Saturday, June 12, 2010

बचाओ... बचाओ.. बचाओ...


यह एक आम दृश्य है। आते जाते हम ऐसे अनेक मंजर देख सकते हैं जहाँ एक सरकारी विभाग ने खुदाई की, पानी का अन्डर ग्राउंड पाईप लाइन फूट गया और जब तक सम्बंधित विभाग के कर्मचारी मरम्मत कर पायें जाने कितना पानी फ़िज़ूल बह गया।
पानी की बर्बादी रोकने हेतु जितनी जागरूकता की जरूरत आम जनता में है, उतनी ही आवश्यकता सरकारी विभागों के मध्य समन्वय की भी है। आज जहाँ शहर के अनेक बस्तियों में पानी की बेहद कमी से वहां के बाशिंदे परेशान हों और पानी के लिए इधर उधर भटक रहे हों, सरकारी नलों के सामने रतजगा कर रहें हों, पानी के टैंकर की आमद से भगदड़ सी मच जाती हो, वहां पानी की ऐसी बर्बादी को एक आपराधिक कृत्य कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सार्वजनिक नलों से टोंटियों की चोरी टोंटी होने पर भी उसे खुला छोड़ देना, व्यक्तिगत भवनों के ओवर हैड टंकियों से पानी का निरंतर ओवेर्फ्लो आदि भी कुछ ऐसे ही कारण हैं जिनसे पानी की बेतहाशा बर्बादी होती है। आइये पानी की कीमत पहचाने। आने वाले समय में यदि हम अपने कंठों को शुष्क होने से बचाना चाहते हैं तो हम सबकोजागरूक होकर जल संरक्षण हेतु गंभीर प्रयासों का संकल्प लेना होगा।

1 comment:

  1. भैया प्रणाम, यह सच है की जनता पर जागरूकता की कमी का आरोप लगाकर शासकीय अमला अपने जिम्मेदारियों से बचने का प्रयास करता है , जबकि सबसे महत्वपूर्ण जवाबदारी उसी की होती है !!
    निश्चित रूप से हमारे व्यवस्था में किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति के द्वारा गलती करने पर किसी कठोर कार्यवाही का प्रावधान नहीं है जिसके कारण इस प्रकार की लापरवाही होती है , अब इस व्यवस्था में परिवर्तन की आवश्यकता है जिससे सभी शासकीय अधिकारीयों की जिम्मेदारी सुनिश्चित हो और लापरवाही न हो सके !!

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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