Sunday, September 19, 2010

"जीना इसी का नाम है"

सभी सुधी मित्रों को सादर नमस्कार। मित्रों कभी कभी कोई छोटी सी घटना हमेशा के लिए याद बन जाती है; काफी कुछ सिखा जाती है। एक ऐसा ही वाकया इस छोटी सी पोस्ट के जरिये बांटने का अभिलाषी हूँ...
सन्डे, सुबह से एक 'हेल्थ केम्प' में रहा। शुरूआत में मेरे एक अभिन्न मित्र ने मुझसे पूछा - "क्या हम १२ बजे तक फ्री हो पायेंगे? चर्च अटेंड कर लेता।" केम्प में कम से कम ४ बजने की बात सुनकर वे थोड़े मायूस लगे। केम्प साईट से शहर और चर्च की दूरी २० किमी के करीब थी, सो जाकर वापस आ जाना भी थोडा कठिन था। बहरहाल... केम्प में नेत्र रोगी बहुतायत में थे, और जल्द ही हम उनकी जांच और निदान में व्यस्त हो गए। पता ही न चला कि १२ कब बज गए। ध्यान तब आया जब बगल की टेबल से मित्र ने अपना अफ़सोस शेयर किया - "हर सन्डे की रूटीन है, आज चर्च नहीं जा पाया ... कुछ अधूरा सा लग रहा है.... ।"
मैं कुछ कहता उससे पहले मित्र के सामने जांच के लिए बैठे अत्यंत बुजुर्ग व्यक्ति बड़े सहज ढंग और प्यार से बोल पड़े- "बेटा वह बड़ा दयालु है, वह किसी से दूर नहीं रहता, किसी को अपने से दूर नहीं करता। आज तुम चर्च नहीं जा पाए हो ना, इसीलिए देखो (मरीजों की कतार की तरफ इशारा करते हुए) खुद प्रभु ईशु कितने मुख्तलिफ रूप लेकर तुम्हारे पास आ गए हैं।"
बुजुर्गवार के ये चंद अल्फाज; मैंने महसूस किया कि मेरे मित्र के साथ मेरे भी चेहरे पर भी एक मधुर मुस्कराहट बन कर फ़ैल गए है, साथ ही मैंने देखा कि सामने बैठे झुर्रीदार मासूम चेहरे पर भी एक निष्पाप मुस्कराहट तैर रही है। अपनी शंका का निराकरण कर और वातावरण में एक उत्साह भर कर वे बुजुर्ग चले गए।
इस वाकये के बाद मेरा मित्र जैसे चर्च ना जाने के अवसाद से मुक्त हो रोगियों के शंकाओं के निराकरण में तल्लीन हो गया। उसके चेहरे पर एक मुक़द्दस सी, अलौकिक सी मुस्कराहट और सुकून था। मेरे जेहन में जनाब निदा फाजली जी का एक शेर उभर आया-
"घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।"
मैंने महसूस किया कि बगल की टेबल पर मेरा मित्र बैठ कर रोगियों की जांच नहीं कर रहा; बल्कि खुद जनाब निदा फाजली जी बैठ कर एक प्यारा सा गीत रच रहे हैं। मैं कल्पना में देखने लगा उनके चेहरे का सुकून मेरे मुल्क के हर चेहरे पर एक सामान छा गया है, और साथ ही छा गया है उनके शेर का हर लफ्ज़। आमीन।
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5 comments:

  1. भैया प्रणाम,
    इस बेहद सुन्दर, सार्थक एवं प्रभावी पोस्ट के लिए मुझ अकिंचन की ओर से बधाई स्वीकार करें......

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  2. हबीब साहब बड़ी अच्छी बात आपने कह दी.
    पारुल जी ने ठीक ही लिखा है
    कि जीना इसी का नाम है .


    ये शेर भी बहुत उम्दा है .

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  3. वन्दे मातरम मित्रों !!
    आप सभी को बड़े खेद के साथ सूचित कर रहा हूँ की मेरी यह प्रोफाइल सहित ब्लॉग पुनः दुर्भावनावश हैक कर ली गयी है | "जिसे पुनः पाने को मै प्रयासरत हूँ", निश्चित ही ऐसी हरकत इस प्रोफाइल की बढती लोकप्रियता और "अभियान भार्त्यिया" के निरंतर प्रसार को रोकने के लिए किया गया है, जो की निश्चित रूप से हमारी सफलता ही है |
    मै यह सन्देश अपने नवनिर्मित प्रोफाइल से आप सभी को प्रेषित कर रहा हूँ , मै सभी हैकर्स सहित उन तत्वों को शख्त लहजे में बता देना चाहता हूँ की आप जितने बार भी चाहें मेरी प्रोफाइल हैक करें पर मेरे विचार, मेरे आशिर्वाद्कों को, मेरे शुभचिंतकों को, मेरे मित्रों को, मेरी भावना को, मेरे देशप्रेम को, मेरे उत्साह को, "अभियान भार्त्यिया की लोकप्रियता को कदापि हैक नहीं कर सकते हैं वरन आपके इन प्रयासों से हमारी लोकप्रियता में और वृद्धि होगी |
    जब हम "अभियान भारतीय" की दूसरी सीडी को आप सभी के समक्छ प्रस्तुत करने वाले थे और ऐसे समय में इस प्रोफाइल का हैक होना थोडा कस्त्दायक तो है पर मैंने हारना नहीं सिखा है आप सभी तक मै जल्दी ही इस प्रोफाइल अथवा नवनिर्मित प्रोफाइल के साथ उपस्थित होऊंगा ऐसी आशा ही नहीं वरन विश्वास है |
    आप सभी से निवेदन है की फ़िलहाल आप मुझसे संपर्क मेरे न. 09301988885 पर तथा इस प्रोफाइल में कर सकते हैं आप सभी से मै अपील करता हूँ की आप सभी मुहे कृपया मित्रता निवेदन प्रस्तुत करें जिससे मै पुनः आप सभी के करीब आ सकूँ .......आपका अपना :- गौरव शर्मा "भारतीय" {gouravsharma.2222@gmail.com, 09301988885}

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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