्तों इंसान आरम्भ से ही मगरूर प्राणी रहा है, अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है और आज जंगलों का भारी क्षरण इस बात का द्योतक भी है । इसलिए हमें हर कदम बहुत सोचकर उठाने की आवश्यकता है। आक्सीजन का उत्पादन बंद करने वाले प्रस्ताव पर मुझे संदेह है कि ऐसा कर के हम भी प्रकृती के संतुलन को बिगाड़ने वाले कारकों में सहभागी हो जायेंगे। मेरा यह मानना है कि यदि कोई बात इंसानों के दिमाग में प्यार और सद्भावना के साथ प्रत्यारोपित की जाय तो पूरी सृष्टी में, यह सत्य है कि उससे ज्यादा रचनात्मक प्राणी दुसरा नहीं है। वैसे आजकल इंसानों में जलवायु में होने वाले अप्रत्याशित परिवर्तनों और बढ़ते प्रदूषणों के मद्देनजर जागरूकता का संचार हुआ है और वे पर्यावरण संरक्षण को लेकर पहले से अधिक सचेत और सहयोगी नजर आ रहे हैं। आम जन, शासन और बड़ी बड़ी अशाश्कीय संस्थाओं द्वारा हमारे महत्व को प्रसारित और प्राकृतिक संतुलन के सन्दर्भ में रेखांकित किया जा रहा है। निश्चित ही आज की पीढ़ी में दृष्टिगोचर होने वाली संवेदनशीलता वन और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। फिर भी इस सभा में सर्वसम्मती से अनुमोदित प्रस्ताव के अनुसार यथाशीघ्र एक प्रतिनिधि मंडल शासन से सकारात्मक चर्चा के लिए प्रस्थान करेगा।
वटवृक्ष की इस घोषणा के समर्थन में सभा में उपस्थित समस्त छोटे बड़े पेड़ पौधों ने अपनी टहनिया और पत्ते हिलाकर हर्ष ध्वनी की। पुष्पीय वृक्षों और पौधों ने एक बार फिर पूरे सभा में पुष्प वर्षा की और आल्हादकारी माहौल में गोष्ठी संपन्न हुई।
२२ दिसंबर २०१० रायपुर छत्तीसगढ़
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बढ़िया रिपोर्ट ...कविताएँ अच्छी लगीं .
ReplyDelete... behatreen !!!
ReplyDeleteआदरणीय हबीब साहब
ReplyDeleteनमस्कार !
इतने श्रम और लगन से तैयार पोस्ट पर बहुत अधिक नहीं कह पाने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं … ।
आपके जज़्बे और निष्ठा को नमन !
कृपया ध्यान दें -
# मैं चाह कर भी आपके ब्लॉग को फॉलो नहीं कर पा रहा हूं यह लिखा मिलता है -
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आप इस समस्या के निदान में मदद कर सकें तो देखें , कृपया !
और भी कई ब्लॉग्स पर मुझे इसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है , स्वयं मेरे ब्लॉग पर भी मैं स्वयं को फॉलो नहीं कर पा रहा हूं …
~*~नव वर्ष 2011 के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हबीब जी पर्यावरण पर इसी तरह के आलेखों की जरुरत है ......
ReplyDeleteसभी चर्चा के मुद्दे सराहनीय ....
बबूल की तुक बंदी अच्छी लगी ...
पत्तों और टहनियों के साथ मेरी भी हर्ष ध्वनी है .....
बढ़िया लेख , वहां बादलों के दाग नहीं पड़ते , दिल अपना आसमान कर लें , वाह बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ ..
ReplyDeleteपर्यावरण जागरूकता के लिए यह एक बहुत अच्छा आलेख है. बधाई और शुभकामनाएं .
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