Saturday, August 7, 2010

"मर जवान, मर किसान"

जम्मो मयारू संगी अऊ सुध लेवय्या संगवारी मन ला हबीब के राम राम। हमर छत्तीसगढ़ राज के बानी, अब्बड़ मीठ भाखा छत्तीसगढ़ी ला हमरे मन के आसरा हवे। छत्तीसगढ़ी भाखा मं लिखैया - पढ़ैया जमो बिद्वान मन ला हिरदे ले परनाम करके जम्मो ब्लॉगर संगवारी मन ले बिनती करत हौं के हमन सबो झन थोर थोर थेभा लगाबो त हमर निक भाखा के नार बियांर हा बने उल्हो के, फोंकिया के अऊ बने हरिया जाही। इही बिनती संग ए दारी में हा कलजुग के बखान करत एक ठन छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल "मर जवान, मर किसान" ल पऊरसत हवौं। आसीस देहा...
__________________________________
__________________________________
ए देस के बिधान अलग हे, अतकेच ल जान गा।
चोरहा ल चोरहा झन कहिबे, कहिना ल मोर मान गा।
*****
चाकू - छुरा के अनठी धरे, लईका मन बाढ़त हवे।
का अचरज करथन संगी, लेवत हे जौन प्राण गा।
*****
रोजेच सुनथन रेडुआ मं, लोकतंत्र के महिमा ला।
कोरी कोरी घपला होथे, किरा नी रेंगे कान गा।
*****
अपनेच घर ले दुसमन ल, खेदे हमन सकन नहीं।
दुनिया के आघू मं कतका, खुदेच बनबो महान गा।
*****
देवता असन नेता हा, नारा एक ठन देहे रिहिस।
ओ बदल के आज होगे, मर जवान मर किसान गा।
*****
चारों डहार अंधियारी घपटे, बईठे मनखे डराय, सप्टे।
कब आबे तें सुरुज देवता, लाबे नवा बिहान गा।
*****
हमर संगी रोज मरथे, ओखर मन के कोठी भरथे।
अईसन गोठ ल टार 'हबीब', चल खाए बार पान गा।
*****
_____________________________________
_____________________________________

2 comments:

  1. वाह भैया................ऐ हा आज के हालात ला बयान करत हुए शानदार गजल हवे........आप मन ला में हा एखर बार गाडा गाडा जोहर देवत हावव स्वीकार करव !!

    ReplyDelete
  2. ... सुग्घर गजल पढेबर मिलिस !!!

    ReplyDelete

मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

एक नज़र इधर भी...