Friday, June 18, 2010

बहुत याद आये पिताजी...


आज याद आये पिताजी...
नयन में बूंदों की भांति
तनिक झिलमिलाये पिताजी...

जानता हूँ वे नहीं हैं,
देखता हूँ पर यहीं हैं,
जब भी बेबस सा मैं होता,
हाथ काँधे पर रखे और
राह दिखलाए पिताजी...

सूर्य की कभी ताव बनकर,
बादलों की छाँव बनकर,
दूर बरगद से उमडती
चंचल पवन का रूप धरकर
केश सहलाए पिताजी...

दीप सीखों का जलाए,
पास आये मुस्कुराए,
स्नेहसिक्त नयनों से तोले,
चंद जीवन के क्षणों का
राज बतलाये पिताजी...

थक के जब भी चूर सा मैं,
भाग्य से मजबूर सा मैं,
धराभिमुख हो मौन बैठा,
गान पंछियों का मधुर बन
उत्साह भर जाये पिताजी...
बहुत याद आये पिताजी...

13 comments:

  1. भैया आपको शत शत प्रणाम , आपका आदेश है की मै कुछ प्रतिक्रिया दूँ, कुछ कहूँ आपके कविता पर, मै कह पाता तब जब यह कोई साधारण कविता होती, आज मै इसे पढने के बाद भावों के सागर में गोते लगा रहा हूँ और मेरी सोच है की यह कविता नहीं वरन प्रेरणा है जिसकी आवश्यकता आज के युवाओं को सर्वाधिक है !!
    वर्तमान नैतिक मूल्यों के विघटन के दौर में ऐसी कविताओं से निश्चित ही हमें यह अहसास होता है की जीवन में हमारे बुजुर्गों का हमारे अपनों का कितना महत्व है, माता पिता की सरपरस्ती हमें दुनिया की हर मुसीबतों से बचाने में सक्छ्म होतीहै........
    भैया सच में आज मेरे पास शब्द नहीं है की मै कुछ कह सकूँ आपकी कविता से ऐसे लोग जिन्हें माता पिता के महत्व का ज्ञान और भान नहीं है उन्हें अपनी भूल का अहसास हो सके औए वे लोग माता पिता के साथ कभी भी दुर्व्यवहार न करें बस यही प्रार्थना करता हूँ साथ साथ ही मै दुनिया के हर माता पिता के शतायु एवं दीर्घायु होने की प्रार्थना भी करता हूँ !!
    इस बेहद प्रेरणा दायक कविता के लिए आपको अशेष शुभकामनायें .....

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  2. हबीब भाई आपने तो रूला ही दिया।ऐसा लग रहा है कि जैसे आपने नही सब कुछ मैने लिखा है।बहुत बहुत बधाई।

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  3. bhaiya is par kuch likhne ka sahas nahi hota hai, aapne to bas jaise bhav vibhor hi kar diya........
    mai aapko shubhkamnayen dene ke alawa kuch nahi kah sakta........
    bhaiya aap aisi kavitayn niymit likhte rahen aur ham padhte rahen yahi meri shubhkamnayen hai ........!!

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  4. हमें भगीरथ बन गंगा की लहरें सौंप गए,
    खुद अगस्त्य बन सागर भर-भर आँसू पिए पिता।

    लथपथ हुए पसीने से लो, कहाँ खो गए आज
    थके हुए हमको मेले में कांधे लिए पिता।

    हम भी तुम से लिपट-लिपट कर बहुत-बहुत रोए
    देखो अंजुलि भर-भर आँसू अर्पण किए पिता।

    थके हुए हमको मेले में कांधे लिए पिता।
    दिए-दिए ही किए अंत तक कुछ ना लिए पिता।

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  5. बढ़िया प्रस्तुति ...फादर्स डे की आपको भी शुभकामनाये ...

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  6. do-teen din se blog dekh nahi paayaa aaj aaya aur yah marmik kavitaa dekh rahaa hoo.pitaa par maine anek kavitaye parhee hai, lekin yah kavitaa ekdam alg rang kee hai. dil ko chhoo lene valee. badhai. iss sashakt lekhani ke liye.

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  7. Wah Bhai sahab wah!
    Padhakar maza aa gaya! Jitni sundar bhavnaayein utne hi sunder shabd!

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  9. जानता हूँ वे नहीं हैं,..देखता हूँ पर यहीं हैं... यह रचना दिल को छू गई.

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  10. माँ पर बहुत कुछ पढ़ा ..आज पिता पर आपकी रचना पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ... सुन्दर अभिव्यक्ति

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

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